श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आओ एन्जॉय करें।)

?अभी अभी # 528 ⇒ आओ एन्जॉय करें ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

(Joy & enjoy)

खेलना कूदना, मौज मस्ती करना, सब एन्जॉय करना ही तो है आज की पीढ़ी के लिए। क्या खुशी और आनंद भी कभी अलग हुए हैं। लगता है अंग्रेजी के शब्द एन्जॉय में जॉय शब्द भी इनबिल्ट ही है।

जरा John Keats की जॉय की परिभाषा तो देखिए ;

A thing of beauty is a joy forever… 

एक सुंदर चीज अंतहीन खुशी का स्रोत है। इसमें शाश्वत सुंदरता है जो कभी फीकी नहीं पड़ती। खुशी को तो महसूस किया जा सकता है, लेकिन एन्जॉय का अर्थ तो मौज मस्ती होता है, जो बाहरी होती है।

एक बच्चा जॉय और एन्जॉय में फर्क नहीं समझता। उसके लिए तो उसका टॉय ही जॉय और एंजॉयमेंट का साधन है। उम्र के साथ साथ उसके खिलौने भी बदलते रहते हैं, क्योंकि वह तो खुद ही एक कच्ची मिट्टी का घड़ा होता है। जिसे हम teens कहते हैं, यानी तेरह से उन्नीस वर्ष के बीच की उम्र, उसमें वह जैसा ढल गया, सो ढल गया। बाद में तो सिर्फ उसे तराशा ही जा सकता है। ।

युवा पीढ़ी की उम्र खाने पीने और मौज करने की होती है, जैसे अंग्रेजी में Eat, drink and be merry कहा जाता है। वे जॉय और एन्जॉय में फर्क नहीं करते क्योंकि उनके जीवन में के एल सहगल नहीं बाबा सहगल, हनी सिंह और अरिजीत सिंह होते हैं। वे तबला हारमोनियम के नहीं, डीजे और zaaz के शौकीन होते हैं। हमारी उम्र में हमने भी अंग्रेजी धुनों पर डांस किया है, एन्जॉय किया है।

शायद यही फर्क है जॉय और एन्जॉय में। आज की शादियों में जब स्टेज पर डांस होता है, तब जरा अपने आसपास की युवा पीढ़ी पर नजर डालकर देखिए, उनके पांव संगीत की धुन पर ऐसे थिरकने लगते हैं, मानो वे अभी नाचने लगेंगे। उनकी खुशी कब की आनंद में ढल चुकी है, जॉय एन्जॉय का भेद कबका मिट चुका है। उनके लिए वही समाधि अवस्था है, परमानंद है। ।

वह सर्वेश्वर नटवर नागर, रासबिहारी कृष्ण कन्हैया भी तो सोलह कलाओं से परिपूर्ण है।

संगीत, साहित्य और नृत्य की साधना भी तो ईश्वर की आराधना ही है। उसकी कलाओं में आकंठ डूब जाना ही वास्तविक आनंद है। जॉय एन्जॉय से ऊपर भी एक अवस्था है, जिसे परमानंद सहोदर कहा गया है, एक अतीन्द्रिय अनुभूति जिसे अंग्रेजी में ecstasy कहते हैं।

अनुभूति की सभी अवस्थाओं से गुजरने के पश्चात् ही तो ईश्वर की अनुभूति संभव है। हर अवस्था एक पड़ाव है, बाहर अगर मौज मस्ती है तो अंदर आंतरिक आनंद। कब आपकी मौज मस्ती में बदल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता, अतः… 

हर पल को एंज्वॉय करें, मन की मौज और मस्ती आपका इंतजार कर रहे हैं। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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