श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ईमानदारी की पाठशाला।)

?अभी अभी # 530 ⇒ ईमानदारी की पाठशाला ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ईमानदार होने का मतलब सत्यनिष्ठ होना है। पाठशाला में हम शिक्षा ग्रहण करते हैं, शिक्षा ही सीख है, सबक है। अंग्रेजी में हमने पढ़ा था, honesty is the best policy. हमें तो जीवन में एलआईसी से बढ़िया कोई पॉलिसी नज़र नहीं आई। हम ईमानदारी से पढ़ लिख लिए, लेकिन फिर भी हमारे पास ईमानदारी की कोई डिग्री अथवा डिप्लोमा उपलब्ध नहीं है। लेकिन हां, नौकरी के वक्त हमें हमारी डिग्रियां ही काम आई थी, और उसके साथ एक चरित्र प्रमाण पत्र। He bears a good moral character.

हिंदी में इसे मेहनती और ईमानदार व्यक्ति कहा जाता है।

परसाई की भाषा में ईमानदारी का कोई तावीज नहीं होता। बालक को सभी तरह के अनिष्ट से सुरक्षा के लिए माएं उनके गले में गंडा और तावीज अवश्य बांधती थी। काश आधार कार्ड, पैनकार्ड अथवा बीपीएल कार्ड की तरह कोई ईमानदारी का कार्ड भी होता, तो हमारा देश कितना खुशहाल हो जाता।।

ईमानदारी को आप गरीबी और अमीरी अथवा धर्म और जाति की तरह अलग नहीं कर सकते। गरीब इसीलिए गरीब है, क्योंकि वह ईमानदार है, और अमीर इसलिए अमीर है, क्योंकि वह बेइमान है, इस राय से हम इत्तेफाक नहीं रखते। वैसे होने को तो इसका उल्टा भी हो सकता है। लेकिन यह सब कोरी बकवास है।

हम कितने ईमानदार हैं, यह केवल हम जानते हैं। जिसने आपको ठगा वह बेईमान, और आपने जिसको ठगा वह सिर्फ बेचारा। अमीर पर हमें भरोसा रहता है, क्योंकि वह इज्जतदार होता है, बेचारा गरीब क्या नहाए और निचोड़े, उस पर कौन भरोसा करता है।।

हमारे घरों में नौकर चाकर और काम वाली बाई होती है। कुछ घरों में भरोसेमंद बाइयां होती हैं, जिनके भरोसे लोग घर खुला भी छोड़ जाते हैं और कहीं कहीं इन पर निगरानी रखनी पड़ती है।

मेरी काम वाली बाई भी एक औसत काम वाली बाई है। पैसा अगर उधार लेती है, तो समय पर लौटा भी देती है। फिलहाल उस पर एक हजार रुपए उधार थे, जो वह लौटा नहीं पाई।।

एक दिन सुबह वह मेरी पत्नी को पांच सौ रुपए देकर चली गई, लेकिन कुछ बोली नहीं, क्योंकि पत्नी फोन पर व्यस्त थी। पत्नी ने मुझे कहा, देखो उसने पांच सौ आज लौटा दिए, अब केवल पांच सौ ही बाकी रहे। बात की धनी और सच्ची है अनिता।

अनिता उसका नाम है। वह दिन में दूसरी बार आई तब उसने बताया, ये पांच सौ रुपए आपके भगवान के कमरे में अलमारी के नीचे पड़े थे। झाड़ते वक्त मुझे नजर आए तो मैने उठा लिए। उस समय आप फोन पर व्यस्त थी, और मुझे जल्दी थी, इसलिए आपको बता नहीं पाई। जरा सावधानी रखा करो, पैसे कौड़ी का मामला है।।

मैं समझ गया, गलती मेरी थी। कमरे में पंखा चल रहा था, कुछ नोट नीचे गिरे थे, कब हवा में एक नोट अलमारी के नीचे चला गया। उसने घटना का उपसंहार यह कहकर किया कि, आपके हजार रुपए मुझे अभी आपको लौटाने हैं, जल्द ही लौटा दूंगी। ये पैसे तो आपके ही थे।

मैं शायद उसकी जगह उस परिस्थिति में होता, तो मेरा ईमान डौल जाता। ‌मुझे इस परिस्थिति में वह मुझसे अधिक ईमानदार लगी।

मुझे अपने आपको बेईमान कहने में कोई शर्म नहीं, लेकिन सच्चा ईमानदारी का ताबीज तो मैने उस कम वाली अनिता के गले में लटका पाया।

फिर भी कुछ लोग यही कहेंगे, आपकी बात सही है, लेकिन इन लोगों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। अब मैं किस पर भरोसा करूं, मेरी अनिता पर अथवा लोगों की राय पर।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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