श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “खेत और बागड़…“।)
अभी अभी # 605 ⇒ खेत और बागड़
श्री प्रदीप शर्मा
खेत अगर फसल है तो बागड़ उसकी हद और सुरक्षा। खेत बिना बागड़ के हो सकते हैं, घर बिना छत और दीवार के नहीं। ईश्वर की इस बेहद सुंदर वसुंधरा का कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। ना कोई हद, ना कोई छत और ना कोई दरो दीवार। यह पृथ्वी स्वयं अपने आप में स्वर्ग का द्वार है। खुला आसमान ही इसकी छत है और सूरज, चांद सितारे, इसकी आंख के तारे।
हम बच्चे इसके आंगन में घर घर खेलते हैं। हम अपने घर, अपनी छत, अपनी दीवार, अपनी गृहस्थी अलग बना लेते हैं। जमीन को बांट लेते हैं, अपना देश, अपना संविधान और अपना झंडा बना लेते हैं और दुनिया में एकता, प्रेम, शांति और भाईचारे की बातें करते हैं। फिर भी भारत में महाभारत होता है और विश्व में विश्व युद्ध।।
जीवः जीवस्य भोजनं। इंसान जिंदा रहने के लिए कुछ तो खाएगा ही। कुछ खाने के लिए उसे कुछ बोना भी पड़ेगा। वनस्पति और प्राणी दोनों में जीव है, जिनके कारण ही यह सृष्टि सजीव है। यह सब इस पृथ्वी पर मौजूद पांच तत्वों का ही प्रताप है जिसे हम पंच तत्व कहते हैं।
आइए खेत पर चलें ! कृषि हमारा प्रमुख उद्योग रहा है। काम के बदले अनाज ही, कभी हमारी आर्थिक व्यवस्था थी। अनाज से आप कुछ भी खरीद सकते थे। हमने अन्न का अकाल भी देखा है और कृषि की क्रांति भी। आप जवाहर लाल को भले ही भूल जाएं, लाल बहादुर को नहीं भूल सकते। आज किसान के भले के लिए ही कानून बनाए और वापस लिए जा रहे हैं। खेत खामोश है, बागड़ परेशान।।
हमने भी एक खेत बोया है लोकतंत्र का, जहां संविधान के अनुसार ही फसल बोई और काटी जाती है। खेत का मालिक और किसान एक चुनी हुई सरकार होती है और उस खेत की सुरक्षा के लिए उसकी हद और बागड़ की भी संवैधानिक व्यवस्था है, जिसे आप चाहें तो विपक्ष कह सकते हैं।
जब तक खेत और बागड़ में आपसी समझदारी है, तालमेल है, खेत भी सुरक्षित है और फसल भी। बागड़ थोड़ी सूखी और कंटीली जरूर होती है, लेकिन जानवरों से खेत को दूर रखने में मदद करती है। कभी कभी जब बागड़ की नीयत हरी हो जाती है, यह फसल पर ही डोरे डालना शुरू कर देती है और खेत बागड़ एक हो जाते हैं।।
कोई बागड़, कोई दीवार, कोई सुरक्षा लोकतंत्र के इस खेत पर अगर मौजूद नहीं हुई तो फिर इसकी फसल का तो भगवान ही मालिक है। रासायनिक खाद का जहर वैसे ही लोगों की सेहत और खेत की मिट्टी खराब कर रहा है, बागड़ और खेत के बीच कोई नफरत के बीज ना फैलाए। खेत की फसल लोगों तक पहुंचे, किसान को उसका उचित मूल्य मिले, फिर से हो एक ही धरती और एक ही आसमां। कितना सुहाना हो वह समा।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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