श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हमारे पास भी भेजा है …“।)
अभी अभी # 494 ⇒ ॥ दीवार॥ श्री प्रदीप शर्मा
THE WALL
यहां हम अमिताभ बच्चन अभिनीत, और सलीम जावेद के संवाद वाली फिल्म दीवार का जिक्र नहीं कर रहे। हम उस दीवार का जिक्र कर रहे हैं जो दो घरों के बीच, दो दिलों के बीच, और दो मुल्कों के बीच खड़ी हो जाती है। बंटवारे की त्रासदी तो हमने सुनी है, लेकिन देखी नहीं, क्योंकि हमारा जन्म आजादी के बाद ही हुआ है। एक दीवार घर बनाती है और एक दीवार घर का बंटवारा करवाती है। एक दीवार पैसे की भी होती है। मुकेश का यह गीत शायद आपने सुना हो ;
चाँदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया
इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन छोड़ दिया
दुनिया की सबसे बड़ी दीवार चीन की है। यह अलग बात है कि इसी चीन ने हाल ही में कोरोनावायरस फैलाकर इंसान और इंसान के बीच भी दीवार खड़ी कर दी थी। कभी हमारे घरों की भी दीवारें मोटी होती थी आजकल तो 4 इंच की दीवारों से ही काम चल जाता है। पुराने किलों की दीवारें देखिये, वे इतनी चौड़ी और मोटी होती थी कि उनके ऊपर से हाथी गुजर जाते थे।।
पैतृक संपत्ति में आजकल अपना हिस्सा कोई नहीं छोड़ता। गांव में संयुक्त परिवार की जमीन जायदाद होती थी परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहते थे। कुछ मकानों में तो सिर्फ देखरेख और रखरखाव के लिए ही किसी रिश्तेदार अथवा जरूरतमंद परिवार को बिना किराए के ही रख लिया जाता था। सदियां गुजर जाती थी और मकान पर जिसका कब्जा था उसका ही हो जाता था।
वक्त करवट लेता है, परिवारों में प्रेम और सम्मान का स्थान स्वार्थ और लालच ले लेता है। परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों की तो छोड़िए, आज के समय में तो पुराने किराएदार भी मकान खाली नहीं करते। जब मुआवजे से भी बात नहीं बनती तो कानूनी कार्रवाई करनी पड़ती है।।
अगर कोई व्यक्ति सीधा-साधा और कमजोर हुआ तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धांत लागू हो जाता है। अतिक्रमण और अवैध कब्जा आजकल आम बात है। आज भी गांवों में अधिकतर विवाद जर जोरू और जमीन को लेकर ही होते हैं। शहरों में तो बहू के आते ही बंटवारे शुरू हो जाते हैं घरों में दीवार खड़ी हो जाती है।
कानून आपको कर्तव्य नहीं सिखाता केवल अधिकार की लड़ाई लड़ना ही सिखाता है। व्यक्ति में प्रेम और त्याग की जगह जब स्वार्थ और लालच जन्म ले लेता है, तब इंसान और इंसान के बीच नफरत की दीवार खड़ी हो जाती है। इधर रिश्ते में दरार आई और उधर दीवार खड़ी हुई। देखिए, जगजीत सिंह की यह खूबसूरत ग़ज़ल, जिसमें दर्द भी है और उम्मीदभी ;
रिश्तों में दरार आई
बेटे ना रहे बेटे,
भाई ना रहे भाई
रिश्तों में दरार आई
परखा है लहू अपना,
भरता है ज़माने को
तूफ़ान में कोई भी,
आया ना बचाने को
साहिल पे नज़र आए, कितने ही तमाशाई
रिश्तों में दरार आई
ढूँढे से नहीं मिलता,
राहत का जहाँ कोई
टूटे हुए ख़्वाबों को,
ले जाए कहाँ कोई
हर मोड़ पे होती है, एहसास की रूसवाई
रिश्तों में दरार आई
ज़ख़्मों से खिली कलियाँ, अश्क़ों से खिली शबनम
पतझड़ के दरीचे से,
आया है नया मौसम
रातों की स्याही से,
ली सुबहो ने अंगड़ाई
रिश्तों में दरार आई
ख़ामोश नज़र दिल का क्या राज़ छिपाएगी
टूटेगा अगर शीशा आवाज़ तो आएगी
अब अपना मुकद्दर है,
ये दर्द ये तन्हाई
रिश्तों में दरार आई
मुश्किल हैं अगर राहें, इतनी भी नहीं मुश्किल
ख़्वाबों पे यकीं हो तो,
कैसे न मिले मंज़िल
वो देख तेरी मंज़िल
बाहों में सिमट आई
रिश्तों में दरार आई।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