श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “काली मूँछ…“।)
अभी अभी # 651 ⇒ काली मूँछ
श्री प्रदीप शर्मा
मूँछें मर्द की होती हैं ! वे शुरू में काली होती हैं, लेकिन उम्र के साथ सफेद होती चली जाती है। लेकिन चावल की एक किस्म होती है, जिसे भी काली मूँछ कहा जाता है। यह चावल काला नहीं सफेद होता है, लेकिन इसकी लंबाई के आखिर में हल्का सा कालापन दिखाई देता है, शायद इसीलिए इसे काली मूँछ कहते हों।
कृष्ण और सुदामा की दोस्ती में चावल का जिक्र ज़रूर होता है। मुट्ठी भर चावल की दास्तान ही कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की पहचान है। आज भी आप जगन्नाथ पुरी चले जाएं, जगन्नाथ के भात का भोग ही प्रसाद के रूप में भक्तों को प्राप्त होता है। चावल को अक्षत भी कहते हैं, बिना कंकू-चावल के पूजा नहीं होती। किसी खास अवसर पर निमंत्रण हेतु पीले चावल भिजवाए जाते हैं। और तो और बिना चावल के हाथ भी पीले नहीं होते। सावधान के मंत्र के साथ अक्षत वर्षा होती है, और वर-वधू सावधान हो जाते हैं।।
आप देश के किसी भी कोने में चले जाएं, भोजन में चावल का स्थान नमक की तरह निश्चित है। बासमती, जैसे कि इसके नाम से ही जाहिर है, खुशबू वाला चावल है। बिरयानी कहीं भी खाई जाए, बिना चावल के नहीं बनती।
यूँ तो छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा गया है, लेकिन पॉलिश और खुशबू वाले बासमती चावल की तुलना में यहाँ का चावल अधिक स्वास्थ्यवर्धक है। जिस चावल में स्टार्च कम हो, वह अधिक लाभप्रद होता है। मणिपुर में एक काले चावल की प्रजाति पाई जाती है। औषधीय गुण की अधिकता के कारण इसकी कीमत 1800 ₹ किलो है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट अधिक मात्रा में पाया जाता है।
पसंद अपनी अपनी, स्वाद अपना अपना। ग्वालियर के आसपास पाया जाने वाला काली मूँछ चावल बासमती चावल की तुलना में आजकल कम प्रचलन में है। मूँछ हो या न हो, कभी काली मूँछ चावल का स्वाद भी चखकर देखें।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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