श्री हरभगवान चावला

ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी का हार्दिक स्वागत।sअब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय लघुकथा ‘हमसफ़र’।)

☆ लघुकथा – हमसफ़र ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

आंदोलन ख़त्म होते ही राजधानी की सीमा पर बने अस्थायी घर टूटने लगे। सारा सामान ट्रॉलियों पर लादा जाने लगा। मानसा ज़िले के एक गाँव के कुछ किसान जिस घर में रह रहे थे, उस घर के टूट जाने के बाद सारा सामान ट्रॉली पर लाद रहे थे। थोड़ी दूरी पर एक पिल्ला चुपचाप खड़ा उन्हें ऐसा करते देख रहा था। वह अपनी जगह पर इतना स्थिर था कि जैसे वहीं उगा कोई पेड़ हो। उसे देख कर एक किसान ने कहा, “ओये देखो यारो, यह कितना उदास दिख रहा है।”

“उदास तो होणा ही है। अपणी दी रोटी खाता था, अपणे ही पास सो भी जाता था। अज्ज आपां जा रहे हैं। सच्ची दसणा, आपां उदास नईं? लगदा, जैसे अपणा घर छूट रहा है। अपणा यह हाल है तो इसका तो होणा ही है।” दूसरे ने कहा।

“इसको समझ नहीं आ रहा कि हो क्या रहा है, ये सब लोग कर क्या रहे हैं, कोई अनहोनी तो नहीं वापर गई!” तीसरे ने कहा।

“यारो यह पिल्ला हमारे आंदोलन के दौरान की पैदाइश ही है। हमारे सहारे का इसको भरोसा था, अब यह किसके सहारे? कल्ला रहेगा तो मर नहीं जायेगा?” चौथे ने कहा।

“ओये नहीं रहेगा यह कल्ला! यह अपणे साथ रहता था, अपणे साथ ही रहेगा। आपां ने इसको बेसहारा नईं होणे देणा।” यह कहते हुए एक किसान ने उसे उठाकर ट्रॉली में बिठा दिया।

© हरभगवान चावला

सम्पर्क –  406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments