श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक कहानी के पीछे की अप्रतिम विस्मयपूर्ण कहानी  “– बेबस कहानी –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ — बेबस कहानी — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

कथाकार ग्राहम को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था की ओर से योजना बनने पर संबद्ध अधिकारी उसके आवास पर उससे मिलने पहुँचे। ग्राहम ने खुशी से उनका स्वागत किया। इस बीच ग्राहम की नानी शालीन ने यथा संभव उन लोगों का अच्छा आतिथ्य किया। वे नानी को इस बात के लिए शाबाशी दे रहे थे उनका नाती अपने लेखन से एक खास पहचान रखता है। औपचारिक बातें पूरी हो जाने के बाद वे लौट गये।

शालीन ने अपने नाती ग्राहम से कहा, “मुझे बहुत खुशी हो रही है मेरा नाती इतना बड़ा लेखक है। अब मेरी ढिठाई तो देखो मैं उसे डाँटती रहती हूँ। यह तो मेरी बहुत बड़ी भूल है। सच कहती हूँ नाती, अब से कभी नहीं डाँटूँगी।”

नानी यह तो अपने को छोटा बना कर नाती से बातें कर रही थी। उसका नाती बाहर के लोगों के लिए जैसा भी होता हो, अपनी नानी के लिए तो छोटा बालक था। छोटा सा बालक अपनी बड़ी नानी के कदमों पर अपना जीवन न्योछावर कर दे।

नानी ने कहा उसे डाँटती रहती है, लेकिन ग्राहम को याद नहीं था नानी ने उसे कभी किसी बात पर डाँटा हो। उसने बड़े प्यार और श्रद्धा से कहा, “ मेरी नानी, लोगों की बातों से मुझे तौल कर अपने से दूर तो न करो। बाहर की बातें बाहर के लिए ही ठीक हो सकती हैं। यह तो हम दोनों के अपने प्रेम और रिश्ते का घर है। मेरी नानी खूब बड़ी रहे और मैं छोटा रहूँ। मुझे अपनी नानी से बस यही चाहिए।”

शालीन ने देखा नाती तो रुआँसा हो गया। उसने नाती का दिल दुखाया हो तभी तो ऐसी हालत पैदा हो रही थी। जीवन की अनुभवी नानी ने समझ लिया जो न बोला जाना चाहिए वही बोले जा रही है। नानी के साथ तो रोज़ नाती का संवाद चलता था। न नाती बोलने में अटकता था और न ही नानी को लगता था बोलने में किसी प्रकार की अति कर रही है। आज हुआ कि विद्वानों के अपने घर आने से मानो नानी को ताव आ गया था। उसके ताव का मतलब था भी क्या, बस अपने नाती का कद बड़ा रहे। बल्कि उसका कद तो बड़ा ही है। नानी बस अपने नाती के बड़े कद को देख कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझने का गौरव अनुभव करती रहे। 

नाती को सम्मानित किया जाने वाला था तो नानी उसी बात को आगे बढ़ाने के लिए बोली, “मेरे नाती, बड़े काम के लिए जाने वाले हो, नया कपड़ा जरूर सिलवा लेना।”

बातें कुछ हल्केपन पर उतर आने से ग्राहम को अच्छा लगा। नानी उसके कपड़े और खाने की बात करती रहती थी। वह ठीक से खा रहा हो, लेकिन नानी की शिकायत होती थी पूरा पेट तो खाया ही नहीं। वह नया कपड़ा पहने तो नानी के लिए तत्काल मानो वह कपड़ा पुराना हो जाता था। ग्राहम के लिए यही सच्चा सुख था। नाती को अभी बहुत कुछ करना है। उसकी नानी उसके हर काम की गवाह हो। नानी जब कहती थी तुमने अपना नाम यशस्वी बना लिया तो उसे लगता था इससे बड़ा अपने जीवन का और कोई पुण्य हो नहीं सकता। 

पढ़ी लिखी नानी ने अपने नाती को पाल पोस कर बड़ा करने के साथ अपने पास बिठा कर घंटों पढ़ाया था। ग्राहम के माँ – बाप न होने से तब तो ऐसा हुआ उसकी नानी ने अपने नाती को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मानो अपना ज्ञान उस पर वार दिया था। उसी नानी के घर में उसका नाती ग्राहम लेखक के रूप में उभरता गया और नानी उसके उत्कर्ष से फूला न समाती थी।

