श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दांत, खाने और दिखाने के…“।)
अभी अभी # 590 ⇒ दांत, खाने और दिखाने के… श्री प्रदीप शर्मा
सभी जानते हैं, हम जिन दांतों से खाते हैं, वही दांत दिखाते भी हैं। वैसे भी बत्तीस दांत कम नहीं होते एक आदमी के लिए। लेकिन हाथी के दांत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग, यानी जनाब गजराज के पास दांतों के दो सेट्स होते हैं, आप चाहें तो उन्हें outer teeth और inner teeth भी कह सकते हैं। बाहर के दो दांत हाथी दांत के होते हैं और अंदर के दांत सिर्फ हाथी के होते हैं। कहते हैं, शेर के दांत गिनना आसान नहीं, लेकिन हाथी के अंदर के दांत, फिर भी कोई नहीं गिनता।
खुदा मेहरबान तो हाथी पहलवान ! मनुष्य की तुलना में ईश्वर ने हाथी को अधिक विशाल और ताकतवर तो बनाया ही है, खाने और दिखाने के दांतों से नवाजा भी है। चलो, हमारी हाथी की तुलना में एक ही बत्तीसी सही, हाथ तो भगवान ने दो दो दिए हैं, और उधर नाम के हाथी और हाथ एक भी नहीं। एक सूंड लेकर घूमते फिरो जंगल जंगल।।
इतना बड़ा हाथी, फिर भी देखो उसकी किस्मत, उस पर सवार महावत और अंकुश ही जिसका रिमोट कंट्रोल। कहावत है, मरा हाथी भी सवा लाख का होता है, लेकिन बेचारा जिंदा हाथी, जब बाजार में निकलता है, तो एक एक पैसा अपनी सूंड से उठाकर अपने मालिक को देता है। और मालिक हाथी मेरे साथी रामू को ज्ञान देता है दुनिया में रहना है तो काम करो प्यारे। हाथ जोड़ सबको सलाम करो प्यारे। बच्चों, बजाओ ताली।
हमारे खाने के दांत जितने कीमती हैं उतने ही कीमती हाथी के दिखाने के दांत हैं। हाथी की कीमत उसके दांत हैं, और हमारी कीमत हमारे दांत। हम तो अपने दांतों को सुरक्षित रख भी सकते हैं, उन्हें सड़ने और कीड़ों से बचा भी सकते हैं, लेकिन लोग हैं कि बेचारे हाथी के दिखाने वाले दांत भी नहीं छोड़ते। अगर कोई आपके दोनों हाथ तोड़ दे, तो कैसा लगे।।
ईश्वर का न्याय भी अजीब है। जिसे बल देता है, उसे बुद्धि नहीं, और जिसे बुद्धि देता है उसे बल नहीं। फिर भी अर्थ का अनर्थ हो ही जाता है, जब किसी को बल बुद्धि की जगह बाल बुद्धि दे देता है। मूक प्राणियों से पशुवत व्यवहार क्या बाल बुद्धि की श्रेणी में आता है। अपने मनोरंजन के लिए उनका शिकार करना, अपने स्वार्थ और लालच के चलते हाथियों के दांतों की तस्करी करना क्या मानवता और इंसानियत का अपमान नहीं।
कहावत में प्रतीक भले ही हाथी हो, लेकिन वास्तविकता तो यही है, इंसान के खाने के दांत और हैं और दिखाने के और। एक ओर ऊपर से शरीफ इंसान और अंदर से शैतान नहीं हैवान और दूसरी ओर कहां बलशाली लेकिन बेचारा नाम का गजराज जिसके दिखाने के दांत ही उसके लिए मुसीबत बन जाते हैं।।
इंसान को छोड़कर हर प्राणी जैसा अंदर से है, वैसा ही बाहर से है। काश, हम भी वैसे ही होते, जैसा हमें भगवान ने बनाया है। पहले भगवान ने इंसान को बनाया, आज इंसान भगवान के ही मंदिर बना रहा है।
हमारे दांत खराब हुए तो हम तो पैसा खर्च कर नई बत्तीसी बनवा लेते हैं जो खाने के काम भी आती है और दिखाने के भी। काश, हाथियों के लिए भी कोई दांत का दवाखाना होता। जब उनके भी दांतों में दर्द होता तो कोई गजेंद्र मोक्ष उनकी भी पीड़ा हर लेता।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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