डाॅ. मीना श्रीवास्तव
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(मावफ्लांग का पवित्र जंगल)
लेखक-डॉ. मीना श्रीवास्तव
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
पिछले भाग में मैंने वादा किया था कि, हम चलेंगे मावफ्लांग (Mawphlang) के सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में! आइये तैयार हो जाइये एक रोमांचक और अद्भुत प्रवास के लिए! सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स अर्थात पवित्र जंगलों या उपवनों को कुछ विशिष्ट संस्कृतियों में विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है| पूरे विश्व की विविध संस्कृतियों में ये पवित्र उपवन उनके विशेषताओं समेत आज भी अपनी गहन हरीतिमा से भरपूर वैभव के साथ अस्तित्व में हैं| हालाँकि हमें वे सुंदर लॅण्डस्केप्स (सिर्फ देखने योग्य या चित्र या फोटो खींचने के पर्यटन के मात्र सुन्दर साधन) के रूप में दिखते हों, लेकिन कुछ पंथियों या धर्मियों के लिए इन सबसे परे वे बहुत ही महत्वपूर्ण पवित्र स्थल हैं| इसमें भी खासमखास कुछ विशिष्ट वृक्ष तो अत्यंत पवित्र माने जाते हैं| इस समुदाय के लोग इस वनदेवी को प्राणों से भी बढ़कर जतन करते हैं| इसी देखभाल के कारण यहाँ की वृक्षलताएँ हजारों वर्ष पुरातन होकर भी सुरक्षित हैं|
इस पर्वतीय राज्य के वनवैभव में कुछ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्पत्ति है| खासी समाज को अतिप्रिय इस मावफ्लांग के पवित्र जंगल ने प्राचीन गुह्य इतिहास, रहस्यमय दंतकथाएं और विद्याओंको को अपनी विस्तीर्ण हरितिमा में छुपाकर रखा है| यहाँ की ऊँची नीची प्राकृतिक सीढ़ियां और पगडंडियां, छोटे बड़े वृक्ष-समूह, उनके बाहुपाश में घिरकर लिपटी लताएं, चित्रविचित्र पुष्पभार, पेड़ों पर और उनके नीचे फैले हुए फल, विस्तीर्ण पर्णराशी, जगह जगह बिखरे पाषाण (एकाश्म/ मोनोलिथ), बीच में ही विविध सप्तकों में कूजन से वन की शांति भंग करने वाले पंछी, यहाँ वहां स्वछंद हो उड़ने वाली रंग-बिरंगी तितलियाँ, यत्र तत्र तथा सर्वत्र जल के प्रवाही प्रवाह, हर कोई जैसे किसी रहस्यमयी उपन्यास के पात्र के समान, मानों प्रत्येक पात्र कहना चाहता हो, “मुझे कुछ कहना है”! यहाँ के आदिवासियों का सारा जीवन इन्हीं जंगलों में निहित है, इनका रक्षक और इन्हें भयभीत करने वाला जंगल एक ही है!
शिलॉंग शहर से केवल २६ किलोमीटर दूर है मावफ्लांग का सॅक्रेड ग्रूव्ह! हमारी उपवन /जंगल की कल्पना यानि मजबूत पथरीली, काँक्रीट या संगमरमर की सीढ़ियां, रास्ते, बैठने के लिए बेंच, कृत्रिम फव्वारे, स्विमिंग पूल, रेस्तरां, इत्यादी इत्यादी! प्यारे पाठकों, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं| जंगल जैसे का वैसा! नीचे की पर्णसम्पदा भी अस्पर्श, यहाँ की किसी भी चीज को मानव का स्पर्श वर्जित है! अर्थात हमारे वन में चलने के कारण हुए उसके बेमर्जी से हो उतना ही! मित्रों, यहीं है वह अनामिक, अभूतपूर्व, अप्रतिम, अलौकिक, अनुपम, अनाहत, अनोखा और अस्पर्शित सौंदर्य! हमें हमारे गाईड ने (उम्र २१ वर्ष) इस जंगल का ह्रदयस्पर्शी विलक्षण ऐसा संदेश बतलाया, “यहाँ आइये, यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का वैभव अपने नेत्रों में जी भर कर समाहित कर लीजिये (परन्तु कुछ भी लूटने की कोशिश कदापि मत कीजिये!), यहाँ से लेकर जाना चाहते हैं, तो इस सौंदर्य की स्मृतियाँ ले जाइये और उन्हें जतन कीजिये, हृदय में या अधिक से अधिक कैमरे में! यहाँ से एक सूखी पत्ती तो छोड़िये, एक तिनका भी उठाकर मत ले जाइये! मित्रों, ऐसी सख्ती रहने के उपरांत ‘वनों की कटाई’ जैसे शब्दों का हम सपने में भी स्मरण नहीं करेंगे! पेड़ों की क्या हम ऐसी परवाह करते हैं? पत्तों और फूलों को तोड़ने और पेड़ों को घायल करने का उद्योग इतना सरेआम होता है कि क्या कहें! (हमारे लिए हर महीना सावन होता है, पूजा को पत्ते या फूल नहीं चाहिए क्या!!!)
