श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शंख प्रक्षालन…“।)
अभी अभी # 524 ⇒ शंख प्रक्षालन श्री प्रदीप शर्मा
हम कभी हाथ धोया करते थे, आजकल की पीढ़ी हैण्ड वॉश किया करती है। कबीर के समय में भी साबुन उपलब्ध था और आज भी। लेकिन आजकल सभी साबुन कंपनियों ने अपने अपने हैण्ड वॉश निकाल लिए हैं, कोरोना काल में हमने तबीयत से हाथ धोये। आप यह भी कह सकते हैं कि हम हाथ धोकर कोरोना के पीछे पड़ गए और उसे भगाकर ही दम लिया। हमने भले ही माथे पर टीका लगाकर संकल्प नहीं लिया हो, लेकिन अपने बाजुओं में एक बार नहीं, दो दो बार टीका लगाकर उसे हमेशा के लिए भगाने के लिए कमर जरूर कस ली है।
हैण्ड शेक, अथवा हाथ धोने को ही संस्कृत में हस्त प्रक्षालन कहते हैं। पूजा और हवन में पुरोहित बार बार हमारे हाथ में जल देते हैं, और मंत्र पढ़ते हैं, हस्त प्रक्षालयामि। प्रक्षालन का अर्थ धोना अथवा साफ करना होता है। शंख प्रक्षालन हठयोग की एक क्रिया है।।
शंख हमें समुद्र से प्राप्त होता है, इसे पूजा में भी रखा जाता है, और इसे मुंह से बजाकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। शंख को फूंककर बजाने के पहले धोया जाता है लेकिन शंख प्रक्षालन में इस शंख का कोई काम नहीं। हमारे शरीर में बड़ी और छोटी दो आँतें हैं। शंख प्रक्षालन बड़ी आँत की सफाई की प्रक्रिया है।
आयुर्वेद के अनुसार हमारी बीमारियों की जड़ हमारा बिगड़ा हुआ पाचन तंत्र है। कफ, पित्त और वात का अनुपात जब बिगड़ जाता है तो पेट में गड़बड़ शुरू हो जाती है। अपच, खट्टी डकार और कब्ज़ का महाकाल। कब तक चूरन चाटते रहें और एनीमा लगवाते रहें। महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग का तो आरंभ ही यम नियम से होता है। यम की चर्चा फिर कभी लेकिन उनका पहला नियम ही शौच है। सबसे पहले शरीर की आंतरिक सफाई। शौच बिना कहां संतोष ! उसके लिए कुंजल, जल नेति, धौती और वस्ति जैसी क्रियाएं करवाई जाती हैं लेकिन जहां मामला ज्यादा गड़बड़ होता है वहां शंख प्रक्षालन अर्थात् बड़ी आँत की सफाई करवाई जाती है।।
बड़ी खतरनाक सफाई है यह शंख प्रक्षालन। नमक और नीबू का गुनगुना पानी पीना। एक दो ग्लास नहीं, भरपेट भी नहीं, गले तक, जब तक उल्टी जैसा महसूस न होने लगे। फिर कुछ योगासन करवाए जाते हैं, जिससे डायफ़्राम यानी आँतों पर दबाव पड़ता है और उल्टी अथवा दस्त की संभावना बढ़ जाती है। शौच की त्वरित व्यवस्था का बदोबस्त भी करना ही पड़ता है। हमारे समय में खुले में शौच ही उपयुक्त था इस प्रक्रिया के लिए।
आप जितनी बार गर्म सलाइन वॉटर पीयेंगे, उतनी ही बार शौच की क्रिया भी संपन्न होगी। हम कमोड को तो कई बार फ्लश कर लेते हैं, क्या कभी अपने पाचन तंत्र को फ्लश किया है। पानी की टंकी की तरह इस पेट की सफाई भी तो जरूरी है। शंख प्रक्षालन की यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है, जब तक मल की जगह डिस्टिल्ड वॉटर की गंगा न बह निकले। जी हां, शंख प्रक्षालन से यह चमत्कार होता है, हमारी बड़ी आँत की सफाई हो जाती है, जिसके साथ पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है।।
दो ढाई घंटे की इस क्रिया के बाद आप किसी काम के नहीं रहते। दिन भर आपको आराम करना पड़ता है और केवल दोनों वक्त मूंग की दाल की खिचड़ी का सेवन करना पड़ता है और यह भी खयाल रखना पड़ता है कि आपकी खिचड़ी में जरूरत से ज्यादा घी हो। क्योंकि यही घी अंदर जाकर अभी अभी साफ हुई आंतों को लुब्रिकेट करता है, चिकनाई प्रदान करता है। जब भी भूख लगे, बस खिचड़ी का ही सेवन किया जाए।
शंख प्रक्षालन की यह क्रिया बार बार दोहराई नहीं जाती , क्योंकि इसके बाद शरीर में बहुत कमजोरी आ जाती है। आज के व्यस्त जीवन में समयाभाव के साथ साथ, इतना खुला स्थान, प्राइवेसी और योग्य प्रशिक्षक के अभाव में अन्य कारगर उपचार की शरण में जाना ही श्रेयस्कर है।।
आजकल योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा के केंद्र हर जगह उपलब्ध हैं। अपनी रुचि, सुविधा और बटुए की सीमा को देखते हुए साल भर में , कम से कम पंद्रह दिन तो हम अपने आपको दे ही सकते हैं। कौन नहीं चाहता स्वस्थ और प्रसन्न रहना। आखिर कुछ दिन तो निकालिए अपने आप के लिए। गाड़ियों की तरह अपने खुद की सर्विसिंग पर ध्यान दें। शरीर अच्छा एवरेज देगा ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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