डाॅ. मीना श्रीवास्तव
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-१२ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(षोडशी शिलॉन्ग)
प्रिय पाठकगण,
आपको विनम्र होकर अन्तिम बार कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
मित्रों, हमने पिछले भाग में शिलॉन्ग की यात्रा की। परंतु सफर कोई भी हो, शॉपिंग किये बगैर वह पूर्णत्व प्राप्त नहीं कर सकती। हर स्थान पर कुछ न कुछ विशिष्ट चीजें होती हैं ही, उनकी खोज बीन कहाँ और कैसे करना है इसका जन्मजात ज्ञान महिला मण्डली को बिलकुल होता ही है| इसलिए पुरुषमंडली को अब लम्बी लम्बी दूरियाँ काटना और शॉपिंग की बैग उठाना, इन गतिविधियों के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैय्यारी करते हुए सजग रहना है|
शॉपिंग
डॉन बॉस्को संग्रहालय के भीतर एक दुकान है, वहां मेघालय की स्मरणिका के रूप में काफी कुछ खरीदा जा सकता है| ग्राहकों के लिए इस दुकान में बजट के अनुसार बांस, बेंत की चीज़ें, स्वेटर, शॉल और अन्य बहुत सारी वस्तुएं उपलब्ध हैं! हमने यहाँ बहुत सारी चीजें खरीदीं| परन्तु यहाँ का मुख्य सस्ता और मनभाया बाज़ार है पोलिसबाज़ार! शहर के बीचोंबीच भरनेवाला यह बाजार हमेशा भीड़-भाड़ से भरा होता है! फुटपाथ पर लगी ज्यादातर दुकानें स्वयंसिध्दा स्त्रियां ही चलाती हैं| अत्यंत सक्षम, आत्मविश्वास से समृद्ध परन्तु मृदुभाषी ऐसी विविध आयु की स्त्रियों को देखकर मुझे विलक्षण आश्चर्य मिश्रित कौतुहल हुआ| मित्रों, आपको फिर एक बार याद दिलाती हूँ, इस स्त्री-सक्षमता के दो प्रमुख कारण हैं, आर्थिक स्वातंत्र्य और साक्षरता! यहाँ की लड़कियों को “चिंकी” इस नाम से चिढ़ाने वाले लोगोंने यहाँ प्रत्यक्ष आकर देखना चाहिए और आत्मचिंतन करते हुए खुद को प्रश्न पूछना चाहिए कि, प्रत्येक क्षेत्र में यहाँ की स्त्रियां अव्वल क्यों हैं? यहाँ बार्गेनिंग करने की काफी कुछ गुंजाईश है, इसलिए महिलावर्ग शॉपिंग के मनमाफिक आनंद का उपभोग ले सकती हैं! शॉपिंग करने पर थकावट आयी हो तो एक बढ़िया कॅफे और बेकरी है(Latte love cafe), वहां sangeet sunte hue आराम से बैठिये और क्षुधाशांति कीजिये! हमने यहाँ के पोलीस बाजार में बहुत खरीददारी की, कपडे, स्वेटर, शॉल, बेंत की चीज़ें और बहुत कुछ!
