श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 9 – परदेश में स्वदेश ☆ श्री राकेश कुमार ☆
खरीदारी अब आवश्यकता के स्थान पर आनंद (मज़ा) प्राप्त करने का साधन होती जा रही हैं। यात्रा के वातानुकूलित साधन, सजे हुए बाज़ार, जेब में रखे हुएं नाना प्रकार के उधार कार्ड, शायद ये ही वर्तमान है।
हम को बचपन से ही एक बात बताई गई थी कि “जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए” शायद अब ये शिक्षा समय के साथ दफ़न हो चुकी है।
घर के उपयोग की स्वदेशी वस्तुएं किराना इत्यादि का सामान परदेश में भी उपलब्ध करवाने के लिए पचास वर्ष पूर्व अमेरिका में पटेल परिवारों ने गुजरात से आकर यहां के विभिन्न शहरों में अपनी दुकानें स्थापित कर दी हैं। स्वदेशी समान में भारत निर्मित बिस्कुट (पारले-जी, गुड डे) नमकीन, क्या कुछ नहीं विक्रय करते हैं, पटेल की दुकानों पर, सब्जी, मसाले, पूजा सामग्री इत्यादि की उपलब्धता देश के स्वाद और जीवन शैली को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं।
वहां गर्म समोसे “पंजाबी समोसे” के नाम से उपलब्ध थे। हमे मुम्बई की याद आ गई, वहां भी बड़े आकार के समोसे को पंजाबी समोसे के नाम से विक्रय किया जाता है। उत्तर और मध्य भारत में भी सिर्फ समोसा नाम ही चलता हैं। पूर्वी भाग में अवश्य सिंघाड़े के नाम से सेवन किया जाता हैं। यहां पर गुड और अदरक के बेकरी में निर्मित बिस्कुट भी मिल रहे थे। देश में भी दूरबीन से ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं। हजारों मील दूर पूरे देश की विभिन्न वस्तुएं उपलब्ध करवाने के लिए पटेल बंधुओं की लगन और मेहनत को सलाम।
इन के अलावा भी “इंडियन स्पाइस स्टोर” के नाम से अधिकतर दक्षिण भारतीय भी देश की परंपराएं और स्वाद को बरकरार रखने में सहयोग कर रहे हैं।
© श्री राकेश कुमार
संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)
मोबाईल 9920832096
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