श्री हेमचंद्र सकलानी

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हेमचन्द्र सकलानी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप उत्तराखंड जल विद्युत् निगम से सेवानिवृत्त हैं।  अभियांत्रिक पृष्ठभूमि के साथ साहित्य सृजन स्वयं में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है। आपके साहित्य संसार की उपलब्धियों की कल्पना आपके निम्नलिखित संक्षिप्त परिचय से की जा सकती है।)

संक्षिप्त परिचय 

शिक्षा  – एम.ए.राजनीति विज्ञान और इतिहस।

प्रकाशन  – 1-विरासत को खोजते हुए (उत्तराखंड के यात्रा वृतांत) 2- शब्दों के पंछी (कविता संग्रह) 3- इस सिलसिले में (कहानी संग्रह) 4- विरासत को खोजते हुए (यात्रा वृतांत -भाग – 2) 5- एक युद्ध  अपनों से (कहानी संग्रह) 6- विरासत को खोजते हुए – (भाग -3) 7- उत्तराखंड की जल धाराएं और उनके तट पर ऊर्जा के मन्दिर 8- डूबती टिहरी की आखरी कविताएं (कविता संग्रह का संपादन) 9- अंतर्मन की अनुभूतियां (कहानी संग्रह) 10-विरासत की यात्राएं ( यात्रा वृतांत भाग -४)  11- दुनिया घूमते हुए ( विदेशों के यात्रा संस्मरण, यात्रा वृतांत भाग 5) 12- विरासत की यात्राएं (देश के यात्रा वृतांत भाग 6) इसके अतिरिक्त 1- उत्तराखंड महोत्सव की.

पुरस्कार / सम्मान – देश भर की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा हिमालय गौरव, उत्तराखंड रत्न, भारतेन्दु साहित्य शिरोमणि, हिंदी गौरव सम्मान, यात्रा साहित्य पर भारत सरकार से प्रथम पुरस्कार, मुंबई कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान सहित 94 सम्मान प्राप्त। देश भक्ति के गीतों की सीडी “देश को समर्पित वंदना के स्वर” जारी जिसको अपने मधुर स्वरों से सजाया “सारेगामापा” की 2019 की विजेता ईशिता विश्वकर्मा और साथियों ने। 2002, 2004, 2008, 2012, 2014 का तथा पावर जूनियर इंजीनियर एसोशिएसन की वर्ष 2008, 2010, 2012 की स्मारिकाओं का संपादन।

(आज प्रस्तुत है उत्तराखंड की जलधाराओं के तट पर ऊर्जा के मंदिर की गाथा – ऊर्जा के मन्दिरों की घाटी )

 ☆ आलेख ☆ ऊर्जा के मन्दिरों की घाटी ☆ श्री हेमचंद्र सकलानी ☆ 

उत्तरकाशी देश का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल, पर्यटक स्थल, अपनी प्राकृति सुन्दरता के कारण तो जाना ही जाता है, साथ ही अनेक पवित्र नदियों, जैसे गंगा, जाड़गंगा, यमुना, तमसा, केदार गंगा जैसी नदियों का उदगम स्थल भी है। यह जलधारांए अपने अन्दर अनेक पैराणिक कथांए समेटे हैं। जिससे प्राचीन काल से ही ये हमारी असीम आस्था, श्रद्धा का पात्र बनी हुई हैं। उत्तरकाशी की हिमच्छादित पर्वत श्रंखला भागीरथी शिखर से यदि गंगा प्रवाहित होती है। तो गंगोत्री ग्लेशियर के दूसरे छोर बंदरपुंछ अर्थात कालिन्दी शिखर से यमुना उदगमित होती है। पुराणों में यमुना को कालिन्दी के साथ एक हजार नामों से सुशोभित किया गया है। इसी से इस पवित्र नदी का महत्व पता चलता है।

दूसरी ओर हर की दून नामक स्थान से नीचे उतरने पर सांकरी नामक स्थान के पास सुपिन नदी तथा सियान गाड़ नामक जलधाराएं मिलकर तमसा नदी का निर्माण करती हैं। नैटवार, नालगल घाटी, सिंगला घाटी की जलधाराएं रूपिन नदी का रूप लेकर तमसा से मिलती हैं। गलामुंड, कुलनी से आकर कुछ जलधाराएं मोरी के पास तथा जरमोला, पुरोला से, चिरधार से आ रही जलधाराएं  पब्बर नदी, मीनस नदी और दिबन खैरा की दो जलधाराएं अपनी जलराशि से तमसा को समद्ध करती हैं।

आगे चलकर तमसा और यमुना, प्रसिद्ध यमुना घाटी का निर्माण करती हैं। यह जल धाराएं अनेक पौराणिक कथाओं के साथ अपने अन्दर असीम विद्युत शक्ति का भण्डार तथा सिंचाई की क्षमता समेटे हुये हैं। यमुना अपनी सहायक तमसा नदी के साथ उत्तरी क्षेत्र की सर्वाधिक विद्युुत उत्पादन क्षमताओं वाली नदियों में से एक है। इनकी अनुमानित विद्युत क्षमता 1960-70 के दशक में लगभग 55 लाख किलोवाट आंकी गयी थी, तथा इसमें लगभग 3 लाख हैक्टेयर भूमि सिंचाई के लिये 19,000 लाख घनमीटर अतिरिक्त जल प्रदान करने की भी क्षमता है। स्वतन्त्रता के बाद तमसा, यमुना के तट पर कुछ ऊर्जा के मन्दिरों का निर्माण कर इनकी जलशक्ति का उपयोग कर जनजीवन के उपयोग हेतु सिंचाई जल तथा विद्युत शक्ति उत्पन्न करना लक्ष्य रखा गया। जिनमें कुछ एक उददेशीय  परियोजनाए थी तो कुछ बहुउददेशीय परियोजनाए थी। एक उददेशीय परियोजना का लक्ष्य विद्युत उत्पादन था तो बहुउददेशीय परियोजना का विद्युत के साथ सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराने के साथ बाढ़ से होने वाली जन-धन हानि से सुरक्षा प्रदान करना था।

यमुना जल विद्युत परियोजना के प्रथम चरण में देहरादून से 50 कि0मी0 दूर डाकपत्थर में एक बांध बनाया गया । सन 1949 में प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने इस बांध की आधारशिला रखी थी। इस बांध से शक्ति नहर निकाल कर 9 कि0मी0 दूर ढकरानी नामक गांव के समीप ढकरानी पावर हाउस से (11.25MW x 3) अर्थात 33.75 मेगावाट तथा ढालीपुर गांव के समीप ढालीपुर जल विद्युत परियोजना से  (17 MW x 3) अर्थात 51 मेगावाट की परियोजनाओं से नवम्बर-दिसम्बर 1965 में  विद्युत उत्पादन प्राप्त होने लगा था।

यमुना जल विद्युत परियोजना के द्वितीय चरण में डाकपत्थर से 40 कि0मी0 दूर इच्छाड़ी नामक गांव के समीप तमसा नदी पर एक बांध बनाया गया । जहां पर एशिया का उच्चतम टेंटर गेट  16.5 मीटर ऊंचाई के हैं। इस बांध की जलराशी को 7 मीटर व्यास की 6.174 कि0मी0 लम्बी भूमिगत सुरंग (पहाडों के अन्दर) को छिबरो गांव के समीप सर्ज टैंक से जोड़ा गया। यह सर्ज टैंक 20 मीटर व्यास का तथा 92 मीटर ऊंचाई का है। इस परियोजना में विश्व में अपने ढंग की सर्व प्रथम सैन्डीमेन्टेशन तथा इनटेक प्रणाली अपनायी गयी है। छिबरो गांव में तमसा के समीप पर्वत के गर्भ में 113 मीटर लम्बे, 18.2 मीटर चौड़े, 32 मीटर व्यास के भू गर्भित जल विद्युत गह, जिसमें चार 60 मेगावाट, की टरबाईनों वाला 240 मेगावाट का विद्युत गह निर्मित हुआ। वर्ष 1974-75 में इस विद्युत गह से विद्युत उत्पादन प्राप्त होने लगा।

छिबरो पावर हाउस के उपरान्त तमसा नदी के पानी के उपयोग के लिए यमुना जल विद्युत परियोजना के द्वितीय चरण में हिमाचल प्रदेश के खोदरी नामक गांव मे, डाकपत्थर के समीप खोदरी जल विद्युत गह का निर्माण हुआ। वर्ष 1984 से जिसकी 4 टरबाईनों से (30MW x 4) अर्थात 120 मेगावाट विद्युत का उत्पादन प्राप्त हुआ। इन दोनों विद्युत गृह के मध्य विश्व में सर्वप्रथम टैण्डम प्रणाली अपनायी गयी। छिबरो पावर हाउस से खोदरी पावर हाउस तक विश्व की प्रथम ”एक्टिव इन्ट्रा थ्रस्ट” क्षेत्रों से गुजरने वाली 5.9 कि0मी0 लम्बी भूमिगत सुरंग बनायी गयी। खोदरी पावर हाउस का सर्ज टैंक 21 मीटर व्यास तथा 57.5 मीटर ऊंचाई का है। उपर्युक्त दोनों परियोजनाओं में तमसा की जलराशी का उपयोग हुआ। डाकपत्थर बांध में यमुना-तमसा आपस में मिल जाती हैं। यमुना की यह सहायक नदी तमसा लगभग 4900 वर्ग कि0मी0 के विशाल जल ग्रहण क्षेत्र से निरन्तर प्रवाह हेतु जल ग्रहण करती हुई, संकीर्ण घाटी से प्रवाहित होती है। जिस कारण इसमें सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन के लिए पर्याप्त डिस्चार्ज तथा उचित हैड मिल जाता है। इच्छाड़ी बांध तथा छिबरो पावर हाउस के निर्माण की परिकल्पना तो स्वतन्त्रता से पूर्व कर ली गई थी। परन्तु इस परियोजना पर अमल सन 1966 से प्रारम्भ हुआ।

