श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – अनोखा रिश्ता।)
☆ लघुकथा # 62 – अनोखा रिश्ता ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
“रवि आज सुबह-सुबह कहां जा रहे हो इतनी जल्दी-जल्दी तैयार होकर?” पत्नी सुनंदा ने पूछा।
“तुम भी तैयार हो जाओ। आज हमें वृद्धा आश्रम चलना है। मां को घर लेकर आना है। विदेश से आए एक महीना हो गया है।”
“तुम जाओ मैं नहीं जाऊंगी?”
रवि ने वृद्धाश्रम पहुंचकर अपनी मां के बारे में पूछा तो पता चला कि उसकी मां यहां आई थी पर थोड़ी देर के बाद ही चली गई थी ?
“हमने आपके नंबर पर फोन करके आपको सूचित तो किया था। क्या आपको पता नहीं चला? आपने कभी कोई खबर भी नहीं की इन दो सालों में?”
“लेकिन मेरी पत्नी तो मां की खबर लेती थी और पैसे भी भेजती थी!”
“देखिए आप झूठ मत बोलिए ? हम लोगों को रखते हैं और सुविधा देते हैं तो पैसे लेते हैं। आप कोई रसीद हो तो दिखाइए? आप अपने मां-बाप को संभाल नहीं पाते हो और हमारे ऊपर इल्जाम लगा रहे”
वह अपने पुराने घर जाता है जिसे उसने बेच दिया था। वहां उसे अपनी मां नजर आती है और वह उसे घर में काफी खुश दिख रही थी।
उसे मकान मालिक (अजय) ने उसे अपने घर के अंदर घुसने से मना कर दिया और कहा कि- “जब तुम यह घर बेचकर चले गए तो यहाँ क्यों आए हो?”
उसने कहा “मां को लेने के लिए…।“
“बरसों बाद तुम्हें मां की कैसे याद आई? तुम्हारी मां अब तुम्हारी नहीं हैं? घर के साथ-साथ अब यह मेरी मां हो गई। हमें तो पता ही नहीं था कि आपकी मां है यह बेचारी इस घर के बाहर बैठे रो रही थी। पड़ोसियों से पता चला कि इस घर की मालकिन है। हमने अपने घर में रहने दिया। वे पूरे घर का काम कर देती थी और तरह-तरह के अचार पापड़ भी बना देती थी। हम इसे अपने रिश्तेदार और पड़ोसी को बेचने लगे। इतना मुनाफा कमाया जो कुछ भी है यह सब इनके कारण ही है। तुमने इन्हें बेसहारा कर दिया था और हम बेसहारों को मां मिल गई। अच्छा है कि मां को कुछ याद नहीं रहता। मुझे ही अपना बेटा मानती है। भगवान की कृपा से मुझे यह अटूट रिश्ता मिला है। तुम्हें सब कुछ मिला था पर तुमने खो दिया लालच में अब तुम जा सकते हो।”
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
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