॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ मनोभाव ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
प्रकृति ने मनुष्य को जो स्वाभाविक वरदान दिये हैं उनमें अत्याधिक महत्वपूर्ण हमारे मनोभाव हैं। मनोभाव ही व्यक्ति को प्रेरणा और गति प्रदान करते हैं। लोगों के द्वारा जो भी व्यवहार किये जाते हैं, उनका उद्गम मनोभावों में ही होता है। प्रेम और हिंसा दो ऐसे प्रमुख मनोभाव हैं, जिनका उपयोग कोई भी अपनी सुरक्षा के साधन के रूप में कर सकता है। व्यवहार में दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रेम के व्यवहार से हम औरों को अपना मित्र बना सकते हैं और हिंसा से अपना शत्रु। पर दोनों को आत्मरक्षा के लिये प्रयोग किया जा सकता है। प्रेम से प्रेम उत्पन्न होता हे और हिंसा से हिंसा। प्रेम का आत्मरक्षा हेतु प्रयोग करने पर सुरक्षा के साथ शांति और सुख का भी विकास होता है, परन्तु हिंसा के अपनाये जाने पर अनायास विपत्तियां टूट पड़ती हैं। खिन्नता का विस्तार होता है।
यद्यपि हिंसा और शक्ति के उपयोग से तत्कालिक विजय और बर्चस्व पाया जा सकता है। किन्तु सच्ची सुरक्षा और शांति नहीं मिल पाती है। विजय के दंभ से और अधिक प्राप्ति की लालसा जागती है। पराजित पक्ष को आक्रोश और प्रतिहिंसा का जोश जागता है और दोनों पक्षों में विरोध की दाहकता प्रबल हो जाती है। दोनों ओर अशांति बढ़ती है। अत: हिंसा किसी समस्या का स्थायी हल प्रस्तुत नहीं करती बल्कि नई कठिनाइयों को जन्म देती है। इसके विपरीत प्रेम से किसी गुत्थी का हल किये जाने से दोनों पक्षों में सहयोग, संतोष बढ़ता है और परिणाम स्वरूप सुखद वातावरण जीवन में बहुरूपी विकास की राहें सुलभ कराता है तथा सदा सभी सहयोगियों की खुशी बढ़ाता है। सरस, शांत वातावरण दे सबको उन्नति के अवसर प्रदान करता है और हर विषाद को हरता है। इसीलिये संसार के सभी धर्म प्रेम की भावना और सद्भावना की महत्ता प्रतिपादित करते हैं। सबसे मिल के रहने के उपदेश देते हैं और वैर-विरोध या आपसी टकराव से दूर रहने को कहते हैं। हिंसा को बुरा बताते हैं।
विश्व की वर्तमान अशांति का कारण प्रेम की उद्दात भावना को सही ढंग से न समझ पाना है। स्वार्थ सिद्धि के लिये संसार में लोग ओछे व्यवहारों का सहारा ले लेते हैं, जो स्नेह और समन्वय की भावना को नष्ट कर हिंसा को जन्म देते हैं। व्यक्ति यदि सहजता से प्रेम-सद्भाव के महत्व को समझ सके तो संसार के अधिकांश विवाद दूर हो जायें, देशों के बीच विभिन्न कारणों से खुदती हुई खाइयाँ पट जायें और विश्व में सुख-शांति का अवतरण हो। असुरक्षा व भय की भावना समाप्त हो और आतंकवाद का बढ़ता ताण्डव अपने आप खत्म हो जाये। भारतीय मूलमंत्र ‘अहिंसा परमो धर्म:’ का वास्तविक अर्थ संसार को समझने में कोई कठिनाई न हो तथा निष्कलुष पावन भावनाओं का नवोन्मेष हो सके।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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