नानी इस बात की प्रत्यक्ष गवाह हुई नाती की कहानियाँ छपती थीं और उसके पाठक उसे पत्र लिखते रहते थे। नाती घर पर न हो तो डाकिये के हाथों से नानी स्वयं पत्र लेती थी। उसने नाती का पत्र कभी पढ़ा नहीं, लेकिन पूछती अवश्य थी लोग क्या लिखते हैं? लड़कियों के पत्र होने से नानी हँसी से कहती थी अब शादी के लिए सोचा करो।

दोनों सम्मान वाली बातें करते रहे। सम्मान की राशि दस लाख थी। नानी बल दे रही था बहुत सारा पैसा ग्राहम की शादी के लिए सुरक्षित रख लेना होगा। सहसा दोनों के बीच बातें उस मोड़ पर आने लगीं संसार के हजारों लोग ग्राहम की कहानियाँ पढ़ते हैं, लेकिन उसकी नानी ही पढ़ने से वंचित रह जाती है।

ग्राहम ने कहा, “अपने हिसाब से पढ़ा करो। तुम पढ़ो तो मेरे लिए बहुत ठीक होगा। तुम मार ठोंक कर कह सकती हो अरे पगले तुमने यह क्या लिखा है।”

नानी ने उसे याद दिलाया शुरु में तो खूब पढ़ती थी। परंतु उसे लगता था नाती ने विद्वानों के लिए लिखा है और वह है कि पढ़ने की व्यर्थ चेष्टा करती है। वह इस प्रसंग में विराम लगाने के उद्देश्य से बोली, “अब छोड़ो इन बातों को नाती।”

परंतु नाती नहीं छोड़ता। आज पहली बार नानी के साथ उसकी कहानियों के बारे में इतनी गहनता से बातें हो रही थीं। उसे लग रहा था उसके कहानी – लेखन की एक बहुत बड़ी खाई को पाटा जा रहा है। हालाँकि वह खाई की निश्चित परिभाषा न जान पाता, लेकिन न जानने में भी उसे एक अजीब से आनन्द की अनुभूति तो हो ही रही थी। उसे जैसे दैवी प्रेरणा हुई और उसने नानी से कहा, “मैं केवल तुम्हारे लिए एक कहानी लिखूँगा नानी।”

नानी को भी शायद दैवी प्रेरणा ही हुई और उसने कह दिया, “लिखो कहानी मेरे लिए नाती। परंतु कहानी मेरे स्तर की हो। शब्द ऐसे हों जो मैं बोलती हूँ। अच्छा होगा मेरे अपने वातावरण पर लिखी हुई कहानी हो। मेरा गाँव हो, मेरे आस पास के लोगों का जीवन हो। मेरे नाती, ऐसी ही कहानी लिख कर मुझे थमाओ।”

यह एक बहुत बड़े रहस्य के उद्घाटन की पूर्व पीठिका थी। विचित्रता यह होती कि जो ग्राहम भाषा, विचार और प्रस्तुति में विद्वता का शिखर होता था वह ठेठ भाषा, गँवई चित्रण और मासूमियत से ओत प्रोत कहानी के लिए नानी के सामने स्वीकृति में सिर हिला रहा था। नानी ने जैसे यहाँ भी दैवी प्रेरणा से संचालित हो कर उसे आशीर्वाद दिया और मानो कहा मेरा अपना जो एक युग अतीत हो गया उसे वर्तमान बना कर मुझे धन्य कर दो मेरे नाती !

अपने आंगन के देवदार की छाया में बैठे हुए ग्राहम को लग रहा था वह गलत जगह पर बैठा है। उसने गरमी से निजात पाने के लिए इस पेड़ को चुना था। परंतु अब जब यहाँ आ बैठा तो उसे शिकायत सी बन आयी इस पेड़ की छाया तो शायद उसे और तप्त कर रही है। परंतु वह समझ भी रहा था ऐसी शीतल छाया के प्रति उसकी शिकायत का कोई मतलब नहीं। वास्तव में परेशानी तो उसकी अपनी अंतरात्मा से थी। तब तो वह जहाँ – जहाँ भी जाता अपनी ही परेशानी का शिकार बना रहेगा।

ज्ञान का एक पाठ यह तो होता ही है आदमी अपनी परेशानी से भाग कर भी भागा नहीं होता, क्योंकि जो शरीर में है वह तो साथ ही सफ़र कर रहा होता है। भागने में अपने कष्टों से मुक्ति होती तो आदमी को अपना केंसर छोड़ कर भागते देखा जाता। वह खुशी के मारे कह रहा होता मैंने तो अपने केंसर को बहुत पीछे छोड़ दिया और स्वस्थ शरीर से कहीं अपना नया ठिकाना ढूँढने भागा चला जा रहा हूँ। अपने आप से भागना सहज ही होता तो आदमी अपनी गरीबी से भाग कर कहीं दूर धनवानी का आनन्द पा रहा होता। आदमी के जीवन में फाँसी की नौबत ही न आती। गले में रस्सी पड़ रही हो कि आदमी उस रस्सी को सरका कर प्यार से गा रहा होता मैंने फाँसी से दरका कर अपना जीवन सुन्दर बना लिया।

