डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-३ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मनमोहिनी मॉलीन्नोन्ग, डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स (divine, digital detox)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

पिछले भाग में हम मिले थे मौलिनोंग सुंदरी सैली से! मैंने उससे यथासंभव बातचीत की|

सैली से मिली जानकारी कुछ इस तरह थी:

‘गांव के लोग स्वच्छता के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं| यूँ सोचिये कि स्वच्छता अभियान में भाग नहीं लिया तो क्या? गांव के नियमों का भंग करने के कारण गांवप्रमुख की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है! उसने बताया, “मेरी दादी और माँ ने गांव के नियम पालने का पाठ मुझे बचपन से ही पढ़ाया है”| यहाँ के घर कैसे चलते हैं, इस प्रश्न पर उसने यूँ उत्तर दिया, “होम स्टे” अब आमदनी का अच्छा साधन है! अलावा इसके, शाल और जेन्सेम बनाना या बाहर से लेकर बिकना, बांस की आकर्षक वस्तुएं पर्यटकों को बेचना| यहाँ की प्रमुख फसलें हैं, चावल, सुपारी और अन्नानास, संतरा, लीची तथा केले ये फल! प्रत्येक स्त्री समृद्ध, खुदका घर, जमीन और बागबगीचे! परिवार खुद ही धान और फल निर्माण करता है|’ वहां एक बार (तथा कई बार) फल बेचनेवाली स्त्री ने ताज़ा अन्नानास काटकर हमें झाड़ के तने की परत में सर्व्ह किया, वह अप्रतिम जायका अब तक तक जुबान पर चढ़ा है! इसका कारण है, “जैविक खेती”! फलों को निर्यात करके भी पैसे कमाए जाते हैं, अलावा इसके, पर्यटक “बारो मास” रहते ही हैं! (परन्तु लॉकडाऊन में पर्यटन काफी कम था|)                          

इस गांव  में सबसे खूबसूरत चीज़ क्या है, यह सोचें तो वह है, यहाँ की हरितिमा, यह रंग यहाँ का स्थायी भाव समझिये! प्राकृतिक पेड़-पत्ते और फूलों से सुशोभित स्वच्छ रास्तों पर मन माफिक और जी भर चहल कदमी करें! हर घर के सामने रमणीय उपवन का एहसास हो, ऐसे विविध रंगों के पत्ते और सुमनों से सुसज्जित बागबगीचे, घरों में छोटे बड़े प्यारे बच्चे! उनके लिए पर्यटकों को टाटा करना और फोटो के लिए पोझ देना हमेशा का ही काम है! मित्रों, यह समूचा गांव ही फोटोजेनिक है, अगर कैमरा हो तो ये क्लिक करूँ या वो क्लिक करूँ यह सोचने की चीज़ है ही नहीं! परन्तु मैं यह सलाह अवश्य दूँगी कि पहले आँखों के कैमेरे से इस प्रकृति के रंगों की रंगपंचमी को जी भरकर देखें और बाद में निर्जीव कॅमेरे की ओर प्रस्थान करें! गांव के किनारोंको छूता हुआ एक जल प्रवाह है (नाला नहीं!) उसके किनारों पर टहलने का आनंद कुछ और ही है! पानी में खिलवाड़ करें, परन्तु अनापशनाप खाकर कहीं भी कचरा फेंका तो? मुझे पूरा विश्वास है कि, बस अभी अभी सुस्नात सौंदर्यवतीके समान प्रतीत हो रहे इस रमणीय स्थान का अनुभव लेने के पश्चात् आप तिल के जितना भी कचरा फेकेंगे नहीं!

