श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अक्षर जगत…“।)
अभी अभी # 615 ⇒ अक्षर जगत
श्री प्रदीप शर्मा
“अ” से ही शुरू होती अक्षरों की दुनिया ! अम्बर, अवनि, अग्नि, अखिलेश, अमर, अटल, असीम, अनंत, अक्षत, अनिमेष।
शब्द पहले अक्षर था, शब्द ब्रह्म, और जिसका क्षरण न हो वह कहलाया अक्षर।
ब्रह्म की तरह शब्द सब तरफ व्याप्त है, क्योंकि शब्द अपने आप में अक्षरों का समूह है, अक्षर भी सभी ओर व्याप्त है, लेकिन ब्रह्म की तरह दृष्टिगोचर भी नहीं होता।।
ब्रह्म ने अपने आप को व्यक्त किया ! पहले श्रुति, स्मृति और तत्पश्चात पुराण। वेदों की रचना ईश्वर ने की होगी, लेकिन हमारे अक्षर का तो कोई अतीत ही नहीं। एक ॐ से सृष्टि का निर्माण हो जाता है। शब्दातीत अक्षर तो फिर सनातन ही हुआ।
वाणी में वाक्, शब्द अवाक !
अक्षर में बीज, बीजाक्षर मंत्र।
बगुलामुखी, त्रिपुरा-सुंदरी,
सौन्दर्य-लहरी, कुंडलिनी माँ जगदम्बे।
कहीं भैरव तंत्र तो कहीं जन जन का गायत्री-मंत्र।
और सभी मंत्रों में श्रेष्ठ सद्गुरु का गुरु-मंत्र।।
कितनी संस्कृति, कितनी भाषाएँ, कितने ग्रंथ ! अक्षर ही अक्षर। सौरमंडल में व्याप्त शब्द और गुरुवाणी का सबद। हमने-आपने बोला, वह शब्द, और एक नन्हे अबोध बालक में, परोक्ष रूप से विराजमान परम पिता, लीला रूप धारण कर, कोरे कागद पर छोटी छोटी उँगलियों में कलम पकड़े, मुश्किल से अक्षर- ज्ञान प्राप्त करता हुआ, जगत को यह संदेश देता हुआ, कि ज्ञान की परिणति अज्ञान ही है।
आज वही अक्षर कागज़ कलम का मोहताज नहीं ! एक नया संसार आज हमारी मुट्ठी में है। यह गूगल की अक्षरों की दुनिया है। शब्दों का भंडार है उसके पास ! पर प्रज्ञा नहीं, वाक् नहीं ! यहाँ श्रुति, स्मृति नहीं, सिर्फ मेमोरी है। कोई किसी का गुरु नहीं, कोई किसी का शिष्य नहीं ! कोई रिसर्च नहीं, केवल गूगल सर्च और गूगल गुरु को दक्षिणा, डेटा रिचार्ज।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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