ग्राहम अब तक की अपनी लिखी हुई कहानियों के बूते अच्छा कहानीकार माना जाता था। कहानी- जगत में कहा जाता था वह अब से कोई कहानी न लिखे तो भी उसका नाम कहानी – लेखक के रूप में सदा के लिए रह जायेगा। किंतु कहानी – लेखन के मामले में ग्राहम अपनी पीड़ा जानता था। वह गणित बनाता था अभी मौत न आने से अपने जीवन के दिन शेष हैं तो उसे तो अभी बहुत सारी दमदार कहानियाँ लिखनी हैं। वह अगली कहानियों की इसी प्रबल उत्कंठा में अपनी पिछली कहानियों के साये को पार कर के बहुत आगे निकल जाना चाहता था।

परंतु कहानी – लेखन का इतना बुलंद हौसला रखने पर भी क्या बात थी उसे अपनी नानी के लिए कहानी का कथ्य सूझ नहीं पा रहा था। मान लें, शेष जीवन के गणित से बीस कहानियों का मानचित्र मन में गढ़ लिया, लेकिन कल्पना की गाड़ी तो एकदम यहीं अटक पड़ी है। यही ग्राहम की परेशानी थी और उसने समझ लिया इस का निदान देवदार की छाया नहीं है। बल्कि छाया को तो अब वह भूल जाये और खुली चड़चड़ाती धूप में आ कर देख तो ले कहानी का सूत्र यहाँ पकड़ में आ जाने वाला हो।

पिछले दिनों की तरह आज भी तमाम गरीब उसे दिखाई दे रहे थे। एक आदमी दोनों पैरों से पंगु था। वह भीख मांग रहा था, लेकिन उसे किसी से भीख मिल नहीं रही थी। जहाँ तक ग्राहम को याद था उसने ऐसे बेबस आदमी पर अब तक कहानी लिखी नहीं थी। उसमें उमंग पैदा तो हुई कहानी का कथ्य मिला, लेकिन वह नये सिरे से उदास हो गया। न जाने क्यों इस कथ्य ने जैसे उसका साथ छोड़ दिया और अब बल लगा कर वह लिखना भी चाहता तो कहानी में वह आत्मा न आ पाती जो उसे कहानी – लेखक में अद्भुत बनाता था।

नानी की उम्र की एक वृद्धा उसके सामने से गुजरी तो उसने सोचा इससे अपनी नानी का साम्य बैठने से यही मेरी कहानी की पात्र है। आगे इसका नाती इन्तज़ार कर रहा होगा। इनकी अपनी मोटर है। नाती प्यार से दरवाज़ा खोल कर कहेगा बैठो नानी। नाती ने मिठाई खरीदी हो। जाने से पहले कहेगा खा लो नानी। परंतु नानी को अपने खाने की चिंता कहाँ। वह तो बस नाती को खाने के लिए कहती रह जायेगी। ग्राहम की अपनी स्नेहिल नानी भी तो यही होती है। किंतु ग्राहम ने जैसा सोचा वैसा नहीं था। दो आदमी वृद्धा से बातें करने लगे। वृद्धा खिलखिला कर बाज़ारू हँसी हँस रही थी। पैसे की बात हो जाने पर वृद्धा ने हामी भरी और दोनों के साथ एक संकरी गली में चली गयी। ग्राहम को इस दृश्य से घीन आ रही थी। क्या सोच कर कहानी का ताना –  बाना बुन रहा था और वृद्धा ऐसी हुई मानो कह रही हो मेरे वेश्या जीवन पर लिख सको तो लिख लो। ग्राहम ने तो वृद्धा को स्नेहिल नारी बना कर अपनी कहानी में उकेरने का खयाल किया था। अब जैसे उसे पत्थर से वास्ता पड़ रहा था। उसने वृद्धा को मन से हटाया और इस तरह एक स्नेहिल कहानी आकार लेते – लेते न जाने गलीज वासना के किस गलियारे में वह खो गयी। 

