श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| व्याकरण || …“।)
अभी अभी # 514 ⇒ || व्याकरण || श्री प्रदीप शर्मा
~ grammar ~
व्याकरण वह विद्या है जो हमें किसी भाषा को शुद्ध बोलना, पढ़ना एवं लिखना सिखाता हो। भाषा की शुद्धता के लिए ही व्याकरण के नियम बनाए गए हैं। व्याकरण” शब्द का शाब्दिक अर्थ है- “विश्लेषण करना”। आजकल तो लोग बिना व्याकरण जाने भी शुद्ध लिख बोल लेते हैं, क्योंकि हमें सब पका पकाया मिल जाता है। कविता, साहित्य और फिल्मों से ही हम बहुत कुछ सीख लेते हैं।
विद्यालयों में अक्षर ज्ञान के तुरंत बाद, सबसे पहले व्याकरण सिखलाया जाता है। संज्ञा, कर्ता और क्रिया के साथ साथ ही अलंकार और कहावतें और मुहावरों का प्रयोग भी बताया जाता है। व्याकरण के नियम कंठस्थ करने होते थे। अमर घर चल से सभी ने अपना हिंदी का पाठ शुरू था। व्याकरण के अभाव में ही अक्सर मात्राओं की गलती और भाषा में गलत वाक्यों का प्रयोग होना आम बात है।।
हमारी मातृ भाषा का व्याकरण हमें जितना आसान नजर आता है, उतना ही अन्य भाषाओं का व्याकरण कठिन नजर आता है। भाषा के अध्ययन में अगर व्याकरण की उपेक्षा हुई, तो उस भाषा पर कभी आपका अधिकार नहीं हो सकता। स्वर और व्यंजन का ज्ञान जितना हिंदी में जरूरी है, उतना ही अंग्रेजी में भी।
अंग्रेजी व्याकरण के लिए P.C.Wren का कोई विकल्प नहीं था। हिन्दी व्याकरण के जनक श्री दामोदर पंडित जी को कहा जाता है। इन्होंने 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक ग्रंथ की रचना की थी जिसे ” उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण ” के नाम से जाना जाता है। हिन्दी भाषा के पाणिनि ” आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ” को कहा जाता है। संस्कृत में तो हमें एकमात्र पुस्तक अभिनवा पाठावलि: ही याद है। तब के कुछ सुभाषित हमें आज तक याद है। वैसे
सिद्धान्तकौमुदी संस्कृत व्याकरण का ग्रन्थ है जिसके रचयिता भट्टोजि दीक्षित हैं। इसका पूरा नाम “वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी” है।।
वैसे सामान्य जीवन में, भाषा की बुनियादी जानकारी के साथ भाषा के व्याकरण की भी इतिश्री
हो जाती है और यह विषय केवल प्राध्यापकों और भाषाविदों तक ही सीमित रह जाता है। एक बार डिग्रियां हासिल करने के बाद कोर्स की किताबों के साथ व्याकरण की किताबें भी रद्दी में बेच दी जाती थी। गूगल सर्च की सुविधा के पश्चात् कौन अपने घर में ऑक्सफोर्ड और वेबस्टर की डिक्शनरी रखता है।
हमारी भाषा और व्याकरण का सबसे दुखद पहलू है, संस्कृत की उपेक्षा। केवल पूजा पाठ और ज्योतिष तक ही इसका सीमित रहना हमारे देश का दुर्भाग्य है। बड़े संघर्ष के पश्चात् तो हिंदी आज अपने इस स्थान पर पहुंच पाई है। एक समय था जब हिंदी के अलावा अंग्रेजी, गणित, और संस्कृत को पढ़ाई में अधिक महत्व दिया जाता था। हमारा दुर्भाग्य कि हम गणित में कमजोर निकले, और समय के साथ संस्कृत ने भी हमारा साथ छोड़ दिया।।
हमें याद आती है एक पुरानी घटना जब हमने एक सहपाठी को, जो तब अंग्रेजी साहित्य का व्याख्याता बन चुका था, हमारे ताऊ जी, अर्थात् पिताजी के बड़े भाई से बड़े गर्व से मिलवाया। “ये हैं हमारे कॉलेज के पुराने मित्र, आजकल अंग्रेजी साहित्य के व्याख्याता हैं “। हमारे ताऊजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हमारे मित्र से ग्रामर की स्पेलिंग पूछ ली। बहुत आसान सवाल था, हमारे मित्र ने तुरंत कह दिया, grammer.
हमारे ताऊजी कुछ नहीं बोले। उन्होंने मुझे इशारा किया, जरा इंग्लिश डिक्शनरी लाना और आपके मित्र को दे देना, वे ग्रामर की स्पेलिंग देख लेंगे। मित्र आत्म विश्वासी था, उसने डिक्शनरी देखी, ग्रामर की स्पेलिंग grammar निकली, grammer नहीं।
हमारे मित्र को शर्मिंदा तो होना ही था। जब कि हमारे ताऊ जी सिर्फ उनके जमाने की आठवीं पास थे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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