डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

( डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान  प्रस्तुत है आपकी एक बेहद आत्मीय कहानी एक सच।  यह एक कटु सत्य है कि सेल्फ पब्लिशिंग  एक व्यापार बन गया है। यदि अपवाद स्वरुप कुछ प्रकाशकों को छोड़ दें तो अक्सर लेखक  स्वयं को लेखक-प्रकाशक-पुस्तक विक्रेता चक्रव्यूह  में स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस करता है। संवेदनशीलता से लिखा हुआ साहित्य बिना पैसे खर्च किये जमीनी स्तर तक पहुँचाना  इतना आसान नहीं रहा। आज लेखक अपनी पुस्तक अपनी  परिश्रम से कमाई हुई पूँजी लगाकर प्रकाशित तो कर लेता है किन्तु ,वह उन्हें बेच नहीं पाता। इस बेबाक कहानी के लिए डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी की लेखनी को सादर नमन।)  

☆ कथा-कहानी –  एक सच ☆ 

आज से दस साल पहले मोनिका अपने घर की बाल्कनी में बैठकर कुछ सोच रही थी । मंद-मंद हवा बह रही  थी । रोज़ वह हवा बहुत अच्छी लग रही थी । आज उस हवा में कुछ सूनापन नज़र आ रहा था । मोनिका को कुछ अजीब लग रहा था । आसमान में घने बादल भी छाये थे । लग रहा था कि अभी ज़ोरो की बारिश होगी । जैसे ही सोच रही थी कि बारिस भी शुरु हो गई । उस दिन घर में कोई भी नहीं था । उसके पति और बेटा दोनों काम पर गए थे । उसने सोचा कि क्यों न पकौडे खाये जाय ? यह सोचकर वह रसोईघर में गई ही थी कि दरवाज़े पर घंटी बजती है । उसे अजीब लगता है कि इतनी बारिश में कौन आया होगा ? सोचकर दरवाज़ा खोलती है । देखती है रेवती आधी भीगी हुई छाता लेकर खडी है । तुरंत उसने उसके लिए तौलिया दिया और कहा अरी! रेवती तुम इस वक्त यहाँ? बहुत ही बारिश हो रही है  । फोन पर ही हम बात कर लेते।

अच्छा तो तुम्हें मेरा इस वक्त आना पसंद नहीं आया । कहते हुए तौलिये से अपने बालों को सुखाती है ।

अरी! तुम भी ना!  हमेशा मुझे गलत समझती हो । मैंने तो इसलिए कहा था कि इतने ज़ोर की बारिश में ऐसे भीगकर आने से अच्छा होता कि हम फोन पर बातें कर लेतें । मैं वैसे भी अकेली हूँ । कुछ काम नहीं था, सोचा पकौडे बनाकर खाती हूँ । पता नहीं, आज मुझे अच्छा नहीं लग रहा है । वैसे तो अच्छा हुआ कि तुम भी आ गई, पकौडे खाने के लिए साथ मिल जाएगा । कहते हुए मोनिका रसोईघर की ओर जाती है ।

पीछे-पीछे रेवती भी जाती है और कहती है, तुमने मेरी कहानी पढी । जो मैंने तुम्हें दो दिन पहले भेजी थी ।

कौन -सी ? अरे! हाँ, वक्त ही नहीं मिलता । घर के काम से फुर्सत कहाँ रहती है । हम तो ठहरे घर में काम करनेवाले । कहते हुए वह मोनिका को प्लेट में पकौडे देती है ।

मुझसे वक्त की बात मत करो । बस आप लोगों ने अपना एक दायरा बना लिया है ।  हमेशा कहते रहना कि वक्त नहीं मिलता है । वक्त का अर्थ भी आप लोग जानते हो । हाँ, मेमसाब वक्त मिलता नहीं है, निकालना पडता है । अगर कुछ करना हो जिंदगी में तो वक्त निकालकर काम करना पडता है । मैंने कभी कोई भी काम रोते-रोते नहीं किया है । सुबह से लेकर रात तक हँसते हुए सारे काम करती हूँ । पता नहीं क्यों, आप लोग ऐसे सोचते हो कि आप सबसे अधिक काम कर रहे हो । आप ही हो जो घर को बनाती हो । अरे! हम बाहर और घर दोनों जगह काम करते है । फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं करते । आपको क्या लगता है कि हम घर पर काम नहीं करते । हम भी आप की ही तरह सारा काम करते है । सोचते है अब तक जो ज्ञान हासिल किया है वह दूसरों को दे तो अच्छा रहेगा । वैसे तो पकौडे तो अच्छे बने है । कहते हुए पकौडे की प्लेट को  सिंक में रखती है ।