ग्राहम सारा दिन कहानी के लिए भटकता रहा, लेकिन निराशा ने उसे निराशा पर ही पहुँचा कर जैसे उससे कहा नानी के सामने तुम्हें इसी तरह खाली हाथ जाना है। घर लौटने पर उसने नानी से बातें करने से अपने को बचाया। नानी ने खाने के लिए कहा तो मन मारे किसी तरह खाया और अपने कमरे में जा कर पलंग पर उठंग गया। एक टिस ने जैसे उसे रौंद डाला। कथ्य मिल गया होता तो इस वक्त वह नानी के लिए कहानी लिख रहा होता। वह सोचता रहा कहीं अपने लेखन का अंतिम पड़ाव तो न आ गया? यदि अंतिम पड़ाव का यह दंश सत्य हो तो क्या, वह अपनी नानी को उसकी कहानी देने के योग्य हो ही न पायेगा? तब तो उसे लग रहा था न वह जीवन से रहा और न ही मृत्यु से। तो फिर कहाँ से रहा? द्वंद्व जैसी स्थिति में वह स्वयं से संवाद कर रहा था।

“मुझे अपनी नानी के लिए कहानी लिखनी ही है।”

“लिखने का मेरा हौसला इस तरह खत्म नहीं हो सकता।”

“अपना हौसला बनाये रखने के लिए मुझे कुछ करना तो होगा।”

“कहीं से भी तो लाऊँ अपनी नानी की कहानी का जगमग करता आलोक।”

“मेरी बेचैनी अब तो बहुत ही बढ़ती चली जा रही है।”

“सारा दिन भटकते निकल गया।”

“दूर – दूर हो आया हूँ, लेकिन लगता है शिथिल हुए चुपचाप एक जगह पड़ा हुआ हूँ।”

“मेरी नानी ने मुझसे कह दिया उसके लिए कहानी लिखूँ, लेकिन वह मुझ पर बल डालने वाली न होगी। मतलब मैं लिखूँ तो अपने मन से और न लिखूँ तो भी अपने मन से।”

“किंतु कहानी के लिए मेरा मन तो बहुत विकल है। ऐसे में न लिखने का सवाल नहीं होता।”

वह पलंग पर गया तो इसी आत्म संवाद के बीच उसे नींद आ गयी। उसे एक स्वप्न आया। स्वप्न का संबंध कहानी के कथ्य से ही था। वह स्वप्न में अपनी नानी की कहानी के लिए साँप बिच्छू तक से अपना संमार्ग पूछता फिर रहा था। रात का अंधेरा अपना सीना चीर कर उसे अपनी नानी को थमाने के लिए एक कहानी देने की कृपा तो करे।

स्वप्न उसे एक गुफ़ा में ले गया जहाँ एक साधु तपस्या कर रहा था। उसके शरीर में घास उग आयी थी। यह इस बात का संकेत था साधु बहुत दिनों से तपस्या में लीन था। ग्राहम स्वप्न में भी प्रज्ञा से परिपूर्ण था। उसे लगा साधु ने अपना अनमोल जीवन नष्ट कर दिया। वह ऐसे ही बैठा रह जायेगा और एक दिन उसके शरीर में उगी हुई घास बढ़ कर उसे पूर्णत: ढक देगी। किसी को पता नहीं चलेगा इतनी विशाल गुफ़ा में एक साधु घास के नीचे दब कर मरा पड़ा हुआ था।

वह तपस्या से संसार को चमत्कृत करने आया था, लेकिन एक जुगनू भी न बन पाया और वक्त ने उसे सोख लिया। उसकी भावना होगी तपस्या के पुण्य से लोगों का हित करेगा, लेकिन अब लोग कहाँ जान पायेंगे उनके लिए जो मसीहा जन्म ले रहा था उसका जन्म ही उसके लिए मृत्यु का पर्याय हुआ। साधु भगवान का खोजी हो तो भगवान भी उससे पूछने न आया तुमने मेरी अनुभूति की थी कि नहीं?

ग्राहम के लिए यहाँ कहानी तो और भी न हो सकती थी। साधु के रूप में नाश का जो दृश्य उसके सामने झिल मिल कर रहा था ऐसे कथ्य से अपनी कहानी का संसार रचना उसके लिए तो जैसे नींद में भी संभव हो नहीं पाता। बात तो उसकी नानी की कहानी को ले कर थी। तब तो यहाँ का परिदृश्य एक जंजाल ही हुआ।

कहानी के लिए तड़प में पड़े हुए ग्राहम ने स्वयं में प्रतिज्ञा कर ली और थोड़ी माथा पच्ची करने पर नानी को देने योग्य कहानी न मिलेगी तो वह आत्म हत्या कर लेगा। वास्तव में अपनी नानी उसे बहुत प्रिय है, अपनी जान से भी ज्यादा। उसने देख लिया था नानी अपनी कहानी के लिए किस हद तक उत्सुक थी। फिर भी नानी कहेगी नहीं। नानी की चुप्पी में ही मानो यह आवाहन हो उसे अपनी कहानी तो मिले।

ग्राहम की ओर से जान देने की प्रतिज्ञा की देर थी कि उसके सामने ज़हर का दरिया उग आया। चुटकी भर ज़हर हो तो बच जाने का संदेह होता। विशाल दरिया होने से मौत का जैसे लिखित ताकतवर प्रमाण हुआ इससे बचा नहीं जा सकता। ग्राहम को खुशी हुई मौत के दरबार में उसकी इतनी प्यारी सुनवाई हो रही थी। उसने दस तक गिनने का एक हठ अपने ओठों पर रख लिया। दस पर आ जाता और कहानी अब भी न मिली होती तो मौत का दरिया सुनता वह छपाक से उसमें कूद ही तो पड़ा। परंतु ग्राहम के लिए अभी मौत आने वाली नहीं थी। बल्कि उसकी नानी अपनी कहानी के लिए उसे बचा लेती। दस की गिनती पूरी होने से पहले मौत का दरिया अंधेरे में न जाने कहाँ विलीन हो गया। ग्राहम को कहानी मिल गयी और अब उसका दायित्व होता कहानी लिखने में अबाध गति से सक्रिय हो जाये।

स्वप्न ज्यों ही पूरा हुआ उसकी नींद टूट गयी। रात अभी तो आधी भी न बीती थी। ग्राहम के लिए अच्छा ही हुआ, क्योंकि रात तो उसके लिखने के लिए ही होती थी। कहानी लिखने का ताब उसे कुछ सोचने पर मज़बूर कर रहा था। वह ऐसा तो न मानता भगवान से लड़ कर कहा होगा मुझे लेखक बना कर धरती पर भेजो। उसने तो इसी धरती पर लेखन के प्राण तत्व की अपनी उसाँसों में अनुभूति की थी। उसकी पहली कहानी सामाजिक ढाँचे के विरुद्ध थी। उसने गरीबों के हक में पहली कहानी लिख कर धनवानों से एक तरह से दुश्मनी मोल ली थी जिसकी चिनगारी आज भी तप्त चली आ रही थी। उसे जान से मारने की धमकी दी जाती थी, लेकिन वह लेखन के अपने आत्म सिद्धांत से तिल भर भी विमुख होता नहीं था।

निश्चित रूप से आज की उसकी कहानी अब तक की कहानियों से बहुत ही हट कर होती। नानी से उसका यही तो प्रण था। तब तो उसे लग रहा था यही कहानी उससे छूटी हुई थी और आज स्वप्न की ओर से जैसे एक वरदान हुआ जिसमें कहा गया, “ग्राहम यह कहानी लिख दो, तुम्हारी आत्मा में जाने – अनजाने कोई टिस चली आ रही हो तो उसका निदान हो जायेगा।”

परंतु इस कहानी के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ था। नानी को कहानी देने के लिए जब वह स्वयं में प्रतिज्ञा गढ़ रहा था तभी जैसे निश्चित हो गया था वह एक बहुत बड़े रहस्य के उद्घाटन की पूर्व पीठिका थी। यह जो कहानी उसे मिली यह उसके अपने ही जीवन का एक बहुत ही पीड़ादायी अध्याय था। किंतु इस कहानी को न जानने से वह इसे कल्पना से लिखता। 

स्वप्न से अर्जित कहानी का संबंध पर्वत के उस पार रात के गहन अंधेरे से था। यहाँ भी तो रात ही थी। बस कमरे का प्रकाश कुछ दूर तक उजास बिखेर रहा था। ग्राहम कमरे के उस प्रकाश वृत्त से हट कर बाहर अंधेरे में आ खड़ा हो जाये तो इसी अंधेरे में दूर वह पर्वत होगा जिसके उस पार उसे अपनी ही कहानी मिली थी। अपनी कहानी में उसकी माँ थी, उसकी नानी थी और वह स्वयं था। नानी ने भाषा सहज रखने के लिए कहा था। तब तो भाषा नानी की ही होती। बस लेखन का दायित्व ग्राहम का अपना होता।

