श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर बाल कथा – “मोना जाग गई”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 108 ☆
☆ बाल कथा – मोना जाग गई ☆
मोना चकित थी। जिस सुंदर पक्षी को उसने देखा था वह बोल भी रहा था। एक पक्षी को मानव की भाषा बोलता देखकर मोना बहुत खुश हो गई।
उसी पक्षी ने मोना को सुबह-सवेरे यही कहा था,
“चिड़िया चहक उठी
उठ जाओ मोना।
चलो सैर को तुम
समय व्यर्थ ना खोना।।”
यह सुनकर मोना उठ बैठी। पक्षी ने अपने नीले-नीले पंख आपस में जोड़ दिए। मोना अपने को रोक न सकी। इसी के साथ वह हाथ जोड़ते हुए बोली, “नमस्ते।”
पक्षी ने भी अपने अंदाज में ‘नमस्ते’ कहा। फिर बोला,
“मंजन कर लो
कुल्ला कर लो।
जूता पहन के
उत्साह धर लो।।”
यह सुनकर मोना झटपट उठी। ब्रश लिया। मंजन किया। झट से कपड़े व जूते पहने। तब तक पक्षी उड़ता हुआ उसके आगे-आगे चलने लगा।
मोना का उत्साह जाग गया था। उसे एक अच्छा मित्र मिल गया था। वह झट से उसके पीछे चलने लगी। तभी पक्षी ने कहा,
“मेरे संग तुम दौडों
बिल्कुल धीरे सोना।
जा रहे वे दादाजी
जा रही है मोना।।”
“ओह! ये भी हमारे साथ सैर को जा रहे हैं,” मोना ने चाहते हुए कहा। फिर इधर-उधर देखा। कई लोग सैर को जा रहे थे। गाय जंगल चरने जा रही थी।
पक्षी आकाश में कलरव कर रहे थे। पूर्व दिशा में लालिमा छाने लगी थी। पहाड़ों के सुंदर दिख रहे थे। तभी पक्षी ने कहा,
“सुबह-सवेरे की
इनसे करो नमस्ते।
प्रसन्नचित हो ये
आशीष देंगे हंसते।।”
यह सुनते ही मोना जोर से बोल पड़ी, “नमस्ते दादा जी!”
तभी उधर से भी आवाज आई, “नमस्ते मोना! सदा खुश रहो।”
यह सुनकर मोना चौंक उठी। उसने आंखें मल कर देखा। वह बिस्तर पर थी। सामने दादा जी खड़े थे। वे मुस्कुरा रहे थे, “हमारी मोना जाग गई!”
“हां दादा जी,” कहते हुए मोना झट से बिस्तर से उठी, “दादा जी, मैं भी आपके साथ सैर को चलूंगी,” कह कर वह मंजन करके तैयार होने लगी।
“हां क्यों नहीं!” दादा जी ने कहा।
यह देख सुनकर उसकी मम्मी खुश हो गई।
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