श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लडुअन का भोग।)

?अभी अभी # 493 ⇒ लडुअन का भोग? श्री प्रदीप शर्मा  ?

 बधाई हो बधाई

जन्मदिन पे तुमको

तुम्हारी होगी शादी

मिलेंगे लड्डू हमको…

हमें अच्छी तरह याद है प्रयागराज वाले शुक्ल जी के यहां, उनके सुपुत्र के शुभ विवाह के मंगल प्रसंग के अवसर पर, उनके द्वारा भेजे गए प्रेम रस से सराबोर लड्डुओं का हमने यहां सुदूर, इंदौर में आस्वादन किया था।

उन्हें शायद पता था, लड्डू हमारी कमजोरी है। लड्डू पेड़े की जोड़ी बहुत पुरानी है। हर खुशी के मौके पर लड्डू बांटे जाते हैं। लड्डू की महिमा इतनी विचित्र है, कि कभी कभी तो बिना खाए ही मन में लड्डू फूटने लगते हैं।।

पकवान कोई भी हो, बिना दूध और घी के नहीं बनता। घी भी एक तरह से मिल्क प्रोडक्ट ही तो है।

हर प्रकार के दूध में कम अथवा ज्यादा मात्रा में एनिमल फैट होता है जिसे बोलचाल की भाषा में फैट कहा जाता है। दूध पीने से बच्चे ताकतवर बनते हैं।

मां के दूध का कोई विकल्प नहीं।

मैं बचपन से ही भैंस को दूध पीता चल रहा हूं, क्योंकि भैंस के दूध में ज्यादा मलाई आती है। अक्ल बड़ी कि भैंस ? हो सकता है, भैंस के दूध से मुझे कम अक्ल आए, लेकिन फिर भी मेरी अक्ल कभी घास चरने नहीं गई।।

मलाई दूध की हो अथवा दही की, बिल्ली के मुंह मारने के पहले मैं चट कर जाता हूं। रबड़ी शब्द सुनकर तो आज भी मेरे मुंह में पानी आ जाता है।

मुझे डालडा घी से एलर्जी है। असली घी अगर मिलावट वाला हुआ तो मेरी खैर नहीं, एकदम सांस चलने लगती है, इसलिए बहुत सोच समझ कर कम मात्रा में ही दूध और शुद्ध घी से बने पदार्थों का सेवन करना पड़ता है। दूध की अधिक मलाई से घर में ही डेयरी खुल जाती है, असली घी, मक्खन और छाछ आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

खाद्य पदार्थों में मिलावट एक दंडनीय अपराध तो है ही लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ पाप की श्रेणी में आता है। अपराधियों को दंड तो खैर कानून दे ही देगा लेकिन जो पाप के भागी हैं, उनका हिसाब तो ऊपर वाला ही करेगा। एक आस्थावान भक्त तो सिर्फ प्रायश्चित ही कर सकता है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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