ग्राहम ने ज्योंही कहानी लिखना शुरु किया उसकी आँखों से आँसू बह पड़े। ऐसा नहीं कि लिखते वक्त उसे रोना न आता हो। रोना तो बहुत आता था, लेकिन इस तरह आँसू बह कर कागज़ पर टप – टप करते चूते नहीं थे। उसने अपने को संभालने का प्रयास किया तो यह संभव न हो पाया। तब तो उसे बहुत सोचना पड़ा यह क्या हो रहा है, हर शब्द लिखने की प्रक्रिया में मन बहुत रो लेना चाहता है। हर वाक्य – संरचना के बीच अपनी पूरी काया और अपनी संपूर्ण अंतश्चेतना बिलख कर कहने में लगी हुई हो ग्राहम ठहर कर आँसू बहा लो इसके बाद लिखने में तल्लीन होना। ग्राहम अपनी इस कहानी के बारे में अभी कोई निर्णय तो न ले सकता यह कैसी कहानी होगी। परंतु वह अपने को सफलता और असफलता जैसी दो धारों में न ले जा कर अपने लिए इतना ही पर्याप्त मान रहा था उसके हाथों वह कहानी जन्म लेने वाली थी जो उसकी नानी के लिए उसकी अपनी आत्मा से उद्भूत हुई थी। 

ग्राहम ने अपनी नानी से जाना था उसकी माँ का नाम ‘शेली’ था। यह नाम ग्राहम के लिए अपार अतीव बड़ा प्यारा नाम था। उसने अब तक अपनी किसी कहानी में इस नाम का उपयोग नहीं किया। भद्र महिलाओं को अपनी रचनाओं में पात्र बनाते वक्त उसे बहुत बार लगा इनमें से किसी एक को शेली नाम तो दे ही दे। जैसी उच्च नारी, वैसा महान नाम। पर उसने शेली नाम को बचाये रख लिया। एक तो उसके खयाल में होता था शेली नाम तो बस उसकी माँ का नाम हो सकता है। दूसरी जो बात थी वह ग्राहम को पीड़ा दे जाने वाली बात थी। शेली नाम चाहे मरियम जैसी देवी को समर्पित कर रहा होता, रचना – प्रक्रिया के बीच माँ की याद बनी रहती और मन में रोता सा प्रश्न बना होता आज अपनी माँ क्यों नहीं है? उसने इस बार किसी प्रकार की सोच में पड़ कर आकलन करना ज़रूरी नहीं माना कि एक  बार देख तो ले जो कहानी लिखने जा रहा है क्या इसमें शेली नाम का उपयोग कर सकता है? बल्कि नानी के लिए कहानी होने से शेली तो जैसे उसकी बेटी हो जाती। उसने शेली नाम लिया तो आँसू के लिए लिया। यह कहानी जितना चाहे उसे रुला दे, इसके लिए वह तैयार था। माँ को शायद बहुत दिनों से याद नहीं किया। यही वक्त है, माँ को खूब याद कर ले, पूज ले अपनी माँ को !

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ग्राहम की माँ शेली, नानी, उसके नाना लेबोने और पिता जेरोम की कहानी बड़ी विस्मयकारी थी। लेबोने नाम के आदमी से शादी होने पर नानी ससुराल आयी। उनके घर बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम शेली रखा गया। बेटी के जन्म के कुछ ही दिनों बाद लेबोने को सेना में भर्ती होना पड़ा। नियम ही ऐसा था देश के हर पुरुष को दो साल के लिए आर्मी में जाना पड़ता था। परंतु वह छावनी से युद्ध के लिए जाने पर वापस लौटा नहीं था। उसे मृत मान लिया गया। कभी दो साल बीत जाते और वह घर आता। परंतु मारा गया हो तो दो साल यहाँ बीत गये और वह वाकई नहीं आया।

शेली की माँ को पेंशन मिलना चाहिए था, लेकिन कागज़ में गड़बड़ी हो जाने से उसका परिवार पेंशन से वंचित रह गया था। इस तरह परिवार में विपतियाँ आने से शेली की माँ बहुत ही टूट गयी थी। किंतु उसने हौसला नहीं छोड़ा। उसकी बेटी शेली स्कूल में पढ़ती थी। माँ की बहुत चाह थी अपनी बेटी पढ़ कर कहीं अच्छी नौकरी पर पहुँचे।

शेली ने बड़ी होने पर अपनी माँ की इच्छा पूरी की। वह नर्स बनी। अस्पताल में काम करने के दिनों ज़ेरोम से उसकी शादी हो गयी। ज़ेरोम की अपनी एक दुकान थी जो खूब चलती थी। परंतु उसके दो सौतेले भाई थे जो उससे लड़ते रहते थे। ज़ेरोम तरक्की कर रहा था जो दोनों भाइयों से देखा न जाता था। अपने परिवार से इस तरह वैमनस्य चलने से ज़ेरोम शेली की माँ के यहाँ आ कर बस गया।

