श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 19 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

परदेश – महंगाई

जब से होश संभाला है, दिन में सैकड़ों बार “महंगाई” शब्द सुनते आ रहे हैं। ऐसा लगता है, इस शब्द के बहुत अधिक उपयोग से ही तो कहीं वस्तुओं और सेवाओं के दाम नहीं बढ़ जाते हैं।

बचपन में जब माता/ पिता कहते थे, बिजली बेकार मत चलाओ, महंगी हो कर चार आने यूनिट भाव हो गया है। हमने भी बच्चों को चार रुपए यूनिट की दुहाई देकर समझाया था। ये पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा।

अर्थशास्त्र के ज्ञानी मुद्रास्फीति को अपस्फीति से कहीं बेहतर मानते हैं।

यहां विदेश में भी बढ़ी हुई महंगाई के लक्षण प्रतीत हुए। सात वर्ष पूर्व गैस स्टेशन (पेट्रोल) के बाहर तीन अमरीकी रूपे और कुछ पैसे का भाव दिखाई देता था, अब पांच रूपे और पैसे दर्शाता है। पेट्रोल और अन्य तरल पदार्थ यहां पर गैलन प्रणाली में मापे जाते हैं।

यहां के गरीबों की एक दुकान “डॉलर स्टोर” के नाम से प्रसिद्ध है, उनके भाव भी अब सवा डॉलर कर दिया गया हैं। हमारे देश में भी हर माल एक रूपे में के नाम से चलती थी, अब दस रूपे से कम कुछ नहीं मिलता है। स्थानीय लोगों से जानकारी मिली कि यहां भी कोई ना कोई “महंगाई डायन” कार्यरत रहती है। वर्तमान में यूक्रेन की डायन चल रही है। जब हमने बताया की यहां तो यूक्रेन की सहयता के पोस्टर देखे हैं, और पास में एक चर्च भी यूक्रेन के नाम से ही है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, ये सिद्धांत यहां यूक्रेन पर भी लागू होता होगा।

हम जब एक माह पूर्व देश से आए तो पिछतर का पहाड़ा याद करके आए थे, लेकिन बेकार हो गया, और डॉलर अस्सी का जो हो गया है। किसी भी वस्तु का मूल्य भारतीय मुद्रा में परिवर्तित करके अपना अंकगणित जो सुधार रहे हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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