श्रीमती समीक्षा तैलंग
( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार – साहित्यकार श्रीमती समीक्षा तैलंग जी का गंभीर चिंतन से उपजा एक विचारणीय ललित लेख गहराते श्याम वर्ण की उजास।)
☆ ललित लेख ☆ गहराते श्याम वर्ण की उजास ☆ श्रीमती समीक्षा तैलंग ☆
आज सुबह ऊपरवाले ने क्या खूब कूची चलाई कि आसमान में कहीं रंग हल्के तो कहीं गाढे थे। हल्का नीला आंखों को शीतलता और तरोताजा कर रहा था। गाढा नीला रंग उसके बीच अपना अस्तित्व दिखा रहा था। सारे हल्के रंग मिलकर ही तो गाढा रंग बनाते हैं। जैसे जीवन के रंग…!!
सुनहरी छटा को बीच-बीच में कुछ छिड़क-सा दिया था। हां, यही सुनहरा चाहते हैं ना हम सब। धुंधलके से उजला होता। धीमा पडता स्याह रंग।
वह द्रव्य भी तो श्याम ही है जिसमें धरती समाहित है। लेकिन उस श्याम को वरण करना इतना ही आसान होता तो उसमें हम सब समा जाते। खुद को समर्पित कर देते उस श्याम में।
लेकिन हमारी आंखों की चमक सुनहरेपन से हमेशा ही आकर्षित होती है। हम भागते हैं उसके पीछे। लेकिन श्याम तो हमारे जीवन का मुख्य रंग है। उसे हम आंखें मूंदकर भी महसूस कर सकते हैं। उसी में प्रस्फुटित होता है ये सुनहरापन। और यही हमेशा शाश्वत रहता है।
काले में सुनहरा ढूंढना हरेक के बस की बात नहीं होती। इसीलिए हमारे अपने हाथों में भी वही कूची दे दी जन्मदाता ने। ऊपरवाला रंगों से परिचय करा देता है। लेकिन जीवन के कैनवस पर उसे भरने के लिए यही कूची काम आती है।
हम यदि उन रंगों के मार्फत उसका संदेश समझ पाते हैं तो हम सही रंगों का संतुलित सम्मिश्रण कर उससे अपनी जन्मकुंडली में निखार लाते हैं। बस रंगों की गहराई को समझना ही तो जीवन है।
जिस दिन श्याम को समझ जाएंगे, जीवन उजास हो जाएगा। प्रकृति ने अपनी रंगीन छटा में मुझे आकृष्ट कर लिया। और अब उसने अपना सुनहरा रूप दिखाना शुरू कर दिया है।
© श्रीमती समीक्षा तैलंग
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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