दूकान ज्यादा दूर न होने से वह यहीं से अपनी दुकान आता – जाता था। एक दिन वह दुकान पहुँचा तो देखा दुकान जल रही थी और लोग आग बुझा रहे थे। वह आग बुझाने के लिए आगे बढ़ा कि लपटें उस पर छा गईं और वहीं उसकी मृत्यु हो गयी। लोगों ने देखा था ज़ेरोम का छोटा सौतेला भाई इधर साइकिल पर आया था। उसने दुकान के एक किनारे में जा कर छत पर हथगोला फेंका था और भाग गया था। लोगों को पुलिस से यह कहना पड़ा तो वे कहने से पीछे नहीं हटे। वह गिरफ़्तार हो गया और उसे लंबी सज़ा हो गई। उसके दो बेटे थे। उन्होंने यह न देखा उनके पिता ने कैसी करतूत की थी। उनकी सोच एकपक्षीय होने से वे अकसर शेली के घर आ कर गाली – गलौज कर जाते थे। उनसे परेशान माँ – बेटी ने वह जगह छोड़ दी और दूर विशाल आबादी वाले एक गाँव के पर्वत की तराई में घर ले कर रहने चली गईं। शेली गर्भवती थी। उसने नये घर में पुत्र को जन्म दिया। नानी अपने नाती की देखभाल करती थी और शेली अस्पताल की अपनी नौकरी से जुड़ी रही।

एक दिन शेली की माँ अपनी एक बीमार चचेरी बहन को देखने गयी कि पर्वतीय इलाके में बहुत बरसात होने के कारण वह दो चार दिन बाद ही लौट पाती। यहाँ शेली को अस्पताल की अपनी नौकरी पर नियमित जाना तो पड़ता। जब तक माँ न लौटती वह थोड़ी दूर पर्वत की उसी तराई में रहने वाली एक महिला के यहाँ अपने बेटे को छोड़ कर नौकरी पर जाती थी। महिला बहुत ठीक से उसके बेटे की देखभाल करती थी। शेली की माँ की चचेरी बहन का कोई न होने से वह सोचती थी अपनी माँ से कहेगी उसे यहाँ ले आये। वह नर्स होने से उसके रोग का बहुत हद कर अपने हाथों उपचार कर सकती थी। किंतु शेली का सोचा पूरा न हो पाया। उसे सूचना पहुँची उसकी मौसी की मृत्यु हो गयी। उसकी माँ वहीं थी। शेली ने वहाँ जाने के लिए नौकरी में एक दिन के लिए छुट्टी मांगी जो उसे मिल गयी। अरथी सुबह दस बजे उठने वाली थी इसलिए शेली को यथा शीघ्र घर से निकलना था।

सुबह कुछ – कुछ अंधेरा था। शेली अपने बेटे को उस महिला के पास छोड़ने जा रही थी कि देखा एक आदमी भागा चला जा रहा था। उसने कुछ रुक कर शेली को अपने भागने का कारण बताया और उसे सलाह भी जितनी जल्दी हो सके अपने घर चली जाये।  चिड़ियाघर का एकाकी शेर भाग गया था लेकिन वहाँ के कर्मचारियों ने यह सूचना आस पास के इलाकों में प्रसारित करने में देर कर दी थी। इधर शेर होता नहीं था। उस शेर को कहीं से ला कर यहाँ चिड़ियाझर में रखा गया था। जंगल उस शेर का राज होने से फरार होने पर उसने अब जंगल पाने के साथ आस – पास के गाँवों को भी जैसे अपने कब्जे में कर लिया था।

शेली अपने बेटे को गोद में ले कर झपटते चली जा रही थी कि उसे लगा कुछ अनहोनी सी घटित हो जाने वाली है। दूर से शेर की दहाड़ कानों में पड़ने से उसने समझ लिया था यही अनहोनी का संकेत है।

चिड़ियाघर का वह एकाकी शेर शेली का देखा हुआ था। शेर से खाली अपने गाँव का भूगोल जानने से उसके मन में एक ही झटके से आ गया था वही शेर इधर काल बन कर घूम रहा है। एक आदमी ने उससे कहा भी तो यही था। इस बीच शेली का बेटा रोने लगा था। उसे चुप कराने का शेली के पास एक ही नुस्खा था, उसने अपना स्तन अपने बेटे के मुँह से लगा दिया था। दूध मुँह में आने से बेटा शांत हो गया था। जानलेवा कष्ट का अनुभव करने वाली शेली सोच में पड़ी क्या माँ – बेटे के लिए विपदा ने इस तरह बाहें फैला लीं कि वह अपने बेटे को ले कर न आगे बढ़ सकती है और न पीछे लौटने के लिए कोई विकल्प शेष रह पाया है?

कुछ – कुछ अंधेरा था तो अब छँट ही जाता। तकदीर कुछ देर साथ दे तो सूरज का प्रकाश फैलने ही वाला है। पर्वत के चप्पे – चप्पे में प्रकाश तिर रहा होगा और उसी अनुपात से अपने भीतर साहस भी बढ़ता जायेगा। यह पर्वतीय रास्ता चनलसार होने से लोग आने – जाने लगेंगे और माँ – बेटे का संकट अपने आप तिरोधान हो जाएगा।

शेली रास्ते से हट कर झाड़ी में छिप गयी थी। उसके थरथराते ओठों पर भगवान के लिए प्रार्थना थी और उसके दोनों हाथ अपने बेटे की सुरक्षा के लिए जैसे स्वयं में एक चट्टान हो जाना चाहते थे। परंतु उतनी सारी सोच, इतना कंपन, अंधेरे का छँटना, सूरज की प्रतीक्षा, लोगों के लिए राह तकना, बचाव के लिए इतनी प्रार्थना सब पर तो जैसे तुषार के झोंके टूट रहे थे और इसी अनुपात से शेली का मबोबल भी खंडित होता चला जा रहा था। परंतु वह अपने मनोबल से किसी भी कोण से पस्त न पड़ना चाहती। इस मनोबल में जर्जरता के सिवा कुछ भी न होने के बावजूद यह एक माँ की शक्ति का अमोघ मंत्र था।

माँ को कुछ हो जाये तो हो जाये, उसके बेटे पर किसी प्रकार का संकट न टूटे। शेर की आवाज़ करीब आ रही थी और शेली को लगता था अब शेर और उसके बीच का फासला खत्म होने ही वाला है। अपने बेटे की सुरक्षा चाहने वाली माँ को अब अपनी ओर से कुछ तो करना ही पड़ता। शेर माँ – बेटे के पास आता तो दोनों पर एक साथ झपटता। शेली ने किसी तरह दिमाग से काम लिया। उसने बेटे को बचाने के उद्देश्य से उसे वहीं झाड़ी में छोड़ा और स्वयं रास्ते के किनारे आ कर खड़ी हो गयी। शेर उसके पास पहुँच ही गया। उसने पहचान लिया इसी शेर को चिड़ियाघर में देखा था। शेली खड़ी थी तो खड़ी ही रही। उसकी एक आँख शेर पर थी और एक आँख सुरक्षा का कवच बन कर अपने बेटे पर टिकी हुई थी। शेर नाक उठाये जिस तरह सूँघ रहा था शेली को लगा उसके बेटे की गंध उसे मिल गयी है। शेली शेर से लड़ पड़ी। शेर उसे अपने जबड़ों में उलझाये पीछे लौट गया।

ग्राहम ने सुबह अपनी लिखी हुई कहानी नानी के हाथों में रखी जो सहज भाषा में होने से उसके लिए पढ़ना वाकई बहुत आसान हुआ। वह शुरु की कुछ पँक्तियाँ पढ़ने के बीच तत्काल पन्ने पलट कर कहानी के अंत में पहुँच गयी। कहानी तो उसके अपने ही सत्य पर आधारित थी। तब तो यह कितना बड़ा संयोग हुआ रात के वक्त ग्राहम को यही कहानी मिली थी और उसने सारी रात जाग यह कहानी लिखी थी।  

ग्राहम की स्वयं से प्रतिज्ञा थी कहानी न मिले तो वह आत्म हत्या कर लेगा। आत्म हत्या की उसकी उसी प्रतिज्ञा को खंडित करने के लिए यह कहानी उसकी आत्मा में उतर गयी थी।

सूर्योदय होने पर लोग रास्ते पर जा रहे थे कि देखा था एक बालक ज़मीन पर पड़े रो रहा था। एक स्त्री ने पहचान लिया था यह तो शेली का बेटा था। वहाँ खून के चकते होने से लोग समझ गये थे शेर माँ को ले गया और उसका बेटा बच गया था! परंतु यह तो ग्राहम के बचपन की कहानी थी। उसकी नानी ने इस सोच से उसे सुनाया नहीं था वैसी विदारक घटना को जानने से उसे बहुत आघात पहुँचता। एक साल की उम्र से अपनी नानी की छत्रछाया में पलने वाले ग्राहम ने अपनी कल्पना से यह कहानी लिखी थी। 

— समाप्त 

© श्री रामदेव धुरंधर

28 – 09 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Rajesh kr Singh

अत्यंत ही मार्मिक कहानी.. नानी के लिए कहानी मिल गयी l
रामदेव धुरंधर ही लिख सकते हैं ऐसी कहानी l

शुभकामनायें.. सर जी