श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”
आज प्रस्तुत है आलेख – “पड़ोस और विवाह”।)
☆ आलेख ☆ पड़ोस और विवाह ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे विचार से ये दोनों पर्यावाची हैं।विवाह जैसे पवित्र बंधन के लिए भी कहा जाता है, जिसका हुआ वो भी पछताए और जिसका नहीं हुआ वो भी पछताए। वैसा ही हमारा पड़ोस जिनके पड़ोसी है, वो भी परेशान रहते हैं और जिनके पड़ोस में अभी प्लॉट खाली है, वो भी परेशान ही रहते हैं। सीमेंट और पेंट बनाने वाली कंपनियां भी अपने विज्ञापनों के माध्यम से पड़ोसी स्पर्धा का चित्रण करने में माहिर होते हैं। आखिर उनको भी तो अपनी रोज़ी रोटी चलानी हैं।
ये पड़ोसी, सभी देशों के साथ भी होते ही हैं। हमारे देश के भी बहुत सारे पड़ोसी देश हैं, जहां तक संबंध की बात है, अधिकतर देशों से कभी नरम और कभी गर्म ही रहते है। ठीक वैसे ही जैसे हमारे घर के पड़ोसियों से रहते हैं। हमारे देश के दो पड़ोसी तो शत्रु देश भी कहलाते हैं। स्वतंत्र होने के समय अलग हुए पाकिस्तान में विगत कुछ दिनों से राजनैतिक विवाद भी चल रहा हैं। हमारा मीडिया भी दुनिया और देश की सब बातें भूल कर पाकिस्तान पर ही लगातार रात दिन चर्चा करते हुए थक भी नहीं रहा।
पाकिस्तान में रामलाल या श्यामलाल कोई भी प्रधानमंत्री बने, हम साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति का क्या वास्ता हैं? लेकिन नहीं मीडिया तो आप को इतिहास के गड़े मुर्दे और भविष्य के हसीन सपने परोसने में एड़ी चोटी एक कर देता हैं। इसी बहाने कुछ रिटायर्ड फौजी अधिकारी और विदेश सेवा में कार्य कर चुकी हस्तियों के विचारों से भी अवगत हो जाते हैं।
इसी को भेड़ चाल भी कहते हैं, सभी चैनल सब कुछ भूल कर सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के भूतकाल और भविष्य की कहानियां बुन रहे हैं। ऐसा लग रहा है की पड़ोसी के यहां आग लगी हुई है और हम उस पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।
© श्री राकेश कुमार
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