सौ. उज्ज्वला केळकर
☆ लघुकथा ☆ दुगुना लाभ ☆ सौ. उज्ज्वला केळकर ☆
(सौ. उज्ज्वला केळकर जी की इस मराठी लघुकथा का Baby Karforma द्वारा बांग्ला भावानुवाद ढाका, बांग्ला देश के “दैनिक गण मानुषेर आवाज़” (दैनिक आम आदमी की आवाज़) में प्रकाशित हुआ है। हार्दिक बधाई।)
राष्ट्रपति भवन से एक अध्यादेश जारी किया गया। इस अध्यादेश द्वारा लोक प्रतिनिधि, कार्यकर्ता, शासकीय अधिकारी, कर्मचारी सभी को भ्रष्टाचार प्रतिबंधक टीका लगाना अनिवार्य किया गया। निविदाएँ आमंत्रित की गई। कम कीमत वाली निविदा स्वीकृत की गई। औषधि मँगवाई गई। औषधि की बोतलें आई। डॉक्टर साहब भी आए।
यह सब इतनी तेजी से हुआ, कि किसी को कुछ पता ही नहीं चल रहा था, कि क्या हो रहा है? शासकीय स्तर पर इतनी शीघ्रता से घटित होने वाली यह पहली ही घटना होगी शायद। जब इसका नतीजा ध्यान में आया, तो मंत्री – संत्री, सचिव – अधिकारी, चपरासी, कार्यकर्ता,-अनुयायी सारे सकपका गए। सन्न होकर रह गए।
‘अब क्या फायदा मंत्री होने का?‘ मंत्री फुसफुसाने लगे।
‘अब क्या फायदा सचिव होने का? ‘सचिव भुनभुनाने लगे।
‘अब क्या फायदा अफसर होने का?’ अफसर कहने लगे।
‘अब क्या फायदा चपरासी होने का?’ चपरासी बड़बड़ाने लगे।
‘अब क्या फायदा लार टपकाने का?’ अनुयायी शिकायत करने लगे।
सभी जनों को टीका लगाकर हाथ धोकर नैपकिन से पोंछते हुए डॉक्टर साहब बाहर आ गए।
‘क्यों, क्या हो गया? इस तरह मुँह लटकाए हुए क्यों बैठे हो?’ उन्होँने पूछा।
‘आप की करतूत….’
‘मेरी करतूत? क्यों भाई, मैँने क्या किया?’
‘सब कुछ जानते हुए भी यूँ अनजान मत बनो डॉक्टर साब।‘
‘अरे भाई, खुलकर बोलो तो, क्या हो गया? ‘
‘अभी अभी आपने भ्रष्टाचार प्रतिबंधक टीका जो लगाया है….’
‘ओह…! उसकी चिन्ता आप ना करें। टीके का कोई परिणाम नहीं दिखने वाला…’
‘वो कैसे?’
‘औषधि मिलावटी है। कम कोटेशन वाली निविदा जो दी थी ।
‘मगर ऐसा क्यों डॉक्टर साब?‘
‘दुगुना लाभ! कोटेशन कम होने के कारण निविदा स्वीकृत हो गई। अब आप लोग मेरी ईमानदारी का खयाल करेंगे ही! करेंगे ना…’
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© सौ. उज्ज्वला केळकर
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