श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लहूकथा – कमाई ।)
☆ लघुकथा – कमाई ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
स्कूल से लौटने के बाद से तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली बेटी तीन घंटे से पढ़ रही थी। उसे न खाने की सुध थी, न सोने की। इतनी देर तक तो बेटी कभी भी नहीं पढ़ी। शारदा ने पुकार कर पूछा, “आज स्कूल से बहुत काम मिला है क्या बेटी?”
“हाँ माँ।” श्रेया ने जवाब दिया।
“इतने छोटे बच्चों को इतना काम?” माँ ने भीतर आते-आते कहा। बेटी अब भी एक मोटी सी किताब पर झुकी हुई थी। माँ ने उस किताब को उठाकर उलट-पलट कर देखा,
“यह तुम्हारे सिलेबस की किताब तो नहीं है।”
“हाँ माँ, यह जी.के. की किताब है, स्कूल की लाइब्रेरी से इश्यू करवाई है। एक क्विज़ कंपिटीशन है, उसी की तैयारी करनी है।”
“क्विज़…?”
“डिस्ट्रिक्ट लेवल का कंपिटीशन है। कोई एंट्री फ़ीस नहीं है और जीतने पर नक़द ईनाम भी मिलेगा। मुझे यह कंपिटीशन जीतना ही है।”
“पर इतनी मेहनत…?”
“तुम पैसा कमाने के लिए कितनी मेहनत करती हो, मैं भी तुम्हारे लिए पैसा कमाना चाहती हूँ। पापा ने तो हमें छोड़ ही दिया है।” शारदा की आँखों में नमी उतर आई। श्रेया ने अपनी उँगलियाँ माँ की आँखों पर रख दीं,
“उस आदमी के लिए रोने की ज़रूरत नहीं। तुम चिंता मत करो, मैं कमाऊँगी मेरी प्यारी माँ के लिए।”
शारदा ने श्रेया को ख़ुद से चिपका लिया और धीरे से बड़बड़ाई, “तुम्हारे पास तो सिर्फ़ पैसा है राकेश, जीवन की असली कमाई तो मेरे पास है।”
© हरभगवान चावला
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