अब मैं ऐसे दो रेस्तरां के बारे में बताती हूँ, जो मुझे भाए थे| एक था डॉकी से सोहरा के प्रवास में खोजा हुआ, खाना और नाश्ता इत्यादि के लिए काफी चॉईस था, साथ ही प्राकृतिक तथा स्वच्छ वातावरण और बहुत ही अदब से पेश आने वाला हॉटेल स्टाफ! रेस्तरां का नाम था ‘Ka Bri War Resort’| दूसरा था सोहरा (चेरापुंजी) का प्रसिद्ध रेस्तरां, ‘Orange Roots’| यह पर्यटकों का पसंदीदा रेस्तरां है| यहाँ हमेशा ही भीड़ लगी रहती है, बाहर ही प्रवेशद्वार से सटे हुए एक ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ मेन्यू पढ़ लीजिये और ऑर्डर देकर ही अंदर जाइये। आप कहाँ बैठे है, इसकी जानकारी दरवाजेपर खड़ी रिसेप्शनिस्ट को दे दीजिये! अंदर सर्वत्र स्त्री साम्राज्य, आपके सामने कुछ ही देर में स्वादिष्ट खाना अथवा नाश्ता आ जायेगा| अलावा इसके प्रवेशद्वार के बाहर एक छोटी दूकान भी है, विभिन्न स्वाद वाली चाय (पाउडर और पत्ती), मसाले (ज्यादातर कलमी) और अन्य सामान यहाँ उपलब्ध है।
शिलॉन्ग के निवासी होटल
हमने ‘D Blanche Inn’ इस शिलॉन्ग में स्थित होटल में २ दिन वास्तव्य किया| इस सुन्दर होटल का परिवेश दर्शनीय था। चारों ओर हरियाली और नीले पहाड़ थे और होटल परिसर में खूबसूरत वृक्षलताएँ और फूल खिले थे। होटल साफ सुथरा और सुख सुविधाओंसे परिपूर्ण था। खाना और नाश्ता उपलब्ध था | दूसरा था ‘La Chumiere’ गेस्ट हाऊस, पुराने ज़माने के किसी धनी व्यक्ति के विशाल दो मंजिला बंगले को अब गेस्ट हाउस में परिवर्तित कर दिया गया है! बंगले के कमरे बड़े और सुख सुविधायुक्त हैं| बंगले का संपूर्ण परिसर हरियाली और विभिन्न प्रकारके सुंदर और रंगबिरंगे फूलों से सुशोभित है| मैंने यहाँ के बगीचे में आराम से टहलते हुए सुबह चाय का मज़ा लिया| बंगले में ही ऑर्डर देकर खाना और नाश्ता उपलब्ध था, दोनों ही बहुत स्वादिष्ट थे| मेरे घर के लोग जब डेविड स्कॉट ट्रेल करने के लिए सुबह ८ से शाम के ५ बजने तक बाहर गए थे, तब मैं इस बंगले में बड़े ही आराम से रिलॅक्स कर रही थी|
खासी लोगोंकी खास खासी भाषा
मेघालय की तीन जनजातियों की खासी (Khasi), गारो (Garo), जैंतिया (Jaintia) तथा अंग्रेजी ये सरकारमान्य भाषा हैं| खासी भाषा के बारे में हमें सॅक्रेड फॉरेस्ट के गाईड ने बताया कि एक ख्रिश्चन धर्मगुरू ने इस भाषा के लिए 23 अंग्रेजी मूल-अक्षरों का (चित्र दिया है) उपयोग करके खासी भाषा के लिए एक अलग लिपि बनाई! अब यह लिपि खासी भाषा के लिए मेघालय में हर जगह (यहां तक कि स्कूलों और कॉलेजों में भी) प्रयोग की जाती है। इसके अलावा यहां अंग्रेजी का प्रयोग प्रचलित है।
शिलॉन्ग हवाईअड्डा
हमारा अंतिम डेस्टिनेशन शिलॉन्ग हवाईअड्डा (एयर पोर्ट) था, अजय ने हमें वहां छोड़ा| हवाईअड्डे के कोने में मेघालय की संस्कृति दर्शानेवाली छोटी सी सुंदर झोंपड़ी बनाई गयी थी, साथ ही वहां बांस की चीजें रखी थीं, खास फोटो खींचने के लिए! हमने वहां तुरंत फोटो खींचे| हमारा आरक्षण शिल्लोंग से कोलकोता तथा वहां से मुंबई ऐसे दो हवाईजहाजों का था| यहाँ से इंडिगो एअरलाईन्स का हवाईजहाज दोपहर ४ बजे जाने वाला था, परन्तु ४.