सेक्रेड ग्रोव्हस में इनके लिये कोई जगह नहीं, उल्टा “ऐसा करोगे तो मृत्यु हो सकती है, से लेकर कुछ कुछ होता है”, यहीं शिक्षा इन जनजातियोंको की पीढ़ी दर पीढ़ी को दी गई है| यहाँ स्थानीय लोग एक सीदे सादे नियम का पालन करते हैं (हमें भी यह करना होगा!), “इस जंगल से कुछ भी बाहर नहीं जाता”| अगर आप मृत लकड़ी या मृत पत्ती चुराते हैं तो क्या होगा, यह प्रश्न आप करेंगे! दंत कथाएं बताती हैं, “जो कोई भी जंगल से कुछ भी ले जाने की हिम्मत करता है, वह रहस्यमय तरीके से बीमार पड़ता है, कभी कभी तो प्राण पखेरू उड़ जाने तक की नौबत आ जाती है|” इसीलिये यहाँ कुछ वृक्ष १००० वर्षों से भी अधिक जीवित हैं, प्राकृतिक ऊर्जा, जल, खाद सब कुछ है उनके पास, सौभाग्य से एक ही चीज़ नहीं, मानव की भूखी और क्रूर नज़र!!!
यह वनसंपदा धार्मिक कारणों से ही सही, सुरक्षित रखी है यहाँ की तीनों जनजातियोंने! यहाँ जैवविविधता उत्तम प्रकार से जतन की गई है, वनस्पती तथा पेड़ों की प्रजातियों की विस्तृत श्रेणियां (यह ध्यान रहे कि, इनमें दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं) फल फूल रही हैं, निर्भय हो कर जी रही हैं! मंत्रमुग्ध करने वाला यह हराभरा पर्जन्य-वन-वैभव इतना कैसे निखरता है? इसका कारण है, इसकी उष्णकटिबंधीय उत्पत्ति, यहाँ बरसात में पवन और पानी दोनों ही दीवाने हो जाते हैं, हर्ष और मोद की मानों बाढ़ आ जाती है! तूफानी हवा का बवण्डर और आसमान से घनघोर घटाओं से बरसती घमासान जलधाराओं का नृत्यविलास! इसी अर्थ का एक मराठी गीत है, “घन घन माला नभी दाटल्या कोसळती धारा!”
प्रिय मित्रों, यहाँ टाइम का ध्यान रखना अत्यावश्यक है (सुबह ९ से शाम ४.३०). देरी से जंगल में जाने वाले और जंगल में से देरी से लौटने वाले को माफ नहीं किया जाता! हमें ऐसे जंगल की आदत नहीं है, इसलिए यहाँ भटकना ठीक नहीं| देखने लायक बहुत कुछ रहकर भी यकीनन आप की आँखें वह देख नहीं पाएगी| यहीं के प्रशिक्षित स्थानिक मार्गदर्शक/ गाईड का कोई विकल्प नहीं| आपका यह गाईड यहाँ की महज समृद्ध वनसंपदा ही नहीं दिखाएगा, परन्तु यह ध्यान रहे कि, वह यहाँ का वनरक्षक और सांस्कृतिक वारिस भी है! यह पथप्रदर्शक रोमहर्षक प्रकार से इस जंगल का राज़ सुलझाकर बताएगा, साथ ही, खासी जनजाति की धार्मिक और सांस्कृतिक श्रद्धा तथा इस जंगल का संबंध विस्तारपूर्वक बतलाएगा! प्रिय पाठकों, वह यहाँ की एक एक पत्ती को देखते हुए यहीं बड़ा हुआ है! यहाँ की दंतकथाएं उसीके प्रभावपूर्ण निवेदन में सुनिएगा मित्रों| मजे की बात यह है कि सभी गाइड एक ही जबानी बोलते हैं (समान प्रशिक्षण!), हमारा युवा गाइड एकदम धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल रहा था| उसने हमें खासी भाषा के बारे में भी कुछ ज्ञान दिया।
अब इस वनसम्पदा की नयनाभिराम और विस्मयकारक चीजें देखते हैं!