यहाँ एक balancing rock” यह प्राकृतिक चमत्कार है, तस्वीर तो बनती है, ऐसा पाषाण! ट्री हाउस, अर्थात पेड़ के ऊपर बना घर, स्थानीय लोगों द्वारा उपलब्ध सामग्री से निर्मित, टिकट निकाओ और देखो, बांस से बने घुमावदार घनचक्कर के ऊपर जाते चक्कर ख़त्म होते पेड़ के ऊपर बने घर में जाकर हम कितने ऊपर आ पहुंचे हैं इसका एहसास होता है! नीचे की और घर की तस्वीरें तो बनती ही हैं जनाब! शहरों में भी घरों के लिए जगह न हो तो यह उपाय विचारणीय है, परन्तु, मित्रों क्या शहर में ऐसे पेड़ हैं? यहाँ तीन चर्च हैं, उसमें से एक है “चर्च ऑफ द एपिफॅनी”, सुंदर रचना और निर्माण, वैसे ही पेड़ पौधे और पुष्पों की बहार से रंगीनियां बिखेरता संपूर्ण स्वच्छ वातावरण| अंदर से देखने का अवसर नहीं मिला क्यों कि, चर्च निश्चित दिनों में और निश्चित समय पर खुलता है! 

अब यहाँ की सर्वत्र देखी जानेवाली आदत बताती हूँ, हमेशा पान खाना, वह यहाँ के लोगों के जैसा सादा, पान के टुकड़े, हलकासा चूना और पानी में भिगोकर नरम किये हुए सुपारी के बड़े टुकड़े! फलों और सब्जियों की दुकानों में सहज उपलब्ध! वह खाकर (चबाकर) यहां की सुन्दर नवयुवतियों के होंठ सदैव लाल रहते हैं! किसी भी लिपस्टिक के शेड के परे मनभावन प्राकृतिक लाल रंग! यहाँ तक कि आधुनिक स्कूल कॉलेजों की लड़कियां भी इसकी अपवाद नहीं थीं! पुरुष भी पान खानेवाले, लेकिन इसमें आश्चर्य की क्या बात है? सचमुच का आश्चर्य तो अब आगे है! मित्रों, एक चीज जो मैंने जान- बूझकर, बिलकुल मायक्रोस्कोपिक नजर से देखी, कहीं पान की पिचकारियां नज़र आ रही हैं? ! परन्तु यह गांव ठहरा स्वच्छता का पुजारी! फिर यहाँ पिचकारियां कैसे होंगी? इसका मुझे सचमुच ही अचरज भरा आनंद हुआ! यह सब कुछ आदत के कारण गांव वालों के रगरग में समाया है!

यहाँ कब पर्यटन करना चाहिए? अगर सुरक्षित तरीकेसे घूमना है और ट्रेकिंग करना है तो अक्टूबर महीना उत्तम है, परन्तु पेड़पौधों की हरियाली थोड़ी कम और निर्झरों के जलभंडार कम होंगे| अगर हरीतिमा के रंगों से रंगे रंगीन वनक्षेत्र और जलप्रपातों से लबालब भरा मेघालय देखना हो तो मई से जुलाई ये महीने सर्वोत्तम हैं ! परन्तु… सावधान! घूमते समय और ट्रेकिंग करते समय बहुत सावधानी बरतना आवश्यक है! वैसे ही आकाशीय बिजली की अधिकतम व्याप्ति के कारण जमीं की बिजली का बारम्बार अदृश्य होना, यह अनुभव हमने कई बार लिया!

मित्रों, अगर आप को टीव्ही, इंटरनेट, व्हाट्सअँप और चॅट की आदत है (मुझे है), तो यहाँ आकर वह भूलनी होगी! हम जब इस गांव में थे, तब ९०% समय गांव की बिजली गांव चली गई थी! एकल  सोलर दिये को छोड़ शेष दिये नहीं, गिझर नहीं, नेटवर्क नहीं, सैली के घर में टीव्ही नहीं!  पहले मुझे लगा, अब जियेंगे कैसे? परन्तु यह अनुभूति अनूठी ही थी! प्रकृति की गोद में अनुभव की हुई एक अद्भुत अविस्मरणीय और अनकही अनुभूती! मेरे सौभाग्य से प्राप्त डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स!

प्रिय पाठकगण, मॉलीन्नोन्ग का महिमा-गीत अभी शेष है, और मेरी उर्वरित मेघालय यात्रा में भी आप को संग ले चलूँगी, अगले भागों में!!!

तब तक मेघालय के मेहमानों, इंतज़ार और अभी, और अभी, और अभी…….!

तो, बस अभी के लिए खुबलेई! (khublei यानी खासी भाषा में खास धन्यवाद!) 

क्रमशः -3 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Pentaji G. Muttewar

Nice…