॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ जीवन में सुविचार का महत्व ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
विचारों का मानव जीवन में बड़ा महत्व है। सभी प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो सोचता और समझता है और विचार कर भविष्य के निर्णय ले सकता है। जो कुछ मनुष्य करना चाहता है, पहले उस पर विचार करता है या यों भी कहा जा सकता है कि व्यक्ति जैसे विचार करता है वैसे ही कर्म करने को वह तत्पर होता है। अंग्रेजी में कहावत है- “The man becomes what he thinks.” अर्थात् जो जैसा सोचता है वैसा ही वह बनता है। सभी मार्गों का उद्गम विचारों से ही होता है। व्यक्ति समाज का एक सक्रिय घटक है, इसलिये उसके विचारों और कार्यों का प्रभाव केवल उस पर ही नहीं उसके परिवेश पर भी पड़ता है, पूरे समाज पर पड़ता है। जिसका व्यक्तित्व जितना महान होता है, उसका प्रभाव भी उतना ही विस्तृत और बड़ा होता है। इतिहास में ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं कि एक व्यक्ति विशेष के विचारों ने पूरे देश के इतिहास को बदल दिया है। उसके विचार से सारे समाज में एक नई जागृति आई या क्रांति हो गई। प्राचीन काल में देखें तो सम्राट अशोक और आधुनिक काल में देखें तो महात्मा गांधी ऐसे ही उदाहरण कहे जा सकते हैं। सम्राट अशोक के क्रूरतापूर्ण विचारों का ही परिणाम कलिंग युद्ध था, जिसकी जन-धन हानि से वह स्वयं घबरा उठा और उसके विचारों ने सर्वथा नया मोड़ ले प्रियदर्शी अशोक का रूप दिया। उसने अहिंसावादी बौद्ध धर्म का अनुशरण कर लिया और नये विचारों ने एक नये शांत सुखदायी सम्पन्न राज्य का निर्माण किया। महात्मा गांधी ने अपने सुदृढ़ विचारों से सत्य, अहिंसा, त्याग की भावना जगाकर बहुत बड़ी संख्या में अपने अनुयायी तैयार कर देश को विदेशी शासन से मुक्ति दिलाई। आज उनके विचारों को समग्र विश्व मान्यता देकर समस्याओं के समाधान खोजने में लगा है।
सुविचार, सद्बुद्धि और सदाचार का एक दूसरे से बड़ा सघन संबंध है। इसलिये भविष्य के उत्कर्ष और सही विकास के लिये सुविचार बहुत आवश्यक है। यदि विचार में अच्छाई नहीं होती तो पतन होता है, अनैतिकता का विस्तार होता है। इसलिये यह बहुत आवश्यक है कि बचपन से सुविचार की शिक्षा हो। विचारों की उत्पत्ति पर देश-काल का भी प्रभाव पड़ता है। जैसे एक महात्मा के विचार वातावरण को बदल देते हैं वैसे ही वातावरण भी व्यक्ति के विचारों को प्रभावित करता है। अत: बालमन पर सुविचार और सदाचार की सीख के लिये घर, समाज और परिवेश का वैसा ही होना आवश्यक है। अर्थात् विचारों से व्यवहार बनते हैं और सदाचार पूरा वातावरण सुविचारों के पोषक होते हैं। इसलिये शिष्ट व्यवहार सदाचार व नैतिक आचरण समाज को विचारों से ही मिलते हैं और समाज या देश को सुख शांति व प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं। घर, समाज व शाला और धार्मिक संस्थाओं से अनुकरण के आधार पर व्यक्ति सीखता है उनका वातावरण और विचार पवित्र और निश्छल होना बहुत आवश्यक है। आज के प्रदूषित वातावरण में ऐसा नहीं दिखता इससे ही अनाचार, दुराचार, अत्याचार और पापाचार का बोलबाला है। समाज का हर वर्ग त्रस्त है। इस त्रासदी से मुक्ति के लिये सदाचार, नैतिकता और सुविचार की महती आवश्यकत है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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