श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “फार्म हाउस और रिजॉर्ट”।)  

? अभी अभी # 92 ⇒ फार्म हाउस और रिजॉर्ट? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमारे पारंपरिक उत्सव और शादी ब्याह समय के साथ चलते हुए अपने रंग आज भी बिखेरते हुए चलते हैं। दीपावली का त्योहार हो या घर में कोई शादी का प्रसंग, वही उत्साह, वही उमंग ! वार त्योहार तो हर वर्ष आते हैं, लेकिन शादी ब्याह, और मंगल प्रसंग का योग कहां रोज रोज आता है। अपनी हैसियत और उत्साह में कभी कोई कमी नहीं आती।

पहले शादियां अक्सर घर में ही हुआ करती थी। घर के आगे ही एक छोटा सा टेंट लगा लिया, आड़ कर ली, तब कहां इतनी आबादी और आवक जावक। राहगीर और साइकिल वालों के आने जाने के लिए रास्ता दे दिया, और धूमधाम शुरू!

कहां का कैटरर और कहां की इवेंट, एक हलवाई और पंडित के अलावा दर्जनों रिश्तेदार कई दिनों पहले से ही डेरा डाल देते थे। घर की महिलाएं, घर में ही सजती, संवरती थी, हल्दी, मेंहदी के गीत गाती रहती थी, हंसी खुशी के माहौल में हर व्यक्ति बड़ा व्यस्त नजर आता था। ।

फिर धर्मशालाओं का दौर शुरू हुआ। आयोजन में कुछ सुविधा और आसानी हुई। टेंट हाउस से सभी सामान उपलब्ध होने लगा। बिस्तर, रजाई, गद्दे, कुर्सियां और बड़े बड़े बर्तन, जब वापस किए जाते, तो उनकी गिनती होती। बारह ग्लास कम हैं, चार चद्दर नहीं मिल रही। विवाह आनंद संपन्न हो गया, बारात विदा हो गई, अब चैन की सांस ली जा सकती है।

सब दिन कहां एक समान होते हैं। शिक्षा, सुविधा और तकनीक में इज़ाफ़ा हुआ, और धर्मशालाओं की जगह मैरिज गार्डन का प्रचलन शुरू हुआ। शहर से दूर, दूर के रिश्तेदार और मेहमान घर नहीं, गार्डन में ही आने लगे, रिटर्न टिकट की व्यवस्था के साथ। एक दो रोज ही में, मंडप, हल्दी, महिला संगीत और रिसेप्शन के साथ समापन। अच्छे अच्छे हलवाई नहीं, कैटरर ढूंढे जाने लगे, कहीं पर, पर प्लेट का हिसाब, तो कहीं पूरा ही पैकेज, चाय कॉफी, नाश्ता, और सभी समय का भोजन समग्र। ।

हमारे रहने के स्तर के अनुसार ही हमें अपने रीति रिवाजों में भी बदलाव लाना पड़ता है। एक अच्छे घर से ही कुछ नहीं होता आजकल, बच्चों को अगर अच्छा पढ़ा लिखाकर विदेश भेजा है, तो उसको भी रिटर्न तो मिलना ही है।

अगर यहीं कोई व्यवसाय है तो दिन दूने, रात चौगुनी की भी संभावना तो रहती ही है। सरकारी नौकरी और अगर वह भी ओहदे वाली हुई, तो मत चूके चौहान।

ईमानदारी और नैतिकता के साथ इंसान को थोड़ी समझदारी और व्यवहार कुशलता भी रखनी ही पड़ती है। आती लक्ष्मी को कभी ठुकराया नहीं जाता।

संक्षेप में, बरसात के दिनों, यानी rainy days के लिए कुछ बचाया नहीं जाता, इन्वेस्ट करना पड़ता है आजकल। एक जमीन का टुकड़ा, कब सोना उगलने लग जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अच्छा हुआ, शहर से दूर, समय रहते दो बीघा जमीन हाथ लग गई थी, फॉर्म हाउस भी बन गया और खेती किसानी भी चल रही है। ईश्वर देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है। ।

आजकल न तो शादियां घर में होती हैं, और न ही पारंपरिक वार त्योहार ! जन्मदिन, शादी की सालगिरह और उद्यापन तक होटलों में किए जाने लग गए हैं। अगर भगवान का दिया सब कुछ है, तो अपना फॉर्म हाउस कब काम आएगा। छोटी सी डेयरी और ऑर्गेनिक फार्मिंग आज समय की आवश्यकता है। पर्यावरण का प्रदूषण ही नहीं, खाद्य पदार्थों का प्रदूषण भी आज के आधुनिक समाज की दुखती रग है।

भूल जाइए कल की धर्मशालाएं, बड़ी बड़ी होटलें और मैरिज गार्डन, आजकल शहर से कुछ ही किलोमीटर दूर, अच्छे अच्छे रिजॉर्ट आपके मांगलिक प्रसंग में चार चांद लगाने के लिए उत्सुक और उधार बैठे हैं।

आपको सिर्फ अपने मेहमानों की सूची उन्हें सौंप देना है। पूरी इवेंट वे ही ऑर्गेनाइज करेंगे, आधुनिक चकाचौंध वाली साज सज्जा, पधारने वाले मेहमानों के लिए सर्व सुविधायुक्त एसी कमरे ही नहीं, एक बड़ा सा स्विमिंग पूल, और मनमोहक बाग बगीचे, हरियाली, क्या तबीयत हरी करने के लिए काफी नहीं है। ।

पैसा कभी हाथ का मैल था, लेकिन जब से सब कुछ डिजिटल हुआ है, सब के हाथ पाक साफ हैं। व्यवहार और लेन देन में इतनी पारदर्शिता है कि विवाह में ५०-६० लाख जो खर्च हुए, वे कहां से आए, और कैसे सब काम सानंद संपन्न हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। ऐसे यादगार प्रसंग कहां जीवन में बार बार आते हैं।

बच्चे भी भाई साहब, कितने संस्कारी हैं हमारे, बड़ी मुश्किल से आठ रोज की छुट्टी लेकर आए हैं विदेश से। उनके चार पांच मित्र भी मेहमान बनकर ही साथ आए हैं।

कितना एंजॉय करती है आज की पीढ़ी और हमारी परंपराओं का सम्मान भी करती है। समधी, समधन भी महिला संगीत में स्टेज पर परफॉर्म कर रहे हैं, पल्लो लटके औरओ मेरी जोहरा जबीं पर। ।

आप इसे पूरब और पश्चिम का फ्यूजन कहें, अथवा स्वदेशी और विदेशी का कॉकटेल, लेकिन भारतीय परम्परा पूरी तरह कायम है यहां। मेहमानों में डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, सरकारी अफसर, वकील, जज, विधायक, सांसद, सभी कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। कुछ समय के लिए सी एम साहब की दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देकर गए हैं। यही हमारा आज का विकासशील समाज है, हमारे कदम समृद्धि और खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं। आज भी अपना है, और कल भी हमारा ही है। ।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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