श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – इंतजार।)

☆ लघुकथा # 47 – इंतजार श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जयप्रकाश आज सुबह से चाय का इंतजार कर रहे थे। बहू ने आज चाय नहीं दी मुझे, आज घर में बढ़िया-बढ़िया खाने की खुशबू आ रही है क्या बात है? आज उषा बहू जल्दी ही खाना बना रही हो!

बहू जल्दी से चाय दे दो।

 हां बाबूजी देती हूं और ब्रेड खा लीजिए आज नाश्ता नहीं बना रही हूं क्योंकि सत्येंद्र के दोस्त वीर आ रहे हैं अपने पूरे परिवार के साथ इसलिए मुझे जल्दी से खाना बनाना है।

ठीक है बेटा। मेरी कोई मदद की जरूरत है?

उषा -“नहीं बापूजी”

मैं बाबूजी ठीक है मैं ऊपर कमरे में जाता हूं।

सत्येंद्र और बच्चे जल्दी से नाश्ता कर लो । अभी राखी आ जाएगी तो मेरी थोड़ी मदद हो जाएगी। घर कोई मत फैलाना।

बाबूजी मन ही मन सोचते हैं, आज घर में तो बहुत अच्छी खुशबू  पनीर की आ रही है, और खीर भी बनी है, पूड़ी कचौड़ी पापड़ आज तो बढ़िया खाना मिलेगा।

सत्येंद्र – “बाबू जी आप कमरे से बाहर नहीं निकलना जब मेरा दोस्त चला जाएगा तब हम आपको बुला लेंगे”।

दोपहर हो जाती है, बाबूजी को कोई आवाज नहीं आ रही है, बहुत जोर से भूख लगी है सोचते हैं, चलो मैं नीचे चल कर देखता हूं बड़ी शांति लग रही है, घर में कोई नहीं है।

कामवाली राखी से पूछते हैं- क्या हो गया राखी तुम बर्तन मांज रही हो। सब लोग कहां गए?

सब लोग तो भैया के साथ बाहर चले गए।

रसोई में खाना देखता हूं बापू जी कुछ बर्तन खाली करके मुझे दे दीजिए।

अरे इसमें तो कुछ भी नहीं है, मैं चाय बना लेता हूं और ब्रेड के साथ खा   लेता हूं। राखी तुम भी चाय लो।

वह मन में सोचते हैं – खाना नहीं है, शायद मेहमानों को खाना अच्छा लगा होगा। बहू मेरा ख्याल रखती है, जल्दबाजी में कहीं जाना पड़ा होगा। मैं ऊपर जाकर थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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