डॉ निशा अग्रवाल

☆ आलेख – “रोबोट ले रहे हैं मानव का स्थान” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

आधुनिक युग में, तकनीकी विकास ने मानव जीवन के हर क्षेत्र को बदल दिया है। इस प्रगति में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और रोबोटिक्स का योगदान प्रमुख है। आज रोबोट्स केवल फ़ैक्टरियों में सीमित नहीं रहे; बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, साइंटिस्ट, वकील, और क्लीनर मेन जैसे विविध क्षेत्रों में मानव की जगह ले रहे हैं। ये परिवर्तन समाज पर दूरगामी प्रभाव डाल रहे हैं, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं में देखे जा सकते हैं।

तकनीकी प्रगति और रोबोट का उदय

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से निर्मित रोबोट्स में तेजी से सुधार हुआ है। ये रोबोट्स न केवल जटिल गणनाएँ करने में सक्षम हैं, बल्कि मानवीय निर्णय लेने और सीखने की क्षमता भी रखते हैं। मेडिकल क्षेत्र में रोबोट सर्जरी करते हैं, इंजीनियरिंग में जटिल डिजाइनों पर काम करते हैं, और शिक्षण के क्षेत्र में छात्र-छात्राओं को ज्ञान प्रदान करते हैं। यहां तक कि कंसल्टिंग और कानूनी मामलों में भी रोबोट्स के माध्यम से समस्या-समाधान किए जा रहे हैं। इन रोबोट्स ने बहुत हद तक यह साबित कर दिया है कि वे अनेक कार्यों में मानवीय गलती की संभावनाओं को कम कर सकते हैं और कुशलता को बढ़ा सकते हैं।

रोजगार पर संकट

हालांकि रोबोटिक्स और AI ने कई कार्यों को आसान और तेज़ कर दिया है, परंतु इसके कारण मानव रोजगार पर खतरा उत्पन्न हो गया है। जहाँ एक ओर रोबोट्स 24/7 बिना रुके कार्य कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर वे मानवीय कार्यशक्ति की आवश्यकता को कम करते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, कारखानों में रोबोटिक आर्म्स के आने से मजदूरों की नौकरी में कमी आई है। विभिन्न क्षेत्रों में, रोबोट्स के उपयोग से श्रम लागत में कटौती होती है, जिससे कंपनियाँ अधिक मुनाफा कमा सकती हैं, परंतु यह स्थिति मानव श्रमिकों के भविष्य को धुंधला कर रही है।

मानव कार्यशैली पर प्रभाव

रोबोट्स के कार्यक्षेत्र में आने से मानव कार्यशैली भी बदली है। इंसान के पास अब ऐसे कई कार्य रह गए हैं, जिनमें रचनात्मकता, भावनात्मक बुद्धिमता, और निर्णय क्षमता की अधिक आवश्यकता है। AI और रोबोट्स जहाँ तकनीकी कार्यों को सँभालते हैं, वहीं मानवीय गुण जैसे सहानुभूति, रचनात्मक सोच और नैतिकता केवल मानव में ही पाए जाते हैं। इस बदलाव ने लोगों को अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने और खुद को नई भूमिकाओं के लिए तैयार करने के लिए प्रेरित किया है।

सामाजिक प्रभाव और चुनौतियाँ

रोबोट्स के बढ़ते उपयोग से समाज में कई नैतिक और सामाजिक प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। क्या रोबोट्स मानवीय संबंधों और संवेदनाओं को पूरी तरह से समझ सकते हैं? क्या वे सही और गलत का अंतर कर सकते हैं? इनके कारण समाज में आर्थिक विषमता और असमानता भी बढ़ी है, क्योंकि केवल वही लोग सफल हो पा रहे हैं, जो तकनीकी विकास के साथ कदम मिला पा रहे हैं। साथ ही, इससे मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि कई लोग नौकरी खोने की चिंता में तनाव का शिकार हो रहे हैं।

समाधान और भविष्य की दिशा

रोबोटिक्स और AI के विस्तार को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है, परंतु हमें इस तकनीकी युग में मानवता का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए नई पीढ़ी को टेक्नोलॉजी से संबंधित शिक्षा और कौशल में प्रशिक्षित करना होगा, ताकि वे रोबोट्स के साथ काम करने में सक्षम बन सकें। इसके अतिरिक्त, सरकारों को ऐसे नीतिगत कदम उठाने चाहिए जो रोजगार के नए अवसर सृजित कर सकें, और समाज में बेरोजगारी की समस्या का समाधान कर सकें।

अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि रोबोट्स ने कई क्षेत्रों में मानव का स्थान लिया है और भविष्य में यह प्रवृत्ति और भी तेजी से बढ़ सकती है। लेकिन, तकनीकी विकास और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखना ही समाज के स्वस्थ और संतुलित विकास की कुंजी है। हमें एक ऐसे भविष्य की ओर देखना चाहिए, जहाँ मानव और रोबोट्स मिलकर कार्य करें, और इंसान का जीवन और भी समृद्ध और सुरक्षित बने।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

शिक्षाविद, पाठयपुस्तक लेखिका जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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