श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गटागट।)

?अभी अभी # 594 ⇒ गटागट ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ काम अगर फटाफट किए जाते हैं तो बहुत कुछ ऐसा भी होता है जीवन में, जो आपको अपने अतीत और बचपन से जोड़ता है। वही नाम और वही स्वाद की जब बात आती है, तो अनायास गटागट की याद आ जाती है।

कुछ बच्चों को दूध पिलाना भी टेढ़ी खीर होता है। उन्हें जब तक आप उनकी मनपसंद चॉकलेट का लालच ना दो, वे दूध को हाथ ही नहीं लगाते। कुछ बच्चे दवा के नाम पर ना तो कोई गोली ही निगल पाते हैं और ना ही कड़वी दवा को चम्मच से ही पी पाते हैं, सौदेबाजी और ब्लैकमेलिंग दोनों ओर से होती है और समझौता हो जाने के बाद दवा के साथ, गटगट, दूध भी अंदर। शायद इसी गटगट से गटागट शब्द भी बना हो।।

गटागट को तो सिर्फ मुंह में रखने की देरी है, यह अपना काम शुरू कर देती है। बस समस्या यह है कि या तो कुछ लोगों ने इसका नाम ही नहीं सुना है, अथवा अगर सुना भी है तो कुछ मीठा हो जाए, जैसे विज्ञापनों की आंधी में बेचारी गटागट कहीं दुबकी पड़ी है।

गटागट है क्या चीज हमें भी चखाओ, ये मिलती कहां है, हमें भी बताओ। तो हम भी इसके जवाब में सिर्फ यही कहेंगे, आप खुद ही ढूंढो, खाओ, और इसका स्वाद जान जाओ।।

मुख शुद्धि के आजकल कई तरीके हैं। जब से स्वच्छ भारत अभियान चला है, पान गुटखे के पीछे लोग हाथ धोकर पड़े हैं। फिर भी चोरी ना सही, हेराफेरी तो अभी भी चल ही रही है। दो बीघा जमीन के गार्डन में, खुले में, खड़े खड़े खाने में, और पसंदीदा आइटम्स ढूंढने में ही इतना व्यायाम हो जाता है कि मुख शुद्धि के लिए एक पान की जगह तो आसानी से बन ही जाती है। कुछ महिलाओं के तो पर्स में ही कच्ची कैरी और इमली के स्वाद वाली कैंडी आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

गटागट को आप एक तरह की कैंडी भी मान सकते हैं, बस इस बेचारी का कोई ब्रांड अथवा आकर्षक पैकिंग नहीं होता। रसगुल्ले की तरह हाथ में उठाओ और मुंह में डाल लो। आंवला, इमली, गुड़ और अमचूर से बनी गटागट के ऊपर बूरा शकर का कोटिंग, इसको एक स्वादिष्ट चूरन का स्वाद प्रदान कर देता है।।

हमारे देश में जितना प्रसिद्ध चना जोर गरम है, उतना ही मशहूर चूरन भी है। उधर तबीयत से चना जोर गरम, चाट, गराडू और अटरम, शटरम खाया और इधर हिंगाष्ट और अनारदाना का चूर्ण खाया। इधर हमने कुछ नहीं खाया, बस एक गटागट खाया, बात बराबर।

अगर आपके शहर में बॉम्बे सुपारी स्टोर नहीं, तो किसी भी तम्बाकू अथवा सुपारी वाले की दुकान में, अथवा हवाबाण हरडे की दुकान में, कांच की शीशियों में रखी गटागट आप फटाफट खरीद लें और फुर्सत से चखते रहें। इसे कहते हैं, बिना नशे का चखना। कुछ खाना पीना नहीं, फिर भी गटागट।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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