नयनरम्य जंगल की पगडंडी (फॉरेस्ट ट्रेल)
यहाँ की टेढ़ी मेढ़ी राहें पर्यटकों को अगोचर लगेगी ऐसी ही हैं! यहाँ पर टहलते हुए वृक्षलताओं के अनायास सजे हुए मंडप या छत के नीचे से जाते जाइये| यह सदाहरित घनतिमिर बन आप के ऊपर अपनी प्रेमभरी छत्रछाया का आँचल फैलाते हुए सूर्यकिरणों का स्पर्श तक होने नहीं देगा! यहाँ की पतझड़ की सुन्दर और अद्भुत रंगावली हरे और हल्दी जैसे पीत वर्ण से सजी होती है! यह घना वनवैभव निरंतर हवा के झोकों के संगीत पर दोलायमान होकर झूमते और लहराते रहता है! ये पगडंडियां हमें लेकर जाती हैं यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा के विश्व में!
वर्षा ऋतु में अगर मूसलाधार बारिश हो रही हो तो, यह यात्रा कई गुना दुर्गम हो जाती है! यहीं सुगम्य राहें अब फिसलन और काई से भर जाती हैं! (हमारे अनुभव के बोल हैं ये!) हम लोगों ने आधे से भी अधिक बन देखा, परन्तु बाद में पगडण्डी पर भी चलना कठिन हुआ, अलावा इसके कि, नदी को लांघकर ही आगे जाना होगा, वापसी का और कोई रास्ता नहीं, ऐसी जानकारी गाइड ने दी और फिर हम वापस आए| प्रिय पाठकों, सितम्बर- अक्टूबर के महीनों में इस परिसर को भेंट देना उत्तम रहेगा!
एकाश्म/ मोनोलिथ्स
इस बन का रहस्य वर्धित करनेवाले अनाकलनीय स्थानोंपर एकाश्म/मोनोलिथ्स (monoliths) स्थित हैं| मोनोलिथ यानि एक खड़ा विशाल पाषाण या एकाश्म/ एकल शिला! गाईडने बतलाया कि, एकाश्म खासी लोगों के पूजास्थान हैं| वे इनका उपयोग पशु बलि देने के लिए करते हैं| हम जिस सहजता से मंदिर में जाकर घण्टी बजाते हैं उसी प्रकार ये लोग पशु बलि देते हैं| यहाँ पर एक मोनोलिथ फेस्टिव्हल (उत्सव) भी होता है, आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत तथा वैभव के दर्शन करने का यह उत्तम अवसर होता है| उस समय ऐसा प्रतीत होता है, मानों यह सकल जंगल जीवंत हो अपनी कहानी खुद बखान कर रहा हो!
खासी हेरिटेज गांव
गांव के लोगों की हस्तकला का दर्शन और उनकी झुग्गी झोपड़ियों से बना यह गांव प्रदर्शन हेतु तैयार किया जा रहा है! इसका काम विविध स्तरों पर जारी है ऐसा गांववालों ने बताया|
लबासा, जंगलकी देवता
लबासा, यह है शक्तिशाली देवता, इसी जंगल में संचार करनेवाली, इस प्रदेश के सकल लोगों का उद्धार करनेवाली और उनका श्रद्धास्थान! इसीलिये देखिये न इसकी कृपा से गांव वालों की समस्त उपजीविका जंगल के इर्द गिर्द घूम रही है| बीमारी हो, नसीब का फेरा हो या रोजमर्रा की कोई भी परेशानी हो, यह देवता उनके विश्वास का प्रमुख आधार हैं। किंवदंती है कि, आदिवासी लोगों की रक्षा के लिए यह देवता बाघ या तेंदुए का रूप ले सकती है। देवता को प्रसन्न करने हेतु मुर्गे या बकरे की बलि दी जाती है। इसी जंगल में गांववाले अपने मृतकों को जलाते हैं|
अगले भाग में चलेंगे एक अत्यंत कठिन ट्रेल पर!
तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
डॉ. मीना श्रीवास्तव
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|
https://photos.app.goo.gl/nbRv3RzAUpaEY12V7
सेक्रेड ग्रूव्हस- प्रवास का आरम्भ हमारे गाईड के साथ!
“घन घन माला नभी दाटल्या” चित्रपट -“वरदक्षिणा”
गायक मन्ना डे, गीत ग दि माडगूळकर, संगीत वसंत पवार
© डॉ. मीना श्रीवास्तव
८ जून २०२२
ठाणे
मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