४५ बजे ज्ञात हुआ कि गहरे कोहरे के कारण या वह यहाँ नहीं उतर पायेगा| हम उदास और हताश थे, तभी इंडिगो के स्टाफ ने हमें बुलाया और बताया “हम आप लोगों के लिए गुवाहाटी से दिल्ली या कोलकोता और आगे मुंबई ऐसे २ हवाईजहाजों में आप के सफर की व्यवस्था करेंगे”| हम तुरंत ही उनकी सूचना का पालन करते हुए उनकी ही कॅब से गुवाहाटी हवाईअड्डे पर पहुंचे (लगभग ३ घंटों में ११० किलोमीटर) और अंत में गुवाहाटी से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई ऐसे रात्रि १० बजे पहुँचने की बजाय दूसरे दिन सुबह ६ बजे घर पहुंचे| हमें जरूर असुविधा हुई, परन्तु मैं इंडिगो एअर लाईन्स के स्टाफ की आभारी हूँ, उन्होंने अत्यंत तत्परता से, खुद होकर हमारा यह पूरा सफर निःशुल्क उपलब्ध किया| हम गुवाहाटी से मुंबई ऐसा सीधा हवाईजहाज का सफर करते तो शायद बेहतर होता, ऐसा बाद में महसूस हुआ| परन्तु आखिरकार हमारी यह यात्रा भी सफल और संपूर्ण हुई और ११ दिनों के बाद होम स्वीट होम इस प्रकार पुनश्च फिर एक बार मुझे मेरे ही घर से नए सिरे से नयी नयी प्रीत हुई|
हमने मेघालय का थोडा ही (बहुतांश उत्तर की ओर का) भाग देखा, परन्तु संपूर्ण समाहित हो कर! इसका अधिकांश श्रेय मैं मेरे जमाई उज्ज्वल (बॅनर्जी) और मेरी पोती अनुभूती के नियोजन को (इसमें होम स्टे और गेस्ट हाऊस में बड़ा मज़ा आया, साथ ही उपलब्ध समय में अच्छे स्पॉट्स देखे) और साथ ही मेरी बेटी आरती को दूंगी| जाते हुए मेरे मन में दुविधा थी कि यह सफर मैं कर पाऊँगी या नहीं, लेकिन इन तीनों ने मुझे इतना संभाला, मैं तो कहूँगी, कदम कदम पर! इसीलिये मेघालय मुझे इतना जँचा और इतना भाया| अर्थात अपने इतने निकटस्थ व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट कैसे और क्यों करना, इस दुविधा में हम अक्सर वह करते ही नहीं, परन्तु मैं इन तीनों का बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ! यहीं सच है क्यों कि, यह मेरे दिल के अंदर की आवाज़ है!!!
प्रिय पाठक गण, मेघालय के ११ दिनों की यात्रा का वर्णन इतना लम्बा होगा और उसके १२ भाग लिखूँगी ऐसा मैंने सपने में भी सोचा नहीं था| परन्तु अब इस यात्रा को विराम देनेका समय आ गया है!
अगली यात्रा के वर्णन का अवसर जब आयेगा तब आपसे अवश्य भेंट होगी, तब तक फ़िलहाल अन्तिम बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
प्रिय मित्रों, मेरी मेघालय यात्रा की श्रंखला के सब भाग आप तक पहुँचाने वाले ‘www.e-abhivyakti.com’ के प्रमुख सम्पादक श्री हेमंत बावनकर तथा उनकी टीम का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ !
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, (लिंक अगर न खुले तो, गाना/ विडिओ के शब्द यू ट्यूब पर डालने पर वे देखे जा सकते हैं|)
खासी, गारो और जैंतिया जनजातियों का फ्यूजन नृत्य
What A Wonder #Meghalaya | Meghalaya Tourism Official
*** इस संपूर्ण प्रस्तुति में समावेश किये चित्र एवं गानों की लिंक केवल अभ्यास मात्र तक ही सीमित हैं|
© डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