श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जानवर और इंसान…“।)
अभी अभी # 655 ⇒ जानवर और इंसान
श्री प्रदीप शर्मा
जानवर और इंसान की तुलना नहीं की जा सकती। जब इंसान से इंसान की तुलना में राजा भोज और गंगू तेली आमने सामने आ खड़े होते हैं तो बेचारे एक जानवर की क्या बिसात ! देवताओं को दुर्लभ यह मानव देह। बड़े भाग मानुस तन पायो। लख चौरासी बाद यह मौका हाथ आता है मनुष्य जन्म का। और बेचारा जानवर, नगरी नगरी द्वारे द्वारे की तरह, योनि योनि भटकता, कीट पतंग, खग, कभी जलचर तो कभी नभचर। या फिर जानवर बन जंगल में घास चर – विचर।
यह सब मानव बुद्धि का ही तो खेल है। कभी विश्व विजय तो कभी सम्राट। तीनों लोकों तक जिसकी कीर्ति का गुणगान होता है, स्वयं ईश्वर जब मानव देह धारण कर अवतरित होता है। दुनिया का इतिहास भरा पड़ा है, मनुष्य के पुरुषार्थ और उपलब्धियों से। उसकी कैसी तुलना किसी जानवर से।।
उसके बुद्धि कौशल और बाजुओं की ताकत का क्या कोई मुकाबला करेगा। सबसे पहले उसने अपने लिए रोटी, कपड़ा और मकान तलाशा। उसने बस्ती और परिवार की नीव डाली। जब कि जानवर अपने तन ढांकने के लिए दो सूत कपड़े की व्यवस्था तक नहीं कर पाया। इंसान ने भोजन पकाकर खाना सीखा जब कि जानवर, जानवर ही रहा। बंदर तो अदरक का स्वाद नहीं जानता बाकी सृष्टि के प्राणी तो बेचारे फल, फूल, वनस्पति, कीट पतंग खा खाकर ही अपना भरण पोषण करते रहे।
जीव: जीवस्य भोजनं।
उधर शेर जंगल का राजा बन शिकार करने लगा। उसके जंगल राज में बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती और उसकी व्यवस्था को पर्यावरण के लिए श्रेष्ठ ही नहीं माना गया, उसे मनुष्य ने प्रोजेक्ट टाइगर का नाम दे दिया।
और इधर अपनी सुविधा के लिए उसने जंगल काट डाले, पर्वतों पर टूरिस्ट सेंटर खोल डाले। नदियों पर बांध बना बिजली तक बना डाली। जितना जरूरी पर्यावरण, उतना ही जरूरी मानव विकास।।
जानवर ने हमेशा जानवर को ही खाया। जब भूख लगी तब ही खाया। रोज अपने दाने पानी की व्यवस्था की। अपने भोजन को किसी कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा। भले ही शेर जंगल का राजा रहा हो। उसने अपने रहने के लिए किसी आलीशान सुविधासंपन्न पंच सितारा गुफा की व्यवस्था नहीं की। आखिर जानवर है, जानवर ही रहेगा।
और इधर मनुष्य को देखिए उसके खेल देखिए !
गुलाम, बेगम, बादशाह।
कभी शेर का शिकार करते थे तो कभी तीतर बटेर का ! और यह इंसान इतना शक्तिशाली हो गया कि जानवर को ही खाने लग गया। जानवर बेचारे के पास तो सिर्फ नुकीले दांत और नुकीले पंजे, लेकिन इंसान के पास तीर कमान और बंदूक। बेचारा जानवर क्या मुकाबला कर पाता इंसान से।।
इंसान जाग उठा और जानवर सोता ही रह गया। जानवर अगर जाग भी जाए तो कभी इंसान नहीं बन सकता और शायद बनना भी नहीं चाहता लेकिन इंसान को जानवर बनने में अधिक समय नहीं लगता। क्या भरोसा कब उसके अंदर का जानवर जाग जाए ! यह अंदर का जानवर बाहर के किसी भी जानवर से अधिक खतरनाक है। काम, क्रोध, लोभ और मोह जानवर में कहां ? लेकिन बदनाम तो जानवर को ही होना है, क्योंकि इंसान तो दूध से धुला हुआ है और जानवर क्या पता नहाता, धोता अथवा ब्रश भी करता है या नहीं। शराब पीकर आदमी अपनी पत्नी को मारे तो वह जानवर हो जाता है। वाह रे चतुर मानव और तेरी बुद्धि। युद्ध तुम लड़ो और बलि हम जानवर की। पूजा तुम करो तो भी गर्दन हमारी। कभी हम वफादार कुत्ते, तो कभी कुत्ते कमीने। वाह क्या स्तर है इंसानियत का।
बकरे की अम्मा आज भी कब तक खैर मनाएगी, घर की मुर्गी तो दाल बराबर ही कहलाएगी। वाह रे इंसान, और तेरी इंसानियत ! आसमान के पंछी तू मारकर खा जाए, समंदर की मछली भी तेरे लिए फिश करी और बातें अहिंसा और विश्व शांति की। जीव दया और गऊ सेवा की। धन्य हो हे मानव श्रेष्ठ तुम धन्य हो।
बड़ी दया होगी अगर हमारे लिए अपनी स्मार्ट सिटी में चरने के लिए थोड़ी घास छोड़ दो, अपने स्विमिंग पूल में हम पक्षियों को भी प्यास बुझाने दो। हमें अभय दो। हमें भी जीने दो। आपके ही अनुसार हममें भी ईश्वर का ही वास है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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