श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख – “राजा और रजवाड़े”।)
☆ आलेख ☆ राजा और रजवाड़े ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे देश के राजवाड़े तो आज़ादी के बाद से ही समाप्त हो गए थे। उनको मिलने वाला गुजारा भत्ता( प्रिवीपर्स) भी बंद हुए कई दशक हो गए।
आज़ादी से पूर्व हमारे मालिक इंग्लैंड जिनके राज्य में सूर्यास्त भी नहीं हुआ करता था, अब थोड़े से में सिमट कर रह गए हैं। पुरानी बात है “राज चला गया पर शान नहीं गई”। वहां अभी भी प्रतीक के रूप में राज तंत्र विद्यमान हैं।
वहां की महारानी एलिजाबेथ की वर्ष 1952 में ताज पोशी हुई थी। उसकी सत्तरवी (डायमंड जुबली) के उपलक्ष्य में कुछ दिन पूर्व भव्य आयोजन हुए।
महारानी ने अपनी बालकनी में आकर सबका अभिवादन स्वीकार किया। उनका स्वास्थ्य नरम रहता है। इसी कारण से वो इस आयोजन में शामिल नहीं हो पाई हैं। उनके एक मात्र पुत्र भी वृद्घावस्था का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वो अभी भी युवराज कहलाते हैं। ऐसा कहा जाता है, इतने लंबे समय तक युवराज रहने का उनका रिकॉर्ड शायद ही कभी टूट पाएं। ईश्वर महारानी को अच्छा स्वास्थ्य देवें। उनके रहन सहन के तरीके/ नियम भी तय शुदा हैं। हमारे देश में आज भी कई लोग अंग्रेजो की तरह जीवन व्यतीत करने के प्रयास करते हैं। मज़ाक में ऐसे लोगों के लिए कहा जाता है कि- “अंग्रेज़ चले गए और औलाद छोड़ गए”।
© श्री राकेश कुमार
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