श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नौकर चाकर”।)
अमीरों, सरकारी अफसरों और राज नेताओं के यहां नौकर चाकरों की कमी नहीं होती। नौकरी, नौकरी होती है, लेकिन कहीं कहीं, नौकरी के साथ साथ चाकरी भी करनी पड़ती है। वेतन लेकर काम करने वाले को कर्मचारी कहते हैं,
घर गृहस्थी के कामों के लिए नियुक्त किए गए सेवक को भी नौकर ही कहते हैं। श्रम कानून में नौकरी का पारिश्रमिक यानी वेतन तो है, लेकिन चाकरी तो नौकरी के साथ मुफ्त और मजबूरी में ही की जाती है।
अंग्रेज एक शब्द लाए नौकर के लिए, सर्वेंट ! हमने बहुत जल्द उसे पकड़ लिया। एक सर्वेंट नौकर भी हो सकता है और सेवक भी। अगर एक अफसर नौकर है, तो वह सिविल सर्वेंट है, बाबू एक शासकीय कर्मचारी है और चपरासी भृत्य है। ।
लोकतंत्र में इन सबके ऊपर एक प्राणी है, जो नौकरी नहीं करता, फिर भी मानदेय लेता है, गाड़ी, भत्ते, और अन्य सुविधाओं के साथ नौकर चाकर भी रखता है, फिर भी सिर्फ जनता का सेवक कहलाता है। यह सेवक चाकरी नहीं करता, राज करता है।
सेवक के कई प्रकार हैं, जिसमें दास्य भाव है, वह भी सेवक है, और जिसमें सेवा का भाव है, वह भी सेवक ही है। एक नर्स मरीजों की सेवा करती है और परिचारिका कहलाती है, आजकल पुरुष नर्स भी देखे जा सकते हैं। ।
सेवक को दास भी कहा जाता है। हमारे राजाओं के महलों में कर्मचारियों के अलावा दास दासियां भी होती थी। दास तो भक्त रैदास भी थे और दासी तो राजा दशरथ के राज्य की दासी मंथरा भी थी। हम यहां देवदासी का जिक्र नहीं छेड़ रहे।
अपने नाम के साथ ही दास लगाना कभी भक्ति भाव की निशानी था। कवियों में कालिदास और भक्ति काल में तो तुलसीदास और सूरदास के अलावा पुष्टि मार्ग में भी कई दास हुए हैं। तानसेन के गुरु भी संत हरिदास ही तो थे।।
मीरा तो दासी मीरा लाल गिरधर भी थी और कृष्ण की चाकर भी। श्याम मोहे चाकर राखो जी। गीता प्रेस के रामसुखदास जी महाराज भी एक विरक्त संत ही थे। गांधीजी के भी एक सहयोगी घनश्यामदास बिड़ला ही तो थे।
बंगाल में तो बाबू मोशाय भी हैं और दास बाबू भी। एक विलक्षण गायक येसुदास भी हुए हैं। लेकिन ईश्वर के करीब तो वही है, जो सेवक है, दास है। आजकल सेवा का जमाना है, आप भी नौकरी चाकरी छोड़ें, सेवाकार्य करें। खेती किसानी भी देश की ही सेवा है। कहीं जमीन अटका लें। एक एनजीओ खोल लें, सेवा की सेवा और मेवा का मेवा।।
सेवक बनें! सेवा में कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता। देश सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं। जनता के प्रतिनिधि बनकर सेवा करें। डिप्टी सी .एम., सी एम, और पी. एम . इंसान यूं ही नहीं बन जाता।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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