श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ऑंसू और मुस्कान”।)  

? अभी अभी # 81 ⇒ ऑंसू और मुस्कान? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

सुना है चेहरे को दिल की जुबान कहते हैं। सुना तो हमने यह भी है, ये ऑंसू मेरे दिल की जुबान है। चेहरा एक ही है, जिस पर कभी ऑंसू तो कभी मुस्कान है। जीवन में रात और दिन की तरह, अंधेरे और उजाले की तरह, कभी ऑंखों में ऑंसू आ जाते हैं, तो कभी चेहरे पर मुस्कान छा जाती है। शायर लोग ऑंसुओं की हजारों किस्म बताते हैं, ऐसा लगता है, मानो वे ऑंसुओं के सौदागर हो, लेकिन जब भी मुस्कान का जिक्र होता है, तो बस, एक इंच मुस्कुराकर रह जाते हैं।

ऑंसू पर हर दुखी इंसान का कॉपीराइट है। इतना ही नहीं, खुशी में भी अगर ऑंसू आ जाए, तो भी वे ऑंसू ही कहलाते हैं। सुख दुख से परे भी कुछ लोग होते हैं, जो बस प्याज के ऑंसू बहाते हैं। ।

ऑंसू अगर परिस्थिति की देन है, तो मुस्कान कुदरत की देन है। लो एक कली मुस्काई ! एक कली की मुस्कान और एक बालक की मुस्कान, कुदरत की और ईश्वर की मिली जुली मुस्कान है। अहैतुकी कृपा की तरह ही एक कली की मुस्कान और एक बच्चे की मुस्कान का कोई हेतु नहीं होता, क्योंकि इस मुस्कान के पीछे ना तो कोई प्रयत्न होता है, और न ही कोई हेतु।

मुस्कान में ईश्वर का वास है। तस्वीर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की हो या योगेश्वर कृष्ण की, उनके चेहरे पर शांत और सौम्य मुस्कुराहट देखी जा सकती है। मुस्कुराहट एक स्थायी भाव है, जब कि हंसना और रोना जीव की परिस्थिति पर निर्भर है। ईश्वर प्रकट रूप से कभी हंसता रोता नहीं। करुणासागर होते हुए भी वे सदा मुस्कुराने के लिए ही नियुक्त हुए हैं।।

(He is destined to smile only.)

ईश्वर भी रोता होगा, ऑंसू भी बहाता होगा, कभी कभी अपनी ही बनाई दुनिया को देख हंसता भी होगा, लेकिन यह कार्य शायद वह प्रकृति पर छोड़ देता है। ईश्वर हमसे नाराज है और प्रसन्न है। कभी छप्पर फाड़कर देता है, कभी खड़ी फसल उजाड़ देता है। लेकिन जब वरदान देता है तो उसके चेहरे पर सदा मुस्कुराहट रहती है। जो रहबर है, दयालु है, करुणासागर है, वह कभी शाप नहीं द सकता, सिर्फ अपने भक्त की परीक्षा ले सकता है।

एक शब्द है आशीर्वाद !

वह आशीर्वाद समारोह वाला आशीर्वाद नहीं। वह आशीर्वाद जिसमें व्यक्ति का कल्याण निहित हो, जो केवल बड़े बुजुर्ग और सतगुरु की मुस्कुराहट के साथ ही प्राप्त होता है। बड़ा राज होता है इस मुस्कुराहट में, क्योंकि यह साधारण नहीं दिव्य(डिवाइन) होती है। ।

झूठ मूठ के आंसू और कुटिल मुस्कुराहट होगा कलयुग का चलन और मुखौटा, हमें उससे कुछ लेना देना नहीं। असली ऑंसू कभी थमते नहीं, दुख, विरह, विछोह और पश्चाताप के ऑंसुओं को कभी रोकना नहीं चाहिए, बह देना चाहिए। कलेजे का बोझ हट जाता है, चित्त निर्मल हो जाता है।

और ऐसी ही स्थिति में जो चेहरे पर मुस्कान आती है, वह दिव्य मुस्कान होती है। कुछ चेहरे ईश्वर ने बनाए ही ऐसे हैं, जो एक फूल की तरह सदा मुस्कुराते ही रहते हैं।

काश, दुनिया के हर बच्चे बूढ़े, जवान, स्त्री पुरुष, के चेहरे पर सदा मुस्कान हो, किसी की आंख में गम, अभाव और अवसाद के आंसू ना हो। तब शायद कोई बदनसीब इस तरह शिकायत भी ना करे ;

आज सोचा,

तो ऑंसू भर आए।

मुद्दतें हो गई मुस्कुराए ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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