श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का e-abhivyakti में स्वागत है।  हम श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी के रूप में एक बाल साहित्यकार को पाकर गौरवान्वित हैं। आपकी विशेष उपलब्धियां हैं  वर्ष – 2008 में 24, 2009 में 25 व 2010 में 16 बाल-कहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन है। इसके अतिरिक्त आप अपने बाल साहित्य के लिए कई सम्मनों/अलंकरणों से अलंकृत हैं।हमें  भविष्य में आपकी चुनिन्दा रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।)

 

? लू  की आत्मकथा ?

 

मैं लू हूँ.  लू यानी गरम हवा. गरमी में जब गरम हवा चलती है तब इसे ही लू चलना कहते हैं. क्या आप मुझे जानते हो ? नहीं ना ? तो चलो, मैं आज अपने बारे में बता कर आप को अपनी आत्मकथा सुनाती हूँ.

अक्सर गरमी के दिनों में गरम हवा चलती है. इसे ही लू चलना कहते हैं. इस वक्त वातावरण का तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है. यह तापमान आप के शरीर के तापमान 37 डिग्री से ​अधिक होता है.

इस ताप पर शरीर की स्वनियंत्रित तापमान प्रणाली शरीर का काम ठीकठाक ढंग से  करती है. इस का काम शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखना होता है. यदि वातावरण का तापमान इस ताप से ज्यादा हो जाता है और आप लोग गरमी में बाहर निकल कर खेलते हैं तो तब तुम्हारे शरीर की यह प्रणाली सक्रिय हो जाती है. इस वक्त यह शरीर से पसीना बाहर निकालती रहती है ताकि तुम्हारे शरीर का तापमान 37 डिग्री बनाए रखा जा सकें.

पसीना आने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है. पसीना हवा से सूख जाता है. इस से शरीर में पानी की कमी होने लगती है. इस वक्त आप को प्यास लगने लगती है.यदि आप समयसमय पर पानी पीते हो तो शरीर में पानी की पूर्ति हो जाती है.

कभी कभी इस का उल्टा हो जाता है. आप समय समय पर पानी नहीं पीते हो तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस दौरान धूप में खेलने या गरम हवा के संपर्क में आने से और शरीर में पानी की कमी होने से वह अपने सामान्य तापमान को बनाए रखने के लिए अधिक पसीना निकाल नहीं पाता है. इस के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है. शरीर के इस तरह तापमान बढ़ने को लू लगना कहते हैं.

लू लगने का आशय आप के शरीर का तापमान अधिक बढ़ जाना होता है. इस दौरान शरीर अपने तापमान को बनाए रखने में असमर्थ हो जाता है. इस से शरीर को बहुत नुकसान होता हैं. शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इस से आप का खून गाढ़ा हो जाता है. जिस से रक्त संचरण में रूकावट आती है. इस रूकावट की वजह से चक्कर आना, उल्टी होना, बेहोशी होना, आंखे जलना जैसी शिकायत होने लगती है. यह सब लू लगने के लक्षण होते हैं.

यदि लू लगने के बाद भी धूप में रहा जाए तो कभी कभी इनसान की मृत्यु हो जाती है. इस कारण गरमी में लू की वजह से कई जनहानि होती रहती है. मगर, आप सोच रहे होंगे कि मैं यानी लू बहुत खतरनाक होती हूं. नहीं भाई, आप का यह सोचना गलत है. मेरे चलने से ही समुद्र के पानी का वाष्पन होता है. इसी की वजह से बरसात आने की संभावना पैदा होती हैं. यदि मैं न होऊं तो आपके बहुत सारे काम रूक जाए.

वैसे आप कुछ सावधानियां रख कर मुझे से बच सकते हो. आप चाहते हो कि मैं आप को नुकसान नहीं पहुंचाऊं तो आप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. गरमी के दिनों में खूब पानी पी कर बाहर खेलना चाहिए. जब भी बाहर जाओ तब सिर पर सफेद कपड़ा या टोपी लगा कर बाहर जाओं. दिन के समय सीधी धूप में न रहो. खूब पानी या तरल पदार्थ पी कर तुम मुझ से और मेरे प्रभाव से बच सकते हो.

बस ! यही मेरी छोटीसी आत्मकथा हैं. यह तुम्हें अच्छी लगी होगी. मैं समझती हूं कि अब आप मुझे अच्छी तरह से समझ गए होंगे. मैं ठीक कह रही हूं ना ?

हाँ. अब ज्यादा गरदन मत हिलाओं. मैं समझ गई हूं कि तुम समझ गए हो. इसलिए अब मैं चलती हूं. मुझे अपने जिम्मे के कई काम करना हैं. कहते हुए लू तेजी से चली गई.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  [email protected]

मोबाइल 9424079675

 

 

 

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