श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – वॉशरूम।)

☆ लघुकथा # 45 – वॉशरूम श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

रूबी का ससुराल में पहला दिन था सभी लोग बहुत खुश लग रहे थे कहीं जाने की तैयारी चल रही थी।

रूबी को आकर उसकी सास ने कहा कि – “बहू जल्दी से तैयार हो जाओ। हमारे यहां का रिवाज है कि हमारे यहां बहू बेटों को शादी के बाद शीतला देवी मंदिर जाते  हैं, जो कि यहां से 40 किलोमीटर दूर है ।”

“वहां पर सत्यनारायण की कथा होगी।”

मेरी कुछ सहेलियां भी वहां पर पहुंचेंगे और तुम्हारी ननद अनु भी रहेगी ।

“यह जेवर और यह साड़ी पहन लेना।

मेरी नाक मत कटाना अच्छे से तैयार होना।”

“रूबी मां यह बहुत भारी जेवर और साड़ी है इतने भारी जेवर आज के जमाने में कौन पहनता है।”

“बकवास मत करो जैसा  कह रही हूं वैसा ही करो।”

“वह चुपचाप तैयार हुई और उसने अपने पति रोहित से कहा -“कि क्या इसी दिन के लिए मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई की थी।”

“अब तुम्हारे साथ शादी करके क्या मुझे यह सब नौटंकी भी झेलनी पड़ेगी।”

रोहित – “बस आज की बात है माता के मंदिर जाना है और हमारे सारे रिश्तेदार बुआ और बहन लोग आ रही हैं” इसलिए मैंने तुमसे ऐसा कहा है।

वे सब लोग मंदिर में पहुंचे पंडित जी भी पहुंचे और पूजा शुरू हो गई पूजा 3 घंटे तक चली।

रूबी – ‘रोहित मुझे वॉशरूम जाना है।” 

कमला जी रूबी की जो सास है, उन्होंने कहा –

“यह सब नौटंकी या यहां नहीं चलेगी चुपचाप थोड़ी देर बिना बात किए बैठ नहीं सकते हो तुम दोनों।”

रूबी से बैठा नहीं जा रहा था और उसकी तकलीफ कोई नहीं समझ पा रहा था ।

” मेरी मति मारी गई और मैंने यह शादी की।”

तभी उसकी   (ननद) जो अनु दूर खड़े हो कर देख रही थी, उसको यह बात समझ में आ गई । और अपनी भाभी से कहा कि चलो।

अनु उसे मंदिर के वॉशरूम के सामने ले जाकर छोड़ दी ,वह  वॉशरूम से बाहर आते ही अपनी अनु के गले लग गई ।

अनु ने कहा कि भाभी कोई बात नहीं अब… “चलो जल्दी से हम लोग मंदिर चलते हैं ।”

मां कुछ नहीं बोलेगी?

वह बार-बार अनु को देख रही थी और उसकी आंखों ने सब कुछ बोल दिया।

रूबी की सास ने बोला कहां ले गई “अपनी भाभी को अनु”।

अनु बोली -“मां मैं भाभी को मंदिर का सिंदूर दिलाने के लिए लेकर गई थी “

“तुम्हारी बहू डॉक्टर है, इसे यह सब बातें तो नहीं पता होगी”

आप मां पूजा में व्यस्त थी ,इसीलिए मैं भाभी को लेकर चली गई…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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