श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लेखन और अवचेतन।)

?अभी अभी # 553 ⇒ लेखन और अवचेतन ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

लेखन का संबंध सृजन से है, चेतना और विचार प्रक्रिया से है। पठन पाठन, अध्ययन, चिंतन मनन, अनुभव और अनुभूति के प्रकटीकरण का माध्यम है लेखन, जिसमें वास्तविक घटनाओं एवं कल्पनाशीलता का भी समावेश होता है। एक अच्छे लेखक के लिए, एक अच्छी याददाश्त और अनुभवों का खजाना बहुत जरूरी है। अगर चित्रण रुचिकर ना हुआ, तो लेखन नीरस भी हो सकता है।

जिन लोगों का चेतन अधिक सक्रिय होता है, वे अच्छे लेखक बन जाते हैं लेकिन जिनका अवचेतन अधिक प्रबल होता है, वे केवल सपने ही देखते रह जाते हैं।।

लेखन की ही तरह एक संसार सपनों का भी होता है, जहां कथ्य भी होता है, घटनाएं भी होती है, सस्पेंस, रोमांस और मर्डर मिस्ट्री, क्या नहीं होता अवचेतन के इस संसार में ! लेकिन अफसोस, यहां कर्ता केवल दृष्टा बनकर सोया होता है, मानो किसी ने उसके हाथ पांव बांधकर पटक दिए हों। जब इस लाइव टेलीकास्ट वाले एपिसोड का अंत आने वाला होता है, तब उसे सपने के अवचेतन के चंगुल से मुक्त कर होश में ला दिया जाता है। ना कोई डायरी ना कोई वीडियो शूटिंग, सब कुछ सपना सपना।

सपना मेरा टूट गया। जागने पर चेतन मन अवचेतन की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश जरूर करता है, लेकिन कामयाब नहीं होता, क्योंकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। जागृत और सुषुप्तावस्था में यही तो अंतर है। सोते समय बहुत कुछ याद रहता है, जो अवचेतन को प्रभावित करता है, लेकिन जागने के बाद अवचेतन मन इतना प्रभावित नहीं करता। सपनों के सहारे कोई लेखक नहीं बना। केवल जाग्रत प्रयास से ही कई लेखकों के सपने सच हुए हैं और वे एक अच्छा लेखक बन पाए हैं।।

लेखन साहित्य का विषय है मनोविज्ञान का नहीं, सपने और अवचेतन, मनोविज्ञान का विषय है, लेखन का नहीं। लोग कभी सपनों को गंभीरता से नहीं लेते, उनकी अधिक रुचि सपनों को सच करने में होती है, जो जाहिर है, कभी कभी सपने में भी सच हो जाती है, जब वे कहते हैं, मैने तो सपने में भी नहीं सोचा था, मैं एक सफल लेखक बन पाऊंगा।

सपनों का एक लेखक के जीवन में कितना योगदान होता है, यह तो कोई लेखक ही बता सकता है। सुना है लेखन में एक लेखक को इतना आत्म केंद्रित होना पड़ता है कि भूख प्यास और नींद सब गायब हो जाती है। मुर्गी की तरह विचार अंडा देने को बेताब होते हैं और तब तक देते रहते हैं, जब तक सुबह मुर्गा बांग नहीं दे देता। उधर सूर्योदय और इधर हमारे सूर्यवंशी जी ऐसी तानकर सोते हैं कि आप चाहो तो घोड़े बिकवा लो।

सपना तो पास ही नहीं फटक सकता उनके और गहरी नींद के बीच।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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