श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
मैं अत्यंत कृतज्ञ हूँ सम्माननीय श्री संजय भरद्वाज जी का जिन्होंने जाने अनजाने में मेरे ह्रदय में ज्ञान एवं अध्यात्म को ज्योति को प्रज्ज्वलित किया। मैंने सन्देश दिया था कि ई- अभिव्यक्ति के अंक का प्रकाशन अगले 7 दिनों तक व्यक्तिगत एवं तकनीकी कारणों से स्थगित रहेगा किन्तु, श्री संजय भारद्वाज जी की एक आत्मीय पोस्ट ने मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया और ईश्वर ने एवं आपके स्नेह ने मुझे इसे गतिशील बनाने रखने हेतु साहस प्रदान किया। मैंने निर्णय लिया कि जब तक सब कुछ व्यवस्थित नहीं हो जाता तब तक निम्न तीन ब्लॉग पोस्ट सतत जारी रखूंगा
- गुरुवर प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – श्रीमद्भगवद्गीता पद्यानुवाद ( जीवन का सार )
- श्री संजय भारद्वाज जी के अध्यात्म से परिपूर्ण प्रेरक संजय दृष्टि एवं संजय उवाच ( जीवन जीने की अद्भुत दृष्टि )
- महाभारत के सुविख्यात चरित्र परम आदरणीय भीष्म पितामह के चरित्र पर आधारित धारावाहिक उपन्यास “युगांत” ( जीवन का अद्भुत प्रेरक चरित्र )
सम्माननीय श्री संजय भारद्वाज जी की आत्मीय पोस्ट एक रचना ही नहीं अपितु ऐसी सम्पादकीय ओजस्वी एवं प्रेरक रचना है जिसे संभवतः मेरी लेखनी भी उस ऊंचाई को स्पर्श नहीं कर पाती। अतः सादर प्रस्तुत है आदरणीय श्री संजय भारद्वाज जी की लेखनी से अतिथि सम्पादकीय……
-हेमन्त बावनकर
☆ ई-अभिव्यक्ति संवाद -अतिथि संपादक की कलम से ……. अब तक 365 !….✍️ ☆
आज 25 जुलाई है। इस दिनांक के साथ मेरे लेखकीय जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी जुड़ा हुआ है।
प्रसंग यह है कि गत लगभग दो-अढ़ाई वर्ष से लेखन नियमित-सा रहा है। कविता, लघुकथा, आलेख, संस्मरण, व्यंग्य और ‘उवाच’ के रूप में अभिव्यक्ति जन्म लेती रही। जून 2019 में ‘ई-अभिव्यक्ति’ ने ‘संजय उवाच’ को साप्ताहिक रूप से प्रकाशित करना आरम्भ किया।
फिर सम्पादक आदरणीय बावनकर जी का एक पत्र मिला। पत्र में उन्होंने लिखा था, “आपकी रचनाएँ इतनी हृदयस्पर्शी हैं कि मैं प्रतिदिन उदधृत करना चाहूँगा। जीवन के महाभारत में ‘संजय उवाच’ साप्ताहिक कैसे हो सकता है?”
‘संजयकोश’ में यों भी लिखना और जीना पर्यायवाची हैं। फलत: इस पत्र की निष्पत्तिस्वरूप ठीक एक वर्ष पहले अर्थात 25 जुलाई 2019 से सोमवार से शनिवार ‘संजय दृष्टि’ के अंतर्गत ‘ई-अभिव्यक्ति’ ने इस अकिंचन के ललित साहित्य को दैनिक रूप से प्रकाशित करना आरम्भ किया। रविवार को ‘संजय उवाच’ प्रकाशित होता रहा।
आज पीछे मुड़कर देखने पर पाता हूँ कि इस एक वर्ष ने बहुत कुछ दिया। ‘नियमित-सा’ को नियमित होना पड़ा। अलबत्ता नियमित लेखन की अपनी चुनौतियाँ और संभावनाएँ भी होती हैं। नियमित होना अविराम होता है। हर दिन शिल्प और विधा की नई संभावना बनती है तो पाठक को प्रतिदिन कुछ नया देने की चुनौती भी मुँह बाए खड़ी रहती है। अनेक बार पारिवारिक, दैहिक, भावनात्मक कठिनाइयाँ भी होती हैं जो शब्दों के उद्गम पर कुंडली मारकर बैठ जाती हैं। विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि यह कुंडली, भीतर की कुंडलिनी को कभी प्रभावित नहीं कर पाई। माँ शारदा की अनुकंपा ऐसी रही कि लेखनी हाथ में आते ही पथ दिखने लगा और शब्द पथिक बन गए।
अनेक बार यात्रा के बीच पोस्ट लिखी और भेजी। कभी किसी आयोजन में मंच पर बैठे-बैठे रचना भीतर किल्लोल करने लगी, तभी लिखी और भेजी। ड्राइविंग में कुछ रचनाओं ने जन्म पाया तो कुछ ट्रैफिक के चलते प्रसूत ही नहीं हो पाईं।
तब भी जो कुछ जन्मा, पाठकों ने उसे अनन्य नेह और अगाध ममत्व प्रदान किया। कुछ टिप्पणियाँ तो ऐसी मिलीं कि लेखक नतमस्तक हो गया।
नतमस्तक भाव से ही कहना चाहूँगा कि लेखन का प्रभाव रचनाकार मित्रों पर भी देखने को मिला। अपनी रचना के अंत में दिनांक और समय लिखने का आरम्भ से स्वभाव रहा। आज प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जुड़े 90 प्रतिशत से अधिक रचनाकारों ने अपनी रचना का समय और दिनांक लिखना आरम्भ कर दिया है। अनेक मित्रों ने इसका श्रेय दिया तो अनेक कंजूसी भी बरत गए। लेकिन ‘ नो हार्ड फीलिंग्स।’ जाकी रही भावना जैसी..! हाँ इतना अवश्य है कि रेकॉर्डकीपिंग की यह आदत भविष्य में मित्रों को अपनी रचनाधर्मिता की यात्रा के पड़ाव खंगालने में सहायक सिद्ध होगी।
विनम्रता से एक और आयाम की चर्चा करना चाहूँगा। लेखन की इस नियमितता से प्रेरणा लेकर अनेक मित्र नियमित रूप से लिखने लगे। किसी लेखक के लिए यह अनन्य और अद्भुत पारितोषिक है।
आदरणीय हेमंत जी इस नियमितता का कारण और कारक बने। उन्हें हृदय की गहराइयों से अनेकानेक धन्यवाद। नियमित रूप से अपनी प्रतिक्रिया देनेवाले पाठकों के प्रति आभार। ‘आप हैं सो मैं हूँ।’ मेरा अस्तित्व आपका ऋणी है।
दो हाथोंवाला
साधारण मनुष्य था मैं मित्रो!
तुम्हारी आशा और
विश्वास ने
मुझे सहस्त्रबाहु कर दिया!
आप सबके ऋण से उऋण होना भी नहीं चाहता। घोर स्वार्थी हूँ। चाहता हूँ कि समय के अंत तक लिखता रहूँ। चाहता हूँ कि समय के अंत तक हज़ार हाथों से रचता रहूँ।
संजय भारद्वाज
(लिखता हूँ सो जीता हूँ।)
24 जुलाई 2020, रात्रि 1:31 बजे
मोबाइल– 9890122603
हर परिस्थिति में लिखने की क्षमता रखने वाले संजय जी का अविरल लेखन चलता रहे ऐसी मनोकामना है।हार्दिक बधाई।
सुंदर विचार बधाई