श्री सुनील देशपांडे
☆ “१८ जनवरी – स्व. हरिवंशराय बच्चन जी के पुण्यस्मरण अवसर पर ….” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆
स्व. हरिवंशराय बच्चन
(जन्म, 27 नवम्बर 1907. निधन, 18 जनवरी 2003)
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स्व. हरिवंशराय बच्चनजी के असंख्य चाहने वालों में से मैं एक हूं। उनकी कवितासे मैं बेहद प्यार करता हूं और जाहिर है कि उनकी मधुशाला का मैं बहुत बड़ा भक्त हूं। प्रकृति के हर अंगों में, जीवन के हर पहलू में, सभी जगह जिधर देखें उधर उन्हें मधुशाला नजर आती हैं। उनकी नजर तो मुझमें नहीं है और ना मैं उनके जैसा शब्दप्रभू हूँ फिर भी एक भक्त के नाते जो कुछ मन में आता है, वह शायद उनकी ही प्रेरणा है, मैं सादर कर रहा हूं। आपके आशिर्वाद और प्रशंसा के सिवा भी आपके सुझावों को भी जरूर चाहता हूं जिसके जरिए मुझे ज्यादा से ज्यादा सुधरने का मौका मिल सकेगा और शब्दों में ज्यादा से ज्यादा नशीलापन मैं भर सकूंगा।
——– सुनील देशपांडे
लॉकडाउन के काल में जब दुकानें बंद थी उसी माहौल के लिए यह चंद पंक्तियाँ बनाई थी आपके सामने रखता हूँ –
दुकाँ दुकाँ पे है ताला
घूंट भर न मिलेगी हाला
पिला दे नजरों से साकी
अब तो बंद है मधुशाला
कहीं न मिलेगी अब हाला
दिखे न अब साकी बाला
पूछ रहा है बार बार दिल
कभी खुलेगी मधुशाला
याद न अब आती हाला
भूल चुकी साकी बाला
काम चलाऊं घर की बला से
यदि खुले न कोई मधुशाला
पानी में देखो हाला
पत्नी में साकी बाला
कहां चले बाहर बाबू
घर में देखो मधुशाला
सद्भाव बनेंगे जब हाला
शब्द बने मधु का प्याला
बन के साकी पिला सभी को
हर कोई भाषा है मधुशाला
धर्म विचारों की हाला
धर्म ग्रंथ मधु का प्याला
खुद पढ़ के जब जानेगा
हर कोई धर्म है मधुशाला
सुबह रहे मन खाली प्याला
निसर्ग संगीत की भर हाला
टहलने निकल बाहर पगले
प्रकृति बन जाए मधुशाला
शब्द धुंद जैसे मधुबाला
उससे भर संगीत का प्याला
सवार हो सुर-लय-तालों पर
हर महफ़िल होगी मधुशाला
अंगदान की विचार हाला
शब्दों का भर भर मैं प्याला
बनके साकी चल पड़ता हूँ
मेरी पदयात्रा मधुशाला
किसने दिया है किसे मिला
किसे है शिकवा किसे गिला
आओ चलो मिलकर बैठेंगे
अंगदान महफ़िल मधुशाला
ताजी सब्जी दिखती हाला
खाली थैली मधु का प्याला
साकी बनेगी सब्जी वाली
सब्जी मंडी हो मधुशाला
प्यासा मैं मन मधु का प्याला
जिधर भी देखूं दिखती हाला
जहाँ वहाँ दिख साकी बाला
देख जहाँ मिलती मधुशाला
रोज नयी शब्द-चित्र हाला
हर समूह एक साकी बाला
लाख लाख तू घूंट पिए जा
भ्रमणध्वनी है एक मधुशाला
ज्ञान समुंदर जैसी हाला
हर पुस्तक है मधु का प्याला
पीले जितनी चाह बची है
वाचन मंदिर है मधुशाला
सुखमय यादों की हो हाला
जीवन अनुभव मधु का प्याला
विस्मृति में कटु अनुभव जाए
मन स्मृतिवन बन जा मधुशाला
मधुबाला की दिशा निराली
मधुशाला संग निशा निराली
निशा निमंत्रण करे रुबाई
उस हाला की नशा निराली
आनंद लुटा जा पीकर हाला
अती हो तो हो विषमय प्याला
गुलाम ना बन उसकी नशा का
ग़ुलाम बन जाए मधुशाला
इच्छित कार्य बने मधु हाला
कार्य नियोजन मधु का प्याला
कार्य की नशा बने अनावर
तब कार्यालय हो मधुशाला
मैं हूँ एक मस्तीका प्याला
तन मन की मस्ती हो हाला
अंदर आत्मा धुंद नशासे
अंतर्मन मेरी मधुशाला
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© श्री सुनील देशपांडे
मो – 9657709640
email : [email protected]
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