डॉ. हंसा दीप
☆ दो लघुकथाएं – (1) वजन (2) हाथी के दाँत ☆ डॉ. हंसा दीप ☆
☆ (1) वजन ☆
मोहिनी जी को अपनी किताब छपवानी थी। विरही जी ने बताया उनके दो कविता संग्रह भारत के गरिमामयी प्रकाशक से छपकर आ रहे हैं। हालांकि कविताओं पर एक सवालिया चिन्ह था। आश्चर्य, इतना बड़ा प्रकाशक विरही जी की कविताएँ प्रकाशित कर रहा है!
“उनकी शर्तें क्या हैं?”
“कोई शर्त नहीं, रचनाओं का वजन होना चाहिए।”
“कितना वजन, पंद्रह-बीस हजार का?”
“हजार का जमाना गया मैडम, शून्य बढ़ाइए।”
मोहिनी जी के हाथ अपनी आने वाली किताब का वजन महसूस कर रहे थे।
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☆ (2) हाथी के दाँत ☆
आज एक प्रतिष्ठित पत्रिका में रचना छपी। उन्होंने बधाई देकर उस नामी-गिरामी पत्रिका का ईमेल आईडी माँगा। मैंने तुरंत भेज दिया। उनका तत्काल फोन आया- “अरे, यह ईमेल आईडी तो सार्वजनिक है! आप वह ईमेल आईडी दीजिए जिस पर भेजने से रचना तुरंत स्वीकृत होकर प्रकाशित हो जाए।”
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© डॉ. हंसा दीप
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