श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब महल…“।)
अभी अभी # 523 ⇒ किताब महल श्री प्रदीप शर्मा
किताबों का स्थान घर में हो सकता है, लाइब्रेरी में हो सकता है, लेकिन महल में किताबों का क्या काम ! अक्सर महलों की किताबों में कीड़े और दीमक ही लगते देखे गए हैं। किताब किसी को मारती नहीं, पढ़ने वाले को अपनी गिरफ्त में ज़रूर ले लेती है।
बचपन में एक किताब के शीर्षक पर लिखा देखा, प्रकाशक किताब महल, दरियागंज, दिल्ली ! मैंने सुना था, आगरा में ताजमहल है, और जयपुर में हवामहल। दिल्ली के किताब महल ने मेरी बालमन की जिज्ञासा बढ़ा दी। कैसा होगा किताबों का महल ? किताबों की खिड़कियाँ, किताबों के ही दरवाज़े। पिताजी तक बात पहुँची। उन्होंने समझाया, यहाँ से किताबें छपती यानी प्रकाशित होती हैं। यह प्रकाशक का नाम है, जिस तरह कल्याण गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित होता है।।
मेरी दरियागंज और पहाड़गंज में रुचि तो कम हो गई, लेकिन किताबों में बढ़ गई। तब मुझे ज्ञात हुआ कि असली किताब महल तो प्रकाशक ही है। राजपाल एंड संस, राजकमल और राधाकृष्ण प्रकाशन और ज्ञानपीठ प्रकाशन से लेकर हिन्द पॉकेट बुक्स और डायमंड पॉकेट बुक्स तक यह किताब महल फैला हुआ है। ओरिएंट लॉंगमन्स और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की तो कुछ अंग्रेज़ी किताबें कोर्स में भी थी। तब मेरे छोटे से शहर में कई लाइब्रेरियां थीं, जिन्हें सार्वजनिक वाचनालय कहते थे। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में केवल कोर्स से संबंधित किताबें ही रहती थीं। फिर भी हिंदी, अंग्रेज़ी साहित्य और दर्शन शास्त्र की किताबें तो उपलब्ध हो ही जाती थी।
(प्रसंगवश विगत विदेश यात्राओं में इस प्रकार के पुस्तकालय (Street Library) देखने को मिले। आपको ऐसे पुस्तकालय सड़क के किनारे देखेने मिल जाएंगे। उपरोक्त पुस्तकालय पर जर्मन भाषा में लिखा है “Offener Bucherschrank. Schaut rein, lasst was hier, nehmt was mit.” जिसका अंग्रेजी अर्थ है “Open bookcase. Take a look, leave something here, take something with you.” आप ऐसे पुस्तकालयों की मुफ्त सुविधा ले सकते हैं। बस आप कितनी भी पुस्तकें इनमें से ले सकते हैं। बस ईमानदारी से आपकी इसमें अपनी भी कुछ पुस्तकें रखनी होंगी। आप पास की बेंच पर बैठ कर पुस्तकें पढ़ कर वापिस इनमें रख सकते हैं। – संपादक )
फिल्मों के अलावा समय बिताने का तब और कोई साधन नहीं था। सैम पित्रोदा का लोगों ने तब तक नाम भी नहीं सुना था। लाइब्रेरी समय काटने के लिए एक मुफ़ीद और रचनात्मक जगह मानी जाती थी। यह वह समय था जब अधिकांश साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाएँ एक अथवा सवा रुपए की आती थी। हिन्द पॉकेट बुक्स ने प्रेमचंद और शरदचंद्र को एक एक रुपए में लोगों के घर तक पहुँचाया। और लोगों में किताबें खरीदने के प्रति रुचि बढ़ी। अन्य प्रमुख साहित्यिक प्रकाशनों ने भी प्रसिद्ध कृतियों के पेपरबैक एडिशन निकालने शुरू कर दिए, जिनमें राजकमल प्रकाशन अग्रणी था।।
शहर में एक समानांतर साहित्य भी चलता था जिसके पाठक अनगिनत थे। ये लेखक ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी का पुरस्कार तो प्राप्त नहीं कर पाए, लेकिन लोगों में किताबों के प्रति रुझान बढ़ाने में सफल अवश्य हुए। गुलशन नंदा, ओमप्रकाश शर्मा, कर्नल रंजीत और सुरेन्द्र मोहन पाठक के पाठकों की तो आप गिनती ही नहीं कर सकते।
गुरुदत्त और आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने हिंदुत्व की बात की तो के एम मुंशी और नरेंद्र कोहली ने भारतीय संस्कृति की। टैगोर की गीतांजलि और तिलक की गीता कृष्ण के कर्मयोग को समर्पित थी।।
मेरे शहर में किताब महल न सही, एक अदद किताब घर था, खजूरी बाज़ार में दीनानाथ बुक डिपो और तुलसी साहित्य सदन था, जानकीप्रसाद पुरोहित की नवजीवन पुस्तकमाला थी। मराठी पुस्तकों के लिए आज भी घर पोच वाचनालय है। हिंदी साहित्य समिति भी है, और देवी अहिल्या पुस्तकालय भी।
धार्मिक किताबों के लिए आज भी सरदार सोहनसिंह बुक सेलर उपलब्ध है, तो ज्ञानवर्धक साहित्य के लिए सर्वोदय साहित्य भंडार। नई पीढ़ी के रुझान के लिए बुरहानी का रीडर्स पैराडाइस भी मौजूद है।।
एक समय वह भी था, जब फुटपाथ से पुराने ज्ञानोदय और सारिका के अंक पाठकों के घर पहुँचने लगे। कुछ पुरानी किताबों की दुकानों से कुबेरनाथ राय भी हाथ लग गए ! विषाद योग और निषाद बाँसुरी साथ साथ बजने लगी। बिमल मित्र, शंकर और शिवाजी सावंत, अज्ञेय और भारती के साथ बुक-शेल्फ में स्थान पाने लगे। मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेंद्र यादव ने नई कहानियों को एक धरातल दिया, ऊँचाई दी। मन्नू भंडारी, रवींद्र-ममता कालिया, अमरकांत, ज्ञानरंजनशैलेष मटियानी जैसे अनगिनत नाम आज भी जिस महल को संजोए हुए हैं, क्या वह किताब महल नहीं।
सृजन का संसार ही किताब महल है। यहाँ रानियों का नहीं, कहानियों का वास होता है। यहाँ बड़े बड़े आदमकद आइनों के सामने केश-विन्यास नहीं होता, शेखर एक जीवनी, राग दरबारी और मैला आँचल जैसा
उपन्यास होता है। प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी के गीतों की निर्झरिणी यहाँ सदा प्रवाहित होती है। यहाँ हर पल सरस्वती का वीणा-वादन होता है। क्योंकि यह किताब-महल है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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