यमुना जल विद्युत परियोजना के चौथे चरण में शक्ति नहर से प्रवाहित होने वाली जलराशी के उपयोग के लिए कुल्हाल नामक गांव के समीप ढालीपुर से 5 किलोमीटर दूर कुल्हाल विद्युत गह का निर्माण हुआ जिसकी 10 मेगावाट की 3 टरबाईनों से सन 1975में 30 मेगावाट विद्युत उत्पादन प्राप्त होने लगा। यहां से निकली जलराशी का उपयोग बादशाही बाग नामक स्थान पर खारा जलविधुत परियोजना का निर्माण कर किया गया। सन 1986 में इस परियोजना से 78.75 मेगावाट विद्युत उत्पादन प्राप्त होने लगा।

इनके अतिरिक्त तमसा-यमुना की घाटी में कुछ ऐसी परियोजनाएं हैं जो अपने निर्माण की प्रतीक्षा में हैं। इनमे से यमुना जलविधुत परियोजना के ततीय चरण में जौनसार के किशाऊ नामक गांव के समीप तमसा पर बांध बनाकर 750 मेगावाट (बाद में इसे 600 मेगावाट) की जल विद्युत परियोजना प्रस्तावित है। ऐसे ही यमुना नदी पर लखवाड़ गांव के समीप एक बांध बनाया जाना है, तथा एक भूगर्भित विद्युत गृह बनाया जाना है, जिससे 300 मेगावाट विद्युत उत्पादन प्राप्त होगा। इसी जलराशी का उपयोग कर व्यासी गांव के समीप व्यासी बांध तथा यमुना पर 120 मेगावाट का विद्युत गृह बनाया जाना है। तथा हत्यारी गांव के समीप 19 मेगावाट की क्षमता का विद्युत गृह भी प्रस्तावित है।

यदि सभी परियोजनाएं पूरी होकर आस्तित्व मे आ जायें तो यमुना घाटी में तमसा यमुना की जलराशी से 1723.750 मेगावाट विद्युत का उत्पादन उत्तराखण्ड को प्राप्त होगा। जो सम्पूर्ण उत्तराखण्ड की ही नही देश के, अनेक स्थानों की सुखः समृद्धि में अहम भूमिका निभायेगा। यद्यिपि अभी मात्र 553.500 मेगावाट विद्युत उत्पादन ही प्राप्त हो पा रहा है। इनके अतिरिक्त भी कई दशक पूर्व यमुना घाटी की तमसा यमुना पर कई जल विद्युत् परियोजनाओं के लिए सर्वेक्षण हुए, तथा निर्माण हेतु प्रास्तावित हुई जिनके नाम निम्न प्रकार हैं तालुका सांकरी हाइड्रोस्कीम 60 मेगावाट, जखोल सांकरी 60 मेगावाट, सिडरी डियोरा 80 मेगावाट, डिपरोमोरी 34 मेगावाट, छाताडैम 225 मेंगावाट, आराकोट त्यूणी 62 मेगावाट, त्यूणी प्लासू 50 मेगावाट, हनोल न्यूणी 26 मेगावाट। बाद मे किशाऊ बांध जल विधुत परियोजना की विद्युत क्षमता 750 मेगावाट से घटाकर 600 मेगावाट कर दी गई। ये सारी परियोजनाएं तमसा पर निर्मित होनी थीं जबकि यमुना पर हनुमानचटटी 33 मेगावाट, सियानचटटी 46 मेगावाट, बड़कोट कुआ 25 मेगावाट, कुआ डामटा 126 मेगावाट की परियोजनाए थीं। इस पर भी ऊर्जा के मन्दिरों, छिबरो, खोदरी, ढकरानी, ढालीपूर, कुल्हाल, ने तमसा यमुना धाटी को अपने विद्युत् रूपी आशीर्वाद से जगमग तो किया ही है साथ ही उन्नति, विकास, समद्वि से भरपूर भी किया। आज जो विकास तमसा-यमुना घाटी में हमें दिखाई पड़ता है उसमें निसंदेह तमसा-यमुना के ऊर्जा मन्दिरों के योगदान को कभी भुलाया नही जा सकेगा।

©  श्री हेमचन्द्र सकलानी 

संपर्क – सकलानी साहित्य सदन,विद्यापीठ मार्ग,विकासनगर देहरादून (उत्तराखंड)

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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