श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा- “विकल्प”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 116 ☆
☆ लघुकथा- विकल्प ☆
दिसंबर की ठण्डी रात को अचानक पानी बरसने पर माँ की नींद खुल गई, “तूझे कहा था गेहूँ धो कर छत पर मत सुखा, पर, तू मानती कहाँ हैं।”
” तो क्या करती? इस में धनेरिये पड़ गए थे।”
“अब सारे गेहूँ गीले हो रहे हैं।”
” तो मैं क्या करूँ?” बेटी खीज कर बोली, “मेरा कोई काम आप को पसंद नहीं आता। ऐसा क्यों नहीं करते- मेरा गला घोंट दो। आप को शांति मिल जाएगी।”
” तूझ से बहस करना ही बेकार है,” माँ जोर से बोली। तभी पिता की नींद खुल गई, “अरे भाग्यवान! क्या हुआ ? रात को भी….”
” पानी बरस रहा है। छत पर गेहूँ गीले हो रहे है। इस को कहा था- गेहूँ धो कर मत सूखा, पर यह माने तब ना,” कहते हुए माँ ने वापस अपनी बेटी की बुराई करना शुरू कर दिया।
मगर पिता चुपचाप उठे। बोले, “चल ‘बेटी’! उठ। छत पर चलते हैं,” कहते हुए पिता ने छाता उठा कर खोल लिया।
छाता खुलते ही माँ-बेटी की जुबानी जंग बंद हो गई।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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