श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 96 ☆ # गाँव # ☆
हम गांव हई अपने भितरा, हम सुंदर साज सजाईला
चनरू मंगरू चिथरू के साथे, खुशियां रोज मनाई ला।
खेते खरिहाने गांव घरे, खुशहाली चारिउ ओर रहल।
दुख में सुख में सब साथ रहल, घर गांव के खेढ़ा* बनल रहल।
दद्दा दादी चाची माई से, कुनबा (परिवार)पूरा भरल रहल।
सुख में दुख मे सब साथ रहै, सबकर रिस्ता जुड़ल रहल।
ना जाने कइसन आंधी आइल, सब तिनका-तिनका बिखर गयल ।
सब अपने स्वार्थ भुलाई गयले, नाता रिस्ता सब दरक गयल ।
माई बाबू अब भार लगै, ससुराल के रिस्ता नया जुडल।
साली सरहज अब नीक लगै, बहिनी से रिस्ता टूटि गयल
भाई के प्रेम के बदले में, नफ़रत क उपहार मिलल।
घर गांव पराया लगै लगल, अपनापन सबसे खतम भयल।
घर गांव लगै पिछड़ा पिछड़ा, जे जन्म से तोहरे साथ रहल।
संगी साथी सब बेगाना, अपनापन शहर से तोहे मिलल।
छोड़ला आपन गांव देश, शहरी पन पे लुभा गइला।
गांव का कुसूर रहल, काहे गांव भुला गइला?
अपने कुल में दाग लगाइके, घर गांव क रीत भुला गइला।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुन्द रचना