श्री विजय कुमार
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी की लघुकथा “धन बनाम ज्ञान ”।)
☆ लघुकथा – हॉर्न ☆
विनोद और राजन दोनों जल्दी में थे। उन्हें अस्पताल पहुंचना था जहाँ उनका एक दोस्त ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। सड़क दुर्घटना में वह बुरी तरह से घायल हो चुका था और इस समय उसके पास कोई नहीं था, एक अनजान आदमी ने उसे वहां तक पहुँचाया था। अत: उन दोनों की वहां उपस्थिति, रुपए-पैसे से उसकी सहायता और खून देने जैसी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत जरूरी थी। इसलिए भीड़ भरी सड़क पर भी उनकी गाड़ी तेजी से दौड़ रही थी।
अचानक सड़क पर ही अपने आगे उन्हें एक बारात जाती दिखी। बारात में बहुत सारे लोग थे, जिन्होंने पूरी सड़क पर कब्ज़ा कर रखा था। दो-पहिया, ति-पहिया वाहन तो जैसे-तैसे निकल रहे थे, परन्तु कार या अन्य बड़े वाहनों के निकलने की गुंजाइश अत्यंत कम थी।
राजन ने जोर-जोर से कई बार हॉर्न भी दिया, परन्तु कुछ तो बैंड-बाजे की तेज़ आवाज और कुछ शादी में शामिल होने का नशा, बारातियों के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी।
राजन को क्रोध आ गया, “जी तो करता है सालों पर गाड़ी ही चढ़ा दूं। उधर हमारा दोस्त मर रहा है और इन्हें नाच-गाने की पड़ी है। बाप की सड़क समझ रखी है…।” राजन का चढ़ता पारा देख विनोद तुरंत कार से नीचे उतर गया, “हॉर्न मारने से कुछ नहीं होगा, बेमतलब में झगडा जरूर हो जाएगा। तू रुक मैं देख कर आता हूँ…।”
वहां जाते ही वह जोर-शोर से नृत्य करता हुआ उन बारातियों में शामिल हो गया। बाराती एक नए व्यक्ति को नृत्य में शामिल हुआ देख थोड़ा चौंक से गए और सभी कुछ पल में ही अपना नृत्य छोड़ उसे देखने लगे। विनोद ने मौका देख कर कहा, “नाचो यार, आप लोग क्यों रुक गए, नाचो। ऐसे मौके बार-बार थोड़े आते हैं। मुझे देखो, मेरा दोस्त अस्पताल में पड़ा है, जीवन-मृत्यु से जूझ रहा है, पर मैं फिर भी नाच रहा हूँ। भई ख़ुशी के समय ख़ुश और गम के समय दुखी दोनों होने चाहियें।”
भीड़ में सन्नाटा छा गया। विनोद हाथ जोड़ कर आगे बोला, “पर भाइयों और बहनों, एक विनती जरूर है मेरी कि थोड़ा सा रास्ता आने-जाने वालों को जरूर दे दें, कहीं आपकी वजह से वहां कोई दूसरा दम न तोड़ दे, धन्यवाद।” कह कर वह कार की तरफ चल पड़ा।
…अब उनकी गाड़ी फिर सरपट अस्पताल की तरफ दौड़ रही थी।
© श्री विजय कुमार
सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)
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