डाॅ. मीना श्रीवास्तव
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-४ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)
प्रिय पाठकगण,
कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
मुझे यकीन है कि, मॉलीन्नोन्ग का यह सफर आपको आनंददायक लग रहा होगा| इस प्यारे गाँव के बारे में कुछ रह गया था बताना, वह है यहाँ का खाना और नाश्ता, मेरी सलाह है कि यहाँ प्रकृति का ही अधिक सेवन करें। यहाँ काफी घरों में (६०-७०%) ‘होम स्टे’ उपलब्ध है| अग्रिम आरक्षण उत्तम रहेगा! मात्र कुछ एक घरों में ही (मैनें ४-५ देखे) खाना और नाश्ता मिलता है! ज्यादा अपेक्षाऐं न रखें, इससे अपेक्षाभंग नहीं होगा! ब्रेड बटर, ब्रेड आम्लेट, मॅगी और चाय-कॉफी, बस नाश्ते की लिस्ट ख़त्म! खाने में थाली मिलती है, २ सब्जियां (उसमें एक पर्मनन्ट आलू की), दाल और चावल, एक जगह रोटियां थीं, दूसरी जगह आर्डर देकर मिलती हैं| नॉन वेज थाली में अंडे, चिकन और मटन रहता है| यह घरेलु सर्विंग टाइम बॉउंड है, इसका ध्यान रखें। खाने के और नाश्ते की दरें एकदम सस्ती! कारोबार घर की महिला सदस्यों के हाथों में (मातृसत्ताक राज)! यहाँ सब्जियां निकट के बड़े गांव से (pynursa)लायी जाती हैं, हफ्ते में दो बार भरने वाले बाजार से! मालवाहक होती है बेसिक गाडी मारुती ८००! बड़े गांव में बच्चों को लाना, ले जाना भी इसमें ही होता है| यहाँ सदैव वर्षा होने के कारण दोपहिये वाली गाड़ी का इस्तेमाल नहीं होता, गांव वाले कहते हैं कि, इससे अपघात होने का अंदेशा हो सकता है. यहाँ ATM नही है, नेटवर्क न रहने की स्थिति में जी पे, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड किसी काम के नहीं, इसलिए अपने पास हमेशा नकद राशि होनी चाहिए!
स्काय पॉईंट (Nohwet Viewpoint)
इस क्षेत्र का दौरा करते समय, बांग्लादेश की सीमा का बारम्बार दर्शन होता है। परन्तु बांग्लादेश का एक स्काई पॉइंट बेहद खूबसूरत है। यह पॉइंट मॉलीन्नोन्ग से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर है। बांस के पुल पर बड़े मजे से झूलते झूलते यात्रा कीजिये, एक ट्री हाउस पर स्थित इस पॉइंट तक जाइये तथा सामने का नज़ारा विस्मय चकित नज़र से देखिये| यह पॉईंट ८५ फ़ीट ऊँचाई पर है| पूरी तरह बांस से बना और पेड़ों को बांस तथा जूट की रस्सियोंसे कसकर बंधा यह इको फ्रेंडली पॉईंट, सामने के नयनाभिराम नज़ारोंके फोटो तो बनते ही हैं! परन्तु सेल्फी से सावधान मित्रों! यहाँसे सुंदर मॉलीन्नोन्ग तो दिखता ही है, अलावा इसके बांग्लादेश का मैदानी इलाका और जलसम्पदा के भी रम्य दृश्य के दर्शन होते हैं!
सिंगल डेकर और डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज
मेघालय पर्यटनका अविभाज्य भाग है जीते जागते पुल! और वे देखने के उपरांत कौतुक के और प्रशंसा के पुल बाँधनेको पर्यटक हैं ही! जीते जागते पुल यानि पुराने पेड़ों की जड़ें एक दूजे में “दिल के तार तार से बंधकर” हवा में अर्थात तैरते हुए (और एकाध रास्ता भटके हुए बच्चे की भांति जमीन में) ऐसी उलझते जाते हैं, और इसका साक्षी होता है नदी का जलपात्र, “जलगंगा के किनारे तुमने मुझे वचन दिया है” यह गीत गुनगुनाते हुए! जैसे जैसे वर्ष बीतते हैं, जल और प्रेम की वर्षा मिलती रहती है, वैसे वैसे ये जड़ एक दूजे को आलिंगन में कस कर जकड लेते हैं, मान लो, जनम जनम का ऋणानुबंध हो! यह दिनों दिन चलता ही रहता है| मित्रों, इसीलिये तो यह “लिव्हिंग रूट ब्रिज” है, अर्थात जीता जागता ब्रिज, कॉन्क्रीट का हृदयशून्य ब्रिज नहीं और इसीलिये हमें यह नज़र आता है प्रेमबन्धन के अटूट पाश जैसा मजबूत जडों का पुल!
अब इन जडोंकी मूल कथा बताती हूँ! लगभग १८० वर्षों पूर्व मेघालय के खासी जमात के जेष्ठ व श्रेष्ठ लोगों ने नदीपात्र के आधे अंतर तक लटकते आए रबर के (Ficus elastica tree) पेड़ों के जड़ों को अरेका नट पाम(Areca nut palm) जाति के खोखली छड़ों में डाला, उसके पश्चात् उनकी जतन से देखभाल की| फिर वे जड़ें (अर्थात हवा में तैरते हुए) लम्बाई में वृद्धिंगत होते हुए दूसरे किनारे तक पहुंच गईं| और वह भी अकेले अकेले नहीं, बल्कि एक दूजे के गले में और हाथों में हाथ डालकर| इस प्रकार मानव का भार वहन करने वाला अलगथलग ऐसा जिंदादिल पुल आदमी की कल्पनाशक्ति से साकार हुआ! हमने देखे हुए सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज को मजबूती प्रदान करने हेतु भारतीय सेना ने बांस के सहारे टिकाव तैयार किये हैं| ये आश्चर्यजनक पुल देखने हेतु पर्यटकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है! इसीलिये ऐसे सहारों की आवश्यकता है, ऐसा बताया गया| अगर नदी पर ऐसा एक हवा में तैरता पुल हो, तो वह सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज होगा, परन्तु एक के ऊपर एक (अर्थात हवा में तैरते हुए) ऐसे दो पुल हो तो वह होगा डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज!!! मैने केवल डबल-डेकर बस देखी थी, परन्तु यह अनोखी चीज़ यानि खासी लोगोंकी खासमखास जड़ों की डबल इन्वेस्टमेंट ही समझ लीजिए! खासी समाज के इन सनातन बायो-इंजीनियरोंको मेरा साष्टांग कुमनो! ऐसे कुछ पुल १०० फ़ीट लम्बे हैं| उन्हें सक्षमता से साकार होने को १५ से २५ वर्ष लग सकते हैं| एक बार ऐसी तैयारी हो गई, तो आगे के ५०० वर्षों की फुर्सत हो गई समझिये! यहाँ की कुछ एक जड़ें पानी से लगातार संपर्क होने के कारण सड़ जाती हैं, परन्तु चिंता की कोई बात नहीं, क्यों कि दूसरी जड़ें बढ़ती रहती हैं और पुराने जड़ों की जगह लेकर पुल को आवश्यक स्थिरता प्रदान करती हैं| यहीं वंशावली खासियत है जिंदा रूट ब्रिजकी! अर्थात यह स्थानिक बायो इंजिनिअरींग का उत्तम नमूना ही कहना होगा| कुछ विशेषज्ञों के मतानुसार इस क्षेत्र में (ज्यादातर चेरापुंजी और शिलाँग) ऐसे सैकड़ों ब्रिज हैं, पर उन तक पहुंचना खासी लोगों के ही बस की बात है! केवल थोडे ही पुल पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं क्योंकि, वहां तक पहुंचनेवाली जंगल की राह है हमारी सत्वपरीक्षा लेने वाली, कभी फिसलन भरी सीढ़ियाँ, कभी छोटी बड़ी चट्टानें, तो कभी गीली मिट्टी की गिरती हुए ढलान!
अगले भाग में सफर करेंगे चेरापुंजी के डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज की और आप देखेंगे सिंगल लिव्हींग रूट ब्रिज साक्षात मेरी नजरों से! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की सुर्ख़ियों से आनन्द विभोर होते रहें!
फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!
मेघालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया हुआ परंपरागत खासी नृत्य
“पिरपिर पिरपिर पावसाची, त्रेधा तिरपिट सगळ्यांची” बालगीत
गायिका-शमा खळे, गीत वंदना विटणकर, संगीत मीना खडीकर, नृत्य -अल्ट्रा किड्स झोन
© डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे
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