श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शास्त्रीय भाषा…“।)
अभी अभी # 497 ⇒ शास्त्रीय भाषा श्री प्रदीप शर्मा
Classical language
मुझे जितना शास्त्रीय संगीत का शौक है उतना ही क्लासिकल लिटरेचर का भी। हमारी पुरानी फिल्में भी क्लासिक होती थी और उनके गीत भी।
मुझे संस्कृत नहीं आती फिर भी हमारे अधिकांश ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही है। संस्कृत शास्त्र की भाषा है, फिर भले ही वह भगवद्गीता हो अथवा भागवत पुराण। महाकवि कालिदास तक ने अपनी सभी रचनाएं संस्कृत में ही लिखी हैं। संस्कृत तो वैसे ही देवों की भाषा है, अन्य कई भाषाओं की जननी है।
हाल ही में भारत सरकार ने फैसला किया है कि असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा दिया जाएगा। वैसे क्लासिक का अर्थ ही उत्कृष्ट होता है। क्लास, क्लासिक और क्लासिकल को आप हिंदी में शास्त्र, शास्त्रोक्त और शास्त्रीय भी कह सकते हैं। वैसे अंग्रेजी के शब्द क्लास का अर्थ श्रेणी अथवा कक्षा भी होता है।
ट्रेन के स्लीपर बर्थ की भी तीन क्लास होती है, अपर, मिडिल और लोअर। हम आप भी तो किसी क्लास अर्थात् श्रेणी में आते हैं, उच्च, मध्यम अथवा निम्न। ।
इसी तरह क्लासिकल को हम शास्त्रीय, प्राचीन, चिर प्रतिष्ठित, उत्कृष्ट, उच्च कोटि का, मनमोहक, श्रेष्ठ, और पारंपरिक भी कह सकते हैं। सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान राष्ट्र का सम्मान ही तो है। हाल ही में घोषित पांच शास्त्रीय भाषाएं देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाएं हैं। कितने बंगाली और मराठी उपन्यासों का अनुवाद हमने हिंदी में पढ़ा है। एक समय में तो हमारी पूरी फिल्म इंडस्ट्री बंगाली और मराठी कलाकारों से ही सुशोभित हो रही थी।
फिल्म संगीत के क्षेत्र में लता, आशा, सुमन ही नहीं, सहगल, मन्ना डे, किशोर कुमार, भप्पी लाहिड़ी और आज की श्रेया घोषाल भी शामिल हैं। कौन भूल सकता है सत्यजीत रे, मृणाल सेन और ऋषिकेश मुखर्जी के योगदान को। असम के एक अकेले संगीतकार भूपेन हजारिका जैसे भारत रत्न, पूरे देश का गौरव हैं।
शास्त्रीय संगीत की तो पूछिए ही मत। भातखंडे, पलुस्कर से लगाकर पंडित भीमसेन जोशी और कुमार गंधर्व पर ही जाकर यह सूची रुकने वाली नहीं। जरा गंगूबाई हंगल और किशोरी अमोणकर को सुनकर तो देखिए। ।
देवों की इस भूमि पर जितनी भी प्रांतीय भाषाए हैं, उनकी अपनी संस्कृति है, अपनी विरासत है। सभी भाषाएं शास्त्रीय ही हैं, सिर्फ आवश्यकता है उनके प्रचार प्रसार की और उन्हें से देश की मुख्य धारा से जोड़ने की।
पांच राज्यों की जिन भाषाओं को हाल ही में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, यह तो एक तरह की शुरुआत ही है, सभी भारतीय भाषाओं को आपस में जोड़ने की।
हम केवल अपनी मातृभाषा का ही सम्मान नहीं करें, देश की हर भाषा हमें आपस में जोड़ती है, हर भारतीय भाषा शास्त्रीय भाषा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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