तुम सही कह रही हो । शायद हम लोग ही आलसी बन गये है । करनेवाला कोई हो तो लगता है क्यों न हम भी आराम से काम करें । बाहर जाने का मात्र मर्द का काम है । यही सोचकर हम भी अपने आप को समझा लेते है । इसका मतलब यह नहीं कि हम बाहर जाकर काम करना नहीं जानते । हम भी स्वतंत्र रहना चाहते थे । हमारे पति राजेश ने मना कर दिया । शादी के बाद सारे परिवार को देखना ही तुम्हारा काम है, ऐसे अधिकार से कहा कि सब कुछ पीछे छुट गया । खैर, अब तो जिंदगी भी खत्म हो गई है । कहने का मतलब है कि आज तो सब अनुभव मांगते है, जो हमारे पास नहीं है । अच्छा तुम बताओ । तुम कुछ परेशान लग रही हो । क्षमा करना, मैंने भी तुम्हें कुछ कहकर परेशान कर दिया है । इतनी बारिश में तुम मुझसे बात करने के लिए आई हो । कहते हुए मोनिका अदरकवाली चाय अपनी दोस्त रेवती को देती है।

नहीं तो, क्षमा तो मुझे मांगनी चाहिए । मैंने तुम्हें नाहक ही ऐसे सवाल करके परेशान कर दिया । तुम तो जानती हो कि मैं कहानियाँ लिखती हूँ । मैं कविता भी लिखती हूँ । मेरा मन आजकल कुछ भी लिखने को नहीं कर रहा है । मुझे लगता है कि हर कोई सिर्फ व्यापार करने बैठा है । पता है जब हम समाज को कुछ लिखकर उससे चेतना जागृत करने की कोशिश करते है, तो प्रकाशक साथ नहीं देते है । यह सच है कि वे व्यापार कर रहे है । फिर भी उनको भी समझना चाहिए कि हर साहित्यकार के पास इतने पैसे नहीं होते । माना कि उनको प्रिंटिग के लिए रुपये चाहिए  । उसमें भी एथिक्स नाम की कोई भी चीज नहीं रही है । कहते हुए रेवती चाय का प्याला भी रखकर बाल्कनी में बैठ जाती है ।

तुम भी ना ऐसे ही परेशान हो रही हो । अब बता कि तुम्हारे मुँह बोले भाई भी तो प्रकाशक है । तुम अपना काम उनसे क्यों नहीं करवाती हो? उनके बच्चे कैसे है? वे तो तुम्हें बहुत पसंद करते है। जब बारिश होती है, तो मिट्टी की खुश्बू बहुत अच्छी लगती है । कहते हुए मोनिका बाहर आकर रेवती के साथ बाल्कनी में बैठती है ।

सब ठीक ही होंगे । मैंने भी उनसे बात किए बहुत दिन हो गए । पता नहीं आजकल उनसे भी बात करना अच्छा नहीं लग रहा है । वह भी तो व्यापार ही कर रहे है । उन्होंने बच्चों को भी बहुत सीखा दिया है । अरे! व्यापार ही करना था । मुझसे कह देते । उन्होंने ऐसा नहीं किया । मैं हर बार कहती रही कि भाई कुछ पैसे चाहिए, कुछ परेशानी है । उन्होंने उस वक्त कुछ नहीं कहा । फिर अचानक एक दिन फोन करके कहा कि आप पांच हज़ार रुपये भेज दिए । मेरे लिए भी रुपये जुटाने आसान नहीं थे । कहते हुए रेवती ने अपने आंसू पौंछे ।

तुरंत मोनिका पानी देती है । इस बारे में तुम ज्यादा मत सोचो । तुम्हारी सेहत  पर असर पडेगा । कहते हुए मोनिका उसे शांत करती है ।

फिर भी उसने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा,  मैंने सोचा कि शायद उनको बहुत ज़रुरत होगी । रुपये भेजने के बाद भी काम नहीं हुआ । मैं भी इंतज़ार करती रही । उनको यह लगा कि मैं जल्दी कर रही हूँ । मेरी कोई और भी परेशानी थी । वह सब मैं उनको नहीं बता सकती थी । वहां से यह सुनने को मिला कि आप मुझे बहुत परेशान कर रही हो । यह तो गलत ही है ।  मुझे उनका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा । मुझे उनको किताब छपवाने के लिए देना ही नहीं था ।

अच्छा, तो तुम किसी और प्रकाशक के पास अपनी किताब छपवा सकती हो । तुम्हारी कहानी तो बहुत अच्छी होती है, माना कि हमने दो कहानी नहीं पढी है । तुम्हारी पहली किताब की हर कहानी को मैंने पढा है । तुम सच बताने से डरती नहीं हो । जो है उसे वैसे ही प्रस्तुत करती हो । तुम्हारी वही सच बातें मुझे अच्छी  लगती है । विषय का  जानकार हर कोई रहता है । बेबाकी से उसे प्रस्तुत तुम करती हो । सच,  तुम्हारी कोई ऐसे ही तारीफ़ नहीं कर रही हूँ। अच्छा लगता है, तुम्हारी कहानी पढकर कि तुम सच बताती हो । कहते हुए रेवती के हाथ पर अपना हाथ रखती है ।

अरे! दूसरे प्रकाशक तो और भी ज्यादा मांग करते है । कई प्रकाशक तो सिर्फ जाने-माने लेखकों की ही किताब छापते है । हम जैसे उभरते नये लेखकों की किताब नहीं छापते है । मुझे सच में बहुत बुरा लगता है । एक प्रकाशक ने तो चालीस हज़ार की मांग की, दूसरे ने दस हज़ार एक पुस्तक छापने के लिए मांगा था । मुझे लगा, यह लोग कर क्या रहे है?  मेरे पास तो रुपये नहीं थे तो कहने लगे कि घर में किसी से भी लेकर दे दीजिए ।

अरे! यह भी कोई बात हुई । यह तो गलत ही है । ऐसे कोई मांगता है क्या ? सही में मुझे भी बुरा लग रहा है । कहते हुए मोनिका ने अपने बेटे रोहित को फोन किया । बेटा आप कब आ रहे हो ? जल्दी लौट आना, देर मत करना । हाँ, अब बताओ । क्या हुआ ? सॉरी, मुझे रोहित की चिंता हो गई, इसलिए कोल किया ।

कोई बात नहीं है । अरे! मैंने कहा उनसे कि, आप मुझे मत बताइए कि मुझे रुपये किससे मांगने है  । घर चलाने के लिए भी रुपये चाहिए, ऐसे कैसे उनसे मांग लू । सच में प्रकाशक का ये काम कुछ ज्यादा ही हो रहा है । ऊपर से वे लोग मार्केटिंग भी नहीं करते है । पता है, अपनी चीज हो तो खुलकर सबको बताते है । अब बात तो हमारी किताब की थी, क्यों करते मार्केटिंग ? छी, सच में किससे रिश्ता निभाए ? आज तो बाज़ार में रिश्ते भी बिक रहे    है । रिश्तों का भी व्यापार हो चुका है । अब तो लिखने का भी मन नहीं करता । हम तो बस समाज में जो सच्चाई है उसे लोगों के सामने लाने का साहस कर रहे है । कोई हमारा साथ नहीं देता । कहते हुए उसकी आवाज़ रुँध जाती है ।

तुमने सही कहा रेवती । यह भूमंडलीकरण है, यहां पर कोई अपना नहीं है । अगर तुम उनके दृष्टिकोण से देखोगी तो वह भी गलत नहीं है । मैं किसी का भी पक्ष नहीं ले रही हूं । बस, तुम्हारी बातों को सुनकर बता रही हूँ । अन्यथा, नहीं लेना । प्रकाशक के लिए भी जिंदगी जीने के लिए पैसों की ज़रुरत होती है । शायद इसी वजह से वे पैसा मांगते है । उनके पास भी कितना पैसा बचता होगा । अपना व्यापार बढाने के लिए कई प्रकाशक ज्यादा मांगते  है । हां, मानती हूँ  कि उनको भी कई बाते सोचनी  चाहिए । तुम भी उनकी कोई सगी बहिन तो हो नहीं । व्यापार में अगर वह सबको बहन बनाकर ऐसे ही रुपये कम लेते रहे तो हो चुकी उनकी जिंदगी । तुम बुरा मत मानना । आज तुम्हारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए ऐसा सोच रही हो । वक्त आते ही सब ठीक हो जाएगा । चिंता मत करना । थोडा पानी पी लो । कहते हुए मोनिका फिर से रेवती को पानी देती है ।

कुछ ठीक नहीं होगा । सब ऐसा ही चलता रहा है, चलेगा भी । सब ऐसे ही लोगों को लूटेंगे । कहते हुए रेवती लंबी सांस लेती है । मुझे लिखना ही नहीं चाहिए । कहते हुए खुद उठकर पानी का बोतल रसोईघर में रखकर आती    है ।

अरे! ऐसे कैसे चलेगा ? तुम्हारी जैसी लेखिका कैसे निराश हो सकती है । तुम पहले एक काम करना कि अपनी कहानियों को ऑनलाइन मेगेज़ीन के लिए देना । लोग तुम्हारी लेखनी को पहचानेंगे । फिर प्रकाशक भी जानेगा । कोई तो अच्छा इन्सान होगा, जो सिर्फ तुम्हारी लिखावट को ही ध्यान देगा । कहते हुए मोनिका घर में बिखरे कपड़े ठीक करने लगती है । तभी दरवाज़े पर घंटी बजती है । रेवती की गहरी सोच टूटती है । मोनिका देखती है कि उसका बेटा रोहित काम से लौट आया है । मोनिका ने रोहित को हाथ-मुँह धोकर आने के लिए कहा ।

फिर रेवती भी घडी की ओर देखकर कहती है, अरे ! यह रात के नौ बज गये है ।  बारिश भी रुक गई है । तुम भी रोहित को खाना दे दो । यह तो चलता ही रहेगा । कभी भी प्रकाशक और साहित्यकार के बीच का यह माजरा खत्म नहीं होगा । कहते हुए रेवती वहाँ से जाने के लिए उठती है । जाते हुए मोनिका से कहती है,  तुमने जैसी सलाह दी है, मैं और भी कहानी लिखूंगी । जितना हो सके, समाज को सच से अवगत कराना चाहूँगी।

 

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

२७२, रत्नगिरि रेसिडेन्सी, जी.एफ़.-१, इसरो लेआउट, बेंगलूरु-७८

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