श्री राघवेंद्र दुबे
(ई- अभिव्यक्ति पर श्री राघवेंद्र दुबे जी का हार्दिक स्वागत है। विजयादशमी पर्व पर आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा “और रावण रह गया ”.)
☆ लघुकथा – और रावण रह गया ☆
एक बड़े नगर के बड़े भारी दशहरा मैदान में काफी भीड़ थी. लोगों के रेले के रेले चले आ रहे थे. आज रावण दहन होने वाला था. रावण भी काफी विशाल बनाया गया था.
ठीक रावण जलाने के वक्त पुतले में से एक आवाज आयी ” मुझे वही आदमी जलाये जिस में राम का कम से कम एक गुण अवश्य हो। भीड़ में खलबली मच गई। तरह-तरह की आवाजें उभरने लगी। लेकिन थोड़ी देर बाद वातावरण पूर्ण शांत हो गया। कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।
रावण ने आश्चर्य से नजरें झुका कर नीचे देखा तो मैदान में कोई नहीं था।
© श्री राघवेंद्र दुबे
इंदौर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