श्री राजेन्द्र तिवारी
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘शहीद’।)
☆ लघुकथा – भेदभाव…. ☆
पंडाल में,श्री गणेश जी की भव्य मनोहर मूर्ति विराजमान थी,पंडाल रोशनी से जग मग हो रहा था,भक्तों में धार्मिक भावना,और धार्मिक उल्लास नजर आ रहा था,भजन मंडली, भजन कीर्तन कर रही थी सभी रसास्वादन कर रहे थे, मैं अपने परिवार के साथ, पत्नि और बेटी के साथ उपस्थित था,आयोजन भव्य था,तभी श्रीगणेश आरती की घोषणा हुई,और आरती शुरू हुई,जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा…. आरती संपन्न हुई,सभी आरती ले रहे थे,तभी मेरी बेटी ने मुझसे कहा,पापा भगवान श्री गणेश जी की आरती में,बांझन को पुत्र देत,क्यों,,पुत्री क्यों नहीं,यह तो पुत्र और पुत्री के मध्य भेदभाव है ना,समाज में ऐसा भेदभाव क्यों,,
मैं सोच में पड़ गया,,आज तक ये ही आरती गाता आ रहा हूं,,कभी किसी ने प्रश्न नहीं किया,मेरे मन में भी कभी ख्याल नहीं आया,,आरती में बांझन को पुत्र देत क्यों,,पुत्री क्यों नहीं,,
घर आकर विचार किया, कि आरती तो किसी व्यक्ति ने ही लिखी होगी,सुधार तो हो सकता है,और आरती में थोड़ा सुधार किया,,,बांझन की गोद भरे,,निर्धन को माया,
अब मैं यही आरती गाता हूं,आप भी विचार कीजिए,आपको मेरी सोच अच्छी लगे, तो आप भी यही आरती गाएं,ताकि पुत्री के साथ भेदभाव न हो
© श्री राजेन्द्र तिवारी
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