श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  एक  भावप्रवण लघुकथा  माँ– एक तस्वीर सी)

 

माँ– एक तस्वीर सी ☆

 

नानी कहती थी माँ बड़ी  खूबसूरत थी, तस्वीर सी। कहाँ जानती थी बेचारी कि उसकी सुगढ़ सलोनी बिटिया धीरे धीरे मूक तस्वीर में ढल रही है ।

बताया था चाची ने रमा को, कि पढ़ी लिखी गोल्ड मेडलिस्ट माँ की आँखे उसी दिन पथरा गईं थीं– जिस दिन किरानी के सामान जिसमें बंध कर आए थे, अखबार के उन  टुकड़ों को माँ को पढ़ता देखकर, सासु माँ के ताने पर देवरजी, बडे़ जेठजी और अन्यों की व्यंगात्मक हंसी पर झुकीं– माँ की आँखों ने उठना बंद कर दिया था।   नानाजी के घर मे निरे बचपन से पढीं चंदामामा, नंदन, पराग और बाद में प्रसाद, प्रेमचंद, महादेवी के रचना-अक्षर नृत्य करने लगे माँ की पथराई आँखों और जड़ होते तन-मन के सामने । सयानी होती रमा ने भी माँ को तस्वीर में ढलते देखा। जिंदगी भर बडे़ बाबूजी, चाचाजी की बेजा गर्जना पर पिताजी की एक उठी आवाज के लिए माँ के मन-प्राण-कान तरसते रहे। माँ की गूंगी बहरी संवेदनाओं और भीरू पिता के पंगु सायों में पलते भैया का कुचला बचपन माँ के भीतर नासूर बनता रहा। अन्य बच्चों की गलतियों को भैया पर थोपे झूठे इल्ज़ामों को समझ कर भी भैय्या को ही पीट पीट कर खुद अधमरी ठूंठ सी मेरी स्नेह वंचिता भावुक जननी—-उस अभिमानी परिवेश में दो बेटों के माता-पिता होने के गर्वोन्नत सिरों के सामने बेटी की माँ होने का अभिशाप झेलती भीतर से नितांत अकेली मेरी असहाय माँ– अचल तस्वीर बन चली।

माँ का दिमाग पूरी तरह चुक गया था। जड़ हो चुकी थीं वे। मनः चिकित्सा अबूझ रही।माँ की विदेही पीड़ा की साक्षी और न्यायाधीश दोनों मैं रमा ही थी, परंतु कठघरे में किसे खड़ा करूं? बेमेल विवाह के दोषी नाना मामा को, भीरु सीधे साधे दब्बू बाबूजी को या उस जमाने की पाखंडी संस्कृति को— जहाँ स्त्रियां इंसान नहीं मात्र देह होतीं थीं। जीते जी ही दीवारों पर टंगी तस्वीरें होती थीं बस